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Success Story : 7 हजार की नौकरी, जिंदगी में लिया रिस्क...खड़ी कर दी 400 करोड़ की कंपनी

Success Story Of Mahesh Krishnamoorthy : स्कैम 1992 वेब सीरीज का एक डायलॉग है- रिस्क है तो इश्क है। इसका सीधा मतलब है कि बिना रिस्क के जिंदगी में आगे नहीं बड़ा जा सकता। जो रिस्क लेते हैं, वे जीवन में कुछ कर जाते हैं। ऐसा ही कुछ कर दिखाया कोर इंटीग्रा (Core Integra) कंपनी के एमडी महेश कृष्णमूर्ति ने:
07:00 AM Jul 10, 2024 IST | Rajesh Bharti
महेश कहते हैं कि जिंदगी में सफल होने के लिए रिस्क लेना जरूरी है।
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Success Story Of Mahesh Krishnamoorthy : अक्सर लोग कहते हैं कि डूबते जहाज की सवारी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि वह न केवल खुद डूबता है बल्कि उसमें बैठे सभी लोगों को भी डुबो देता है। लेकिन बात अगर बिजनेस की करें, तो यह 100 फीसदी सही नहीं बैठती। इसे गलत सिद्ध कर दिखाया है कोर इंटीग्रा (Core Integra) कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर (एमडी) महेश कृष्णमूर्ति ने। कभी 7462 रुपये महीने की नौकरी करने वाले महेश आज 400 करोड़ रुपये की कंपनी के एमडी हैं।

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आम बच्चों जैसा गुजरा बचपन

महेश का जन्म साधारण परिवार में हुआ था। बचपन भी आम बच्चों जैसा ही गुजरा। पिताजी सरकारी नौकरी में थे। पिता की इच्छा थी कि बच्चे अच्छे से पढ़ जाएं और अच्छी नौकरी लग जाए। महेश बताते हैं कि वह AIS बनना चाहते थे, जबकि पिताजी चाहते थे कि मैं CA बनूं और बैंक में नौकरी करूं। पढ़ाई के दौरान उन्होंने पिताजी की इच्छानुसार सीए की और 22-23 साल की उम्र में CA बन गए।

नौकरी में नहीं लगा मन

महेश बताते हैं कि CA बनने के बाद अप्रैल 2002 में उनकी पहली जॉब IDBI बैंक में लगी। उस समय सैलरी थी 7462 रुपये महीने। बैंक में जॉब करने के दौरान महेश के मन में बिजनेस करने का प्लान आया, लेकिन हालात ऐसे नहीं थे कि बिजनेस कर सकें। इसलिए जॉब को ही जारी रखा। हालांकि वह IDBI में लंबे समय तक नौकरी नहीं कर पाए और 2003 में ICICI बैंक जॉइन कर लिया। यहां आने के बाद बिजनेस दिमाग से नहीं निकल रहा था।

महेश ने एक के बाद एक कई जॉब बदलीं, लेकिन मन किसी में नहीं लग रहा था।

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स्टार्टअप में शुरू की नौकरी

साल 2007 में ICICI बैंक की जॉब छोड़कर महेश ने एक स्टार्टअप में जॉब शुरू की। इसका कारण यह जानना था कि कोई भी स्टार्टअप कैसे काम करता है, स्टार्टअप शुरू कैसे होता है, बिजनेस खड़ा कैसे होता है। शुरुआती अनुभव लेने के बाद महेश ने 7 महीने बाद ही इस स्टार्टअप की जॉब छोड़ दी और 2008 में एंजल ब्राेकिंग कंपनी के साथ जुड़ गए। यह ऐसी कंपनी थी जो लोगों को निवेश से जुड़ी जानकारी देती थी। उसी दौरान मार्केट धराशायी हो गई। साल 2009-10 में उन्होंने यहां से भी जॉब छोड़ दी और दूसरी फाइनेंस कंपनी के साथ जुड़ गए।

साल 2014 में लिया बड़ा रिस्क

महेश कुछ समय के अंतराल में एक के बाद एक जॉब बदल रहे थे, लेकिन संतुष्टि कहीं नहीं मिल रही थी। साल 2014 में महेश ने एक बड़ा रिस्क लिया। उन्होंने नौकरी छोड़ दी और बिजनेस शुरू करने का प्लान बनाया। उस समय उनका बेटा 7 साल का और बेटी 4 साल की थी। उन्होंने पत्नी से बात की और कहा कि वह अब जॉब नहीं करेंगे और बिजनेस की दुनिया में कदम रखने जा रहे हैं। उन्होंने यह बात अपने पैरेंट्स को बतानी उचित नहीं समझी क्योंकि इससे उन्हें परेशानी होती। महेश के पास 3 साल के खर्च जितनी रकम थी, जिसे इमरजेंसी फंड कह सकते हैं। महेश की पत्नी तैयार हो गई। और यहां से शुरू हुई महेश की बिजनेस जर्नी।

शुरुआत में आई परेशानी

कहते हैं कि बिजनेस शुरू करना इतना आसाना नहीं होता। शुरू में महेश को भी समझ नहीं आया कि बिजनेस किस चीज का शुरू किया जाए। इस दौरान उन्होंने यह भी सोचा कि मेरे पास सीमित रकम है। बिजनेस ऐसा होना चाहिए जिसमें ज्यादा रकम न लगे। उन्होंने अपने कॉन्टेक्स के जरिए महिंद्रा एंड महिंद्रा कंपनी की एक ऐसी कंपनी मिली जिसे महेश को चलाने की अनुमति मिली। लेकिन यहां महिंद्रा का सिर्फ नाम था, कोई दूसरा सपोर्ट नहीं। महेश को किराया भी अपनी जेब से देना था।

जॉब छोड़कर बिजनेस शुरू करने की बात महेश ने अपनी पत्नी को बताई थी।

जब फिर से जॉब में जाने का सोच लिया

बिजेनस से कोई कमाई नहीं हो रही थी। महेश की बची हुई सेविंग्स लगातार खत्म हो रही थीं। ऐसे में महेश ने कंपनी छोड़ फिर से जॉब में जाने का सोचा। उन्होंने अपने पुराने बॉस से बात की और नाैकरी पक्की हो गई। ऑफिस जॉइन करने से 3 दिन पहले ही उनकी कंपनी को दो बड़ी डील मिलीं। यहां महेश का दिमाग फिर से पलटा और बॉस से कहा कि वह ऑफिस जॉइन नहीं कर पाएंगे और बिजनेस में ही जमे रहेंगे। इसके बाद महेश ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। जीरो से शुरू हुई कंपनी को उन्होंने 350 करोड़ रुपये के सालाना रेवेन्यू तक पहुंचा दिया था।

डूबती कंपनी को दिया सहारा और बना दिया इतिहास

महिंद्रा की एक कंपनी को संभालने के दौरान महेश को अपनी कंपनी वाली फीलिंग नहीं आ रही थी। साल 2021 में उन्होंने इस कंपनी को छोड़ दिया। इस दौरान उन्होंने Core Integra कंपनी में हिस्सेदारी ली। दरअसल, इस कंपनी के पुराने मालिक का निधन हो गया था और निवेशक इसे बेचने में लगे थे। इस कंपनी पर करीब 12 से 14 करोड़ रुपये का कर्ज भी था। ऐसे में महेश को इस कंपनी में अपना भविष्य दिखाई दिया। उन्होंने निवेशकों से बातचीत की और कंपनी में बड़ी हिस्सेदारी लेकर इसके एमडी बन गए। आज कंपनी पर एक रुपया भी कर्ज का नहीं है। साल 2021 में जहां कंपनी की वैल्यू 30 करोड़ रुपये थी, अब वह 400 करोड़ रुपये हो गई है। कंपनी का रेवेन्यू 500 करोड़ रुपये रहा है।

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