बिहार में 100 करोड़ से ज्यादा का बैंक घोटाला, RBI का एक्शन; अब ED कर रही है छापेमारी
Bank Fraud In Bihar (अभिषेक कुमार): बिहार के सियासी गलियारों से निकलकर बड़ी खबर सामने आ रही है, जहां राजद के विधायक आलोक मेहता के 16 ठिकानों पर आज सुबह ED की रेड पड़ी है। यह मामला बैंक लोन से जुड़ा हुआ है। RBI से रजिस्टर्ड एक कोऑपरेटिव बैंक में करीब 100 करोड़ का घोटाला हो गया था।
हजारों निवेशकों की जमा पूंजी करीब 100 करोड़ की रकम का फर्जी लोन के सहारे गायब कर दिया गया, लेकिन बड़ी बात यह थी इस 100 करोड़ के घोटाले में बिहार सरकार के एक पूर्व मंत्री और लालू परिवार के करीबी एक RJD नेता परिवार की भूमिका सामने आ रही है। बता दें, वैशाली जिले के वैशाली शहरी विकास कोऑपरेटिव बैंक और बैंक में हुए करीब 100 करोड़ के घोटाले की है।
करीब 35 साल से बैंकिंग कारोबार कर रहे इस बैंक पर जून 2023 में RBI ने रोक लगा दी थी और इसके वित्तीय कारोबार पर रोक लगा दी। RBI की शुरुआती जांच में करीब 5 करोड़ के गबन का आरोप था। जब जांच शुरू हुई तो घोटाले की रकम 100 करोड़ तक जा पहुंची।
लिच्छवि कोल्ड स्टोरेज Pvt Ltd और महुआ कोऑपरेटिव कोल्ड स्टोरेज नाम की 2 कंपनियों ने बैंक के करीब 60 करोड़ का गबन किया है। इन दो कंपनियों ने अपनी गारंटी पर करोड़ों के लोन का निकासी किया था। फर्जी कागजातों के सहारे किसानों के नाम पर दी गई करोड़ों के इस लोन में बैंक ने भी नियम कायदों को ताक पर रख लोन जारी किया था।
फर्जीवाड़े के शिकार हुए लोगों ने खोला मोर्चा
इस मामले में खुलासा ये भी हुआ कि इस कोऑपरेटिव बैंक प्रबंधन ने फर्जी LIC बॉन्ड और फर्जी पहचान पत्र वाले लोगों के नाम 30 करोड़ से ज्यादा रकम की निकासी कर ली है, लेकिन इस पूरे घोटाले के पीछे बिहार सरकार में शामिल पूर्व मंत्री और लालू परिवार के बेहद करीबी RJD नेता परिवार की भूमिका संदिग्ध नजर आ रही थी। घोटाले का छींटा बिहार सरकार में पूर्व भू स्वामित्व मंत्री आलोक मेहता पर जा रहा था। इस कोऑपरेटिव बैंक और फर्जी लोन की निकासी करने वाले दोनों कंपनियों से मंत्री परिवार सीधा कनेक्शन सामने आया है, जिसके बाद बैंक के फर्जीवाड़े के शिकार हुए खाता धारकों ने अब मंत्री आलोक मेहता के खिलाफ मोर्चा भी खोल दिया था।
आरोप लगाया जा रहा है कि करीब 100 करोड़ के इस घोटाले की स्क्रिप्ट कई साल पहले तैयार कर ली गई थी। इस घोटाले की शुरुआत मंत्री आलोक मेहता के बैंक के अध्यक्ष रहते हो चुका था। बैंक का प्रबंधन शुरू से मंत्री परिवार के पास रहा और घोटाले की राशि में से बड़ी रकम जिन कंपनियों में ट्रांसफर की गई वो भी मंत्री आलोक मेहता के परिवार से जुड़ी है।
आरोप लगाया जा रहा है कि घोटाले के छींटों से बचने के लिए मंत्री जी ने कुछ समय पहले खुद को बैंक के प्रबंधन और इन कंपनियों से खुद को अलग कर लिया था। बैंक और इन कंपनियों को आज भी मंत्री जी के रिश्तेदारों द्वारा चलाया जाना और घोटाले के सामने आने के बाद मंत्री आलोक मेहता पर सवाल उठने लगे हैं। मंत्री परिवार के इस बैंक के फर्जीवाड़े के शिकार लोग अब हंगामा कर रहे हैं। जिंदगी भर की जमा पूंजी गंवाने वाले खाता धारकों ने जब वर्तमान चेयरमैन और मंत्री जी के भतीजे संजीव को घेरा था तो मंत्री जी के भतीजे ने इस पूरे घोटाले का काला चिट्ठा खोला था और इस घोटाले के पीछे मंत्री जी का हाथ बता दिया था।
35 साल पहले शुरू हुआ था वैशाली शहरी कोऑपरेटिव बैंक
जिस समय यह पूरा मामला सामने आया था उस समय बिहार सरकार में आलोक मेहता मंत्री थे और लालू परिवार के करीबी RJD नेता अलोक मेहता का राजनीतिक रसूख बड़ा है। बिहार सरकार में पूर्व मंत्री आलोक मेहता के पिता भी बिहार सरकार में मंत्री रह चुके हैं और वैशाली के आस पास के जिलों में इनका बड़ा राजनीतिक रसूख रहा है। अपने बड़े राजनीतिक रसूख के दम पर मंत्री आलोक मेहता के पिता तुलसीदास मेहता ने करीब 35 साल पहले हाजीपुर में वैशाली शहरी कोऑपरेटिव बैंक की शुरुआत की थी।
राजनीतिक रसूख के दम पर बैंक चल निकला और साल 1996 में इस बैंक को RBI का लाइसेंस भी मिल गया। पिता के दम पर आलोक मेहता (1995 से ही) बैंक चेयरमैन बने और लगातार 2012 तक बैंक मैनेजमेंट की कमान संभाले रखा। 2004 में इस बीच उजियारपुर से लोकसभा का चुनाव जीत सांसद भी बने, लेकिन आलोक मेहता लगातार बैंक मैनेजमेंट की कमान संभाल रहें हैं। 2012 में अचानक आलोक मेहता ने अचानक बैंक प्रबंधन का शीर्ष कमान अपने मंत्री पिता तुलसीदास मेहता को सौंप दिया और बैंक से खुद को अलग कर लिया।
2015 में भी इस तरह की गड़बड़ी सामने आई थी, जिसमें आरबीआई ने बैंक के वित्तीय कारोबार को बंद करा दिया था। गड़बड़ियों के आरोप में आलोक मेहता के पिता तुलसीदास मेहता पर कार्रवाई की थी। इस मामले को सुलझाने के बाद आलोक मेहता के भतीजे संजीव को बैंक की कमान सौंप दी गई और संजीव लगातार इस बैंक के चेयरमैन बने रहे।
ये आरोप लगाया जा रहा है कि 2012 में भी घोटाले के छींटों से बचने के लिए आलोक मेहता ने आनन-फानन में बैंक की कमान अपने मंत्री पिता को सौंप खुद का बचाव किया था और RBI की कार्रवाई की गाज पिता तुलसीदास मेहता पर गिरी थी। बैंक एक बार फिर से घोटाले के आरोपों से घिरा है और इस बार 100 करोड़ का घोटाला सामने दिख रहा है। घोटाले के सम्बन्ध में हाजीपुर के नगर थाना में 2 अलग-अलग FIR दर्ज कराई गई, जिसमें बैंक के अधिकारियों को आरोपी बनाया गया है। बैंक का सीईओ और मैनेजर फरार है। फिलहाल पुलिस और विभाग मामले की जांच कर रही है।
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