नहीं मिले 50 लाख रुपये, जब अधूरा रह गया रतन टाटा का ये सपना
Ratan Tata Empress Mill: जाने-माने उद्योगपति और टाटा संस के मानद चेयरमैन रतन टाटा का निधन हो गया है। उन्होंने बुधवार को मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में आखिरी सांस ली। रतन टाटा की उम्र 86 साल थी। वह एक सफल उद्योगपति होने के साथ-साथ सादगी की मिसाल भी थे। उनके निधन ने देश को स्तब्ध कर दिया है। रतन टाटा ने वैसे तो अपने दादा जमशेदजी टाटा की विरासत को आगे बढ़ाते हुए कंपनी के कई बिजनेस का सफल संचालन किया, लेकिन कहा जाता है कि उन्हें एक मिल बंद होने का काफी दुख हुआ। आइए जानते हैं कि आखिर वो कौनसा फैसला था, जिसकी टीस रतन टाटा के मन में रह गई।
एम्प्रेस मिल की टीस
दरअसल, 1977 में रतन को नागपुर की Empress Mills (एम्प्रेस मिल) का काम सौंपा गया। इस कपड़ा मिल को टाटा नियन्त्रित करती थी। जब रतन टाटा ने कंपनी का कार्यभार संभाला तो पता चला कि यह टाटा समूह की कुछ बीमार इकाइयों में से एक थी। हालांकि उन्होंने इसे एक नई चुनौती के रूप में लिया, लेकिन श्रमिकों की कमी, खराब मशीनरी और उत्पादों में आ रही शिकायतों के चलते कंपनी मुनाफा कमाने में असमर्थ रही।
1986 में बंद कर दी गई मिल
हालांकि रतन टाटा के आग्रह पर कंपनी में कुछ निवेश किया गया लेकिन यह पर्याप्त नहीं था। मोटे और मध्यम सूती कपड़े के लिए बाजार में संभावनाएं नहीं बन पाईं। ऐसे में एम्प्रेस को भारी नुकसान होने लगा। कहा जाता है कि टाटा मुख्यालय अन्य ग्रुप कंपनियों से फंड को हटाकर ऐसे उपक्रम में लगाने का इच्छुक नहीं था। इसलिए कुछ टाटा के डायरेक्टर्स में शामिल नानी पालकीवाला ने ये फैसला लिया कि इस मिल को बंद कर देना चाहिए। अन्तत: इसे 1986 में बंद कर दिया गया।
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इस फैसले से बेहद निराश थे रतन टाटा
कहा जाता है कि रतन टाटा इस फैसले से बेहद निराश थे। बाद में एक इंटरव्यू में रतन टाटा ने इसका खुलासा किया था कि एम्प्रेस को मिल को जारी रखने के लिए सिर्फ 50 लाख रुपये की जरूरत थी, लेकिन कोई भी इसके लिए तैयार नहीं हुआ। रतन टाटा के लिए ये एक बड़ा घाव था। हालांकि बाद में उन्होंने टाटा समूह में कई नए इनिशिएटिव लिए और कंपनी को खूब लाभ कमाकर दिया।
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