फ्लैट खरीद चुके हैं, प्रोजेक्ट फंसा है तो अपना सकते हैं 5 कानूनी रास्ते
5 Legal Options for Homebuyers: इंडियन बैंक एसोशिएसन का अनुमान है कि देश में 4.12 लाख आवासीय यूनिट किसी न किसी कारण से संकट में फंसी हुई हैं, जिनका कुल ऋण चार लाख करोड़ रुपये से अधिक है। इन 4.12 लाख यूनिट्स में आधे से ज्यादा 2.40 लाख दिल्ली-एनसीआर रीजन में हैं। हालांकि इसका सबसे ज्यादा असर घर खरीदने वालों पर पड़ता है। प्रोजेक्ट में देरी होने से रेंट देने का पीरियड बढ़ता है। परिवार का खर्चा संभालने में मुश्किल होती है। मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर का तो कोई आकलन ही नहीं है। ऐसे में अगर आपका किसी प्रोजेक्ट में पैसा फंसा है तो क्या करें? यहां पढ़िए वो 5 विकल्प जो आपको राहत दिला सकते हैं।
RERA से संपर्क करिए
अगर रियल एस्टेट डेवलपर घर के कब्जे या आवासीय संपत्ति की डिलीवरी में देरी करता है तो घर खरीदने वाले रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण के पास शिकायत दर्ज करा सकते हैं। रियल एस्टेट रेगुलेशन एक्ट 2016 (RERA) घर खरीदने वालों को इंटरेस्ट के जरिए मुआवजे का लाभ दिलवाता है। या फिर आपको ब्याज के साथ रिफंड भी मिल सकता है। इसके साथ ही रेरा रियल एस्टेट कंपनी पर प्रोजेक्ट को जल्द से जल्द पूरा करने के लिए दबाव बना सकता है। रेरा के अंतर्गत वो प्रोजेक्ट भी आते हैं, जो 2016 के पहले से चल रहे हैं। लेकिन अब रेरा के तहत रजिस्टर्ड हैं।
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कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट के तहत राहत मांगिए
घर खरीदने वाले भी कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट 1986 के तहत ग्राहकों में आते हैं। घर के मामले में आपको कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट के जरिए भी राहत मिल सकती है। हर राज्य का अपना कंज्यूमर प्रोटेक्शन विभाग है। इस कानून के तहत 20 लाख से ज्यादा की प्रॉपर्टी के मामले में डिस्ट्रिक्ट कमीशन के पास अपनी शिकायत देनी होती है। 20 लाख से 1 करोड़ के बीच की संपत्ति के मामले में आपको स्टेट कमीशन के पास अपनी शिकायत देनी होगी। 1 करोड़ से ज्यादा की संपत्ति के मामले में आपको नेशनल कमीशन के पास शिकायत करनी होगी।
इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड 2016
इस कानून के तहत अगर कोई रियल एस्टेट प्रोजेक्ट फंसा है तो उसमें मकान खरीदने वाले कम से कम 100 लोग या कुल खरीददारों की संख्या का 10 प्रतिशत, एक साथ मिलकर संयुक्त रूप से प्रमोटर के खिलाफ कॉरपोरेट इंसॉल्वेंसी रेजोल्यूशन की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं। हालांकि इसके लिए टोटल डिफॉल्ट रकम 1 करोड़ रुपये से ज्यादा होनी चाहिए।
इनसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड 2016 घर खरीदने वालों को फाइनेंशियल क्रेडिटर्स के रूप में मान्यता देता है। आईबीसी के सेक्शन 7 के तहत घर खरीददार बिल्डर के खिलाफ कॉरपोरेट इनसॉल्वेंसी रेजोल्यूशन प्रक्रिया शुरू करने के लिए मंजूरी रखते हैं।
सिविल कोर्ट से न्याय
घर खरीदने वाले सिविल प्रोसिजर कोड 1908 के तहत पैसे की रिकवरी का मामला दायर कर सकते हैं। या फिर क्रिमिनल प्रोसिजर कोड 1974 के तहत क्रिमिनल केस दायर कर सकते हैं। अगर प्रमोटर को चीटिंग, फ्राड या झूठे दावे करने का दोषी पाया जाता है।
हालांकि यह बात नोट की जानी चाहिए कि अगर कोई आवासीय संपत्ति रेरा के तहत दर्ज है तो सेक्शन 79 सिविल कोर्ट को मामले में हस्तक्षेप करने से रोकता है।
भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग में करें शिकायत
प्रतिस्पर्धा एक्ट 2002 के मुताबिक अगर कोई बिल्डर दबाव बना रहा है और घर खरीददार के खिलाफ मनमानी कर रहा है तो पीड़ित कंज्यूमर प्रतिस्पर्धा आयोग में शिकायत कर सकता है। हालांकि भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग ज्यादातर डेवलपर्स के बीच प्रतिस्पर्धा के उल्लंघन के मामलों को देखता है। इसलिए वह ग्राहकों के बहुत कम मामलों में हस्तक्षेप करता है।
हालांकि विशेषज्ञों की सलाह है कि किसी भी केस में अगर आप कानूनी तौर पर कोई कदम उठा रहे हैं तो एक बार में एक ही कदम उठाएं। उसके बाद अगला फैसला लें।