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इजराइल के दुश्मन हमास को कहां से मिले अमेरिकी हथियार?

Bharat Ek Soch: सवाल उठता है कि इजराइल-हमास युद्ध के बीच आखिर अमेरिका क्या चाहता है... जंग खत्म हो या लंबी खिंचे?
09:00 PM Oct 29, 2023 IST | Anurradha Prasad
news 24 editor in chief anuradha prasad special show
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Bharat Ek Soch: एक बहुत ही प्रचलित मुहावरा है- बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय। मतलब, जैसा कर्म करेंगे, वैसा ही फल मिलेगा। दुनिया में खुद को आधुनिक लोकतंत्र का झंडाबरदार बताने वाला अमेरिका…दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक महाशक्ति अमेरिका… दुनिया का सबसे बड़ा मिलिट्री पावर अमेरिका…दुनिया में हथियारों का सबसे बड़ा सौदागर अमेरिका…अगर सबसे ज्यादा परेशान है तो अपने ही मुल्क के लोगों के बीच होने वाली गोलीबारी से…खून-खराबे से।

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अमेरिका की सोच में गोला-बारूद है…संस्कृति में बंदूक है। दुनिया के नक्शे पर अमेरिका आज जिस मुकाम पर खड़ा है- वहां पहुंचने में बंदूक और हथियारों के कारोबार का बड़ा योगदान रहा है। आज की तारीख में इजराइली सेना अमेरिकी हथियारों से हमास के सफाए के लिए लड़ रही है। वहीं, हमास लड़ाकों के पास भी Made in America हथियार हैं। पड़ोसी मुल्क लेबनान की सेना के हाथों में भी अमेरिकी हथियार ही हैं…अरब वर्ल्ड के ज्यादातर देशों की सेना या कट्टरपंथियों के पास अमेरिकी कंपनियों द्वारा बनाए गए हथियार और गोला बारूद ही हैं।

ऐसे में दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में टेंशन के दौरान इस्तेमाल अमेरिकी हथियार ही होते हैं? अब सवाल उठता है कि इजराइल-हमास युद्ध के बीच आखिर अमेरिका क्या चाहता है… जंग खत्म हो या लंबी खिंचे? रूस-यूक्रेन युद्ध भी खत्म हो या अभी साल-दो साल और चले? इस सवाल पर बहुत गंभीरता से सोचने की जरूरत है। ऐसे में आज आपको बताने की कोशिश करेंगे कि अमेरिका किस तरह से दूसरों के झगड़े में अपना हथियारों का कारोबार देखता रहा है? कैसे अमेरिकी गन-कल्चर हर साल हजारों की तादाद में लोगों को मौत की नींद सुला रहा है? मतलब, जिस गोली-बंदूक को दुनिया में बेंच अमेरिका मोटी कमाई करता रहा है…वहीं संस्कृति अमेरिकियों के लिए किस तरह से भस्मासुर जैसी बन चुकी है? अमेरिका ने दुनिया में कैसे सजाई हथियारों की मंडी ? समानता, स्वतंत्रता, लोकतंत्र और मानवाधिकार की बात करते-करते अमेरिका किस तरह बना दुनिया में हथियारों का सबसे बड़ा सौदागर? अमेरिका की नीति, नियत और दूसरों के झगड़े में फायदा देखने वाली सोच के हर पहलू को समझने की कोशिश करेंगे अपने खास कार्यक्रम–अमेरिका का ‘रक्तचरित्र’ में।

अमेरिका का ‘रक्त चरित्र’

आज की तारीख में दुनिया के हथियार कारोबार में अमेरिका की हिस्सेदारी करीब 40 फीसदी है। अमेरिका के टॉप फाइव हथियारों के सौदागर देशों की आर्म्स डील के आंकड़ों को अगर जोड़ भी दें – तो अमेरिका का ही पलड़ा भारी रहेगा। इसमें रूस, फ्रांस, चीन, जर्मनी और इटली जैसे हथियारों के बड़े सौदागर भी शामिल हैं। इजराइल अपनी जरूरत का 80 फीसदी हथियार अमेरिका से खरीदता है…ये भी दावा किया जा रहा है कि हमास जिन हथियारों से इजराइल को चुनौती दे रहा है-उसमें से ज्यादातर Made in America हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर कट्टरपंथी संगठन हमास को अमेरिकी हथियार कहां से मिले…इसका एक सिरा कतर से भी जुड़ सकता है…कतर की राजधानी दोहा में हमास का राजनीतिक दफ्तर भी है … गाजा पट्टी के लिए लड़ने का दावा करने वाले हमास के टॉप कमांडर दोहा में बने आलीशान दफ्तर से पूरी दुनिया से बातचीत करते रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि जिस हमास को अमेरिका ने आतंकी संगठन घोषित कर रखा है…जिस हमास ने अमेरिका के करीबी मित्र इजराइल पर हमला किया। उसी हमास के हाथ अमेरिकी हथियार कैसे लगे? अपने दोस्त कतर से अमेरिका ने कभी ये क्यों नहीं कहा कि हमास जैसे आतंकी संगठन का दोहा दफ्तर बंद कराए! ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि भीतरखाने अमेरिकी हथियार हमास जैसे कट्टरपंथी संगठनों को भी तो नहीं पहुंचाए गए…जिससे क्षेत्र में तनाव पैदा हो और हथियारों की खरीद-ब्रिकी के लिए नया माहौल बने।

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सुरक्षा के लिए हथियार खरीदने कहां जाएंगे? 

पिछले 20 महीने से ज्यादा समय से यूक्रेन-रूस के साथ भीषण जंग लड़ रहा है। संभवत:, रूस ने भी कभी ये नहीं सोचा होगा कि यूक्रेन इतने दिन टिक पाएगा। लेकिन, ये भी सच है कि भले ही इस युद्ध में कंधा यूक्रेन का है…चेहरा व्लादिमीर जेलेंस्की हों लेकिन, बंदूक अमेरिका की है। गोली-बारूद अमेरिका का इस्तेमाल हो रहा है। पिछले 20 महीनों में यूक्रेन ने इतना गोला -बारूद और रॉकेट दागा कि इजराइल में अमेरिकी Ammunition depot करीब-करीब खाली होने की स्थिति में पहुंच चुका था…यूरोपीय देशों का गोला-बारूद भी यूक्रेन खप रहा है। युद्ध और तनाव की इस स्थिति ने यूरोप में गोला-बारूद की डिमांड बढ़ा दी है…इसी ओर अरब वर्ल्ड भी बढ़ रहा है। अब जरा सोचिए इजराइल-फिलिस्तीन से सटे देश हों या फिर यूक्रेन-रूस से सटे मुल्क अपनी सरहद की सुरक्षा के लिए हथियार खरीदने कहां जाएंगे? हथियारों की मंडी में ज्यादातर देशों को अमेरिका का ख्याल आएगा…क्योंकि, अमेरिकी कंपनियां हर तरह के छोटे-बड़े हथियार बनाने में एक्सपर्ट हैं । आज की तारीख में दुनिया में हथियारों का सबसे बड़ा सौदागर अमेरिका है… Stockholm International Peace Research Institute यानी SIPRI की रिपोर्ट के मुताबिक, 2018 से 2022 के बीच दुनिया भर में हुए हथियार कारोबार में अमेरिका की हिस्सेदारी 40 फीसदी है। दूसरे नंबर पर रूस और तीसरे पर फ्रांस हैं…ऐसे में समझना जरूरी है कि अमेरिका दुनिया के किन-किन देशों को हथियार बेंच कर मोटी कमाई करता रहा है।

सहयोग, दोस्ती और कूटनीति का मुल्लमा 

अमेरिका ने कभी लोकतंत्र के नाम पर…कभी आतंकवाद से लड़ने के नाम पर…कभी साम्यवादी ताकतों को रोकने के नाम पर… कभी मानवाधिकार के नाम पर…कभी सुरक्षा देने के नाम पर हथियारों की मंडी सजाता रहा है। ग्लोब पर दिखने वाले कई क्षेत्रों में भय और टेंशन का माहौल बना कर हथियारों की रेस तेज करने का काम भी हुआ है..जिस पर बड़ी चतुराई से सहयोग, दोस्ती और कूटनीति का मुल्लमा चढ़ा दिया जाता है। यूक्रेन-रूस युद्ध और इजराइल-हमास युद्ध से पैदा भय और असुरक्षा के माहौल में दुनिया के ज्यादातर देश अपना सुरक्षा तंत्र मजबूत करने के लिए हथियार खरीदने के लिए मजबूर होंगे…इतिहास गवाह रहा है कि ऐसी स्थितियों का फायदा समय-समय पर महाशक्तियों ने उठाया है…तनाव और युद्ध के बीच हथियारों की ऐसी रेस शुरू हुई…जिसका सबसे ज्यादा फायदा अमेरिका और रूस को हुआ। पहले विश्वयुद्ध से अब तक अमेरिका जब भी आर्थिक संकट की ओर बढ़ा… उसे उबारने में किसी न किसी युद्ध ने संकटमोचक की भूमिका निभाई।

गन कल्चर अमेरिकियों के लिए भस्मासुर 

ऐसे नहीं है कि अमेरिका ने सिर्फ हथियारों की मंडी दूसरों के लिए सजाई है । खुद अमेरिका के भीतर भी हथियारों की मंडी सजती है…गोली-बंदूक वहां की लोगों की सोच में घुला-मिला है, जिसे दुनिया गन-कल्चर के नाम से जानती है। वहां का गन कल्चर अमेरिकियों के लिए भस्मासुर जैसा बन चुका है…जिसमें हर साल हज़ारों की तादाद में अमेरिकी मारे जा रहे हैं। इसी हफ्ते अमेरिका के लेविस्टन में एक सिरफिरे शख्स ने अंधाधुंध फायरिंग में 22 लोगों की जीवन लीला खत्म कर दी और बाद में खुद को भी गोली मार ली। दुनियाभर में सुरक्षा की गारंटी कार्ड बांटने वाला अमेरिका खुद सुरक्षित नहीं है। शायद ही कोई दिन ऐसा गुजरता हो…जब मुल्क के किसी-न-किसी हिस्से में गोलीबारी की घटना न होती हो…खून-खराबा न होता हो। तैतीस करोड़ की आबादी वाले अमेरिका में लोगों के पास 39 करोड़ से अधिक बंदूकें हैं। दुनिया की आबादी में करीब चार फीसदी हिस्सेदारी रखने वाले अमेरिकी लोगों के पास दुनिया की कुल सिविलियन गन का करीब 45 फीसदी मौजूद है।इसका नतीजा ये है कि अमेरिका में बात-बात पर गन निकालने और दूसरों पर फायरिंग की घटनाएं सामान्य हैं।

किसके दबाव में अमेरिकी सांसद

ये सुपर पावर अमेरिका का एक दूसरा बहुत ही स्याह पक्ष है। जहां बंदूक भी अपनी है…लोग भी अपने हैं और एक-दूसरे के खून के प्यासे भी अपने ही हैं। अमेरिका में गन कल्चर कितना खतरनाक रूप ले चुका है – इसे साल के शुरुआत की ही एक घटना के जरिए समझा जा सकता है। वर्जीनिया में एक छह साल के बच्चे ने अपनी क्लास टीचर को गोली मार दी…शायद वो टीचर की डांट से गुस्से में रहा होगा। अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के एक आंकड़े के मुताबिक 2021 में बंदूक से चली गोली ने 4752 बच्चों की जान ली..तो साल 2020 में ये आंकड़ा 4 हजार 300 से अधिक का था। अमेरिका में जब भी गोली-बारी की कोई बड़ी घटना होती है तो सवाल उठता है कि वहां के हुक्मरान गन कल्चर खत्म करने के लिए काम क्यों नहीं करते हैं…किसके दबाव में अमेरिकी सांसद खामोशी की मोटी चादर ओढ़ लेते हैं। जवाब है– वहां की नेशनल राइफल एसोसिएशन। हथियार कारोबारियों की ये ताकतवर संस्था– चाहे रिपब्लिकन हों या डेमोक्रेट दोनों को ही मोटी आर्थिक मदद देती है।

अमेरिका हथियारों का सबसे बड़ा सौदागर

2015 में ऑरेगॉन कॉलेज में गोलीबारी के बाद पूरी दुनिया ने तब के अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा की आंखों में आंसू देखे थे…उन्होंने संसद में गन पॉलिसी लाने की बात कही । लेकिन, हुआ क्या? अमेरिकी संसद के 70 फीसदी सांसद वहां की हथियार लॉबी के समर्थन में खड़े दिखे…अमेरिकी मीडिया में ये भी कहा गया कि हथियार लॉबी ने 2016 में डोनाल्ड ट्रंप को दो करोड़ डॉलर का चुनावी चंदा दिया था… ऐसे में अमेरिकी हुक्मरानों के लिए हथियार लॉबी को नाराज करने वाला कोई भी फैसला लेना आग पर चलने जैसा रहा। अमेरिका एक ओर हथियारों का सबसे बड़ा सौदागर बनकर अपने मुल्क की तिजोरी भरने में लगा हुआ है … लेकिन, दूसरी ओर हर साल अमेरिका में लोग आपसी झगड़े या छोटी-छोटी बातों पर इतनी गोलियां दाग रहे हैं – जहां जिंदगी का मोल छोटा हो गया है । दूसरों के बीच झगड़ा लगा कर फायदा कमाने वाली सोच खुद अमेरिका पर भी बहुत भारी पड़ रही है । ऐसे में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और बीजेपी के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपेयी की कविता से अमेरिकी हुक्मरान अपने लिए कुछ रौशनी ले सकते हैं। अटल जी की एक कविता संदेश देती है-

कह दो चिंगारी का खेल बुरा होता है
औरों के घर आग लगाने का जो सपना
वह अपने ही घर में सदा खरा होता है
अपने ही हाथों तुम अपनी कब्र न खोदो…

(smartairfilters.com)

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