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Anand Mahindra के ट्वीट कौन लिखता है, क्यों सोशल मीडिया पर रहते इतने एक्टिव?

Anand Mahindra 90 Hour Working Debate: सप्ताह में 90 दिन काम करने की थ्योरी पर आनंद महिंद्रा का रिएक्शन आया है। उन्होंने अपनी सोशल, प्रोफेशनल और पर्सनल लाइफ पर भी खुलकर बात की। आइए जानते हैं कि उनके क्या विचार हैं‌?
08:55 AM Jan 12, 2025 IST | Khushbu Goyal
anand mahindra के ट्वीट कौन लिखता है  क्यों सोशल मीडिया पर रहते इतने एक्टिव
Anand Mahindra

Anand Mahindra Reaction on 90 Hour Working Debate: महिंद्रा एंड महिंद्रा के चेयरमैन आनंद महिंद्रा सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहते हैं। सप्ताह में 90 घंटे काम करने की थ्योरी पर छिड़े विवाद में आनंद महिंद्रा भी कूद गए हैं। एक कार्यक्रम के दौरान जब उनसे इस थ्योरी पर बातचीत की गई तो उन्होंने इस थ्योरी को गलत बताया और इस पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने अपनी पर्सनल, प्रोफेशनल और सोशल मीडिया लाइफ पर भी खुलकर बात की। आइए जानते हैं कि 90 घंटे के वर्क वीक के बारे में वे क्या कहते हैं...

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आनंद महिंद्रा ने बताया कैसे यूज करते सोशल मीडिया?

आनंद महिंद्रा से जब पूछा गया कि वे इतनी बड़ी कंपनी के मालिक हैं। काफी काम होता होगा, रोजाना मीटिंग्स होती होंगी तो वे सोशल मीडिया पर इतने एक्टिव कैसे रहते हैं? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि कई लोग मुझसे यह सवाल पूछते हैं। वे कहते हैं कि मैंने अपना सोशल नेटवर्क एक्टिव रखने के लिए टीम लगा रखी है और ऑफिस बनाया हुआ है, जबकि ऐसा कुछ नहीं है।

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उन्होंने कहा कि वे सोशल मीडिया पर इसलिए एक्टिव नहीं रहते कि वे अकेले हैं। उनकी भी बीवी है और वह बहुत खूबसूरत है। वे उसे बहुत प्यार करते हैं। उन्हें बीवी को निहारना अच्छा लगता है। देश की जनता से, अपने कस्टमर्स से जुड़ने का यह सबसे अच्छा मंच है। इसलिए जब भी फ्री होता हूं, मुझे जब मौका मिल जाता है, सोशल मीडिया पर एक्टिव हो जाता हूं और अपने ट्वीट खुद ही लिखता हूं।

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प्रोफेशनल वर्क लाइफ बैलेंस पर क्या बोले?

सप्ताह में 90 घंटे काम करने की थ्योरी पर छिड़े विवाद पर आनंद महिंद्रा ने रिएक्शन दिया कि इस मुद्दे पर चल रही बहस गलत दिशा में जा रही है। क्योंकि काम करने के घंटों पर ध्यान दिया जा रहा है, जबकि काम के घंटे बढ़ाने से कुछ नहीं होता। 40 घंटे, 48 घंटे, 70 घंटे, 90 घंटे काम करने से कुछ नहीं होगा। काम करने के घंटे नहीं, आउटपुट ज्यादा जरूरी है। मेहनत का रिजल्ट और काम की क्वालिटी मायने रखती है।

जब उनसे पूछा गया कि वे कितने घंटे काम करते हैं तो उन्होंने जवाब दिया कि मुझसे यह मत पूछिए कि मैं कितने घंटे काम करता हूं? मुझसे यह पूछिए कि मेरे काम की क्वालिटी क्या है? इंफोसिस के फाउंडर नारायण मूर्ति की बहुत इज्जत करता हूं। उन्होंने सप्ताह में 70 घंटे काम करने का सुझाव दिया था, लेकिन उन्होंने सिर्फ घंटों-समय की बात की, मैं रिजल्ट की बात करता हूं।

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