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Success Story: एक अपमान ने बुलंदियों पर पहुंचाया TATA Motors को, ट्रेन के इंजन से कार बनाने तक का सफर भर देगा गर्व से

Success Story of TATA Motors : देश की प्रमुख कार निर्माता कंपनी टाटा मोटर्स कर्ज से मुक्त हो गई है। पिछले कुछ वित्त वर्ष से कंपनी का कर्जा लगातार कम हो रहा था। कंपनी पर अब कोई कर्ज नहीं है। करीब 80 साल पुरानी इस कंपनी ने अपने सफर में काफी उतार-चढ़ाव देखे हैं। कभी ट्रेन के इंजन बनाने वाली कंपनी आज कार बनाने में दुनिया की प्रमुख कंपनियाें में एक है।
10:56 AM Jun 17, 2024 IST | Rajesh Bharti
TATA Company
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Success Story of TATA Motors : देश की टॉप कार निर्माता कंपनी में शामिल टाटा मोटर्स अब कर्ज मुक्त हो गई है। यहां तक का सफर टाटा मोटर्स के लिए आसान नहीं रहा। अब से करीब 80 साल पहले इस कंपनी की शुरुआत हुई थी। शुरू में यह कंपनी ट्रेन का इंजन और सेना के लिए टैंक बनाती थी। कंपनी ने 90 के दशक में पहली फैमिली कार मार्केट में उतारी। इसके बाद कंपनी की तकदीर ही बदल गई।

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कंपनी से एक के बाद एक कई कार मार्केट में उतारीं। कंपनी ने 2010 के दशक में टाटा नैनो कार मार्केट में जिसे 'गरीब की कार' कहा गया। यह कार मार्केट में अपनी पकड़ नहीं बना पाई, जिससे कंपनी को नुकसान हुआ। जगुआर लैंड रोवर में टाटा ने हिस्सेदारी खरीदकर सभी को चौंका दिया था। साथ ही टाटा मोटर्स ने फोर्ड में भी हिस्सेदारी खरीदी। इसके पीछे भी एक कहानी छिपी है जिसके बारे में हमने नीचे बताया है। आज कंपनी SUV और इलेक्ट्रिक व्हीकल (EV) में नए रिकॉर्ड बना रही है।

आजादी से पहले हुई शुरुआत

टाटा मोटर्स की शुरुआत आजादी से पहले 1945 में लोकोमोटिव मैन्युफैक्चरर के तौर पर हुई थी। उस समय कंपनी ट्रेन का इंजन बनाती थी। जिस समय कंपनी शुरू हुई थी, उस दौरान द्वितीय विश्व युद्ध चल रहा था। इस युद्ध में टाटा ने भारतीय सेना को एक टैंक दिया था। उस टैंक को 'टाटानगर टैंक' नाम दिया गया था। इस टैंक ने दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए थे।

कुछ समय बाद कंपनी ने ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में कदम रखा और मर्सिडीज बेंज के साथ पार्टनरशिप की। साल 1954 में कंपनी ने कमर्शियल व्हीकल लॉन्च किया। हालांकि मर्सिडीज बेंज के साथ कंपनी का समझौता 1969 में खत्म हो गया। इसके बाद कंपनी ने 1991 में पैसेंजर व्हीकल में कदम रखा। कंपनी ने साल 1991 में पहली कार लॉन्च की। इसका नाम टाटा सिएरा था। इसे टाटा की पहली एसयूवी कार भी कहा जाता है। यह पूरी तरह से देसी कार थी।

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TATA Indica

इंडिका ने बदली किस्मत

टाटा सिएरा के बाद कंपनी ने टाटा ऐस्टेट और टाटा सूमो नाम से काम मार्केट में उतारीं। इनमें टाटा सूमो को जबरदस्त कामयाबी मिली, लेकिन सबसे ज्यादा कामयाबी मिली टाटा इंडिका से। यह टाटा की पहली फैमिली कार थी। इसे 1998 में लॉन्च किया गया था। यह कार देखते ही देखते देशभर में छा गई। इसके आकर्षक डिजाइन के कारण यह लोगों को काफी पसंद आई।

इस कार ने मारुति को टक्कर देना शुरू कर दिया था। इस कार की लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इस कार के लॉन्च होने के एक हफ्ते के अंदर ही 1.15 लाख ऑर्डर आ गए थे। मात्र दो साल में ही यह अपने सेगमेंट में सबसे ज्यादा बिकने वाली कार बन गई। कंपनी ने साल 2008 में इसे बनाना बंद कर दिया। हालांकि इस दौरान सेकेंड जेनरेशन की कार इंडिका वेस्टा के नाम से लॉन्च की गई। इसी दौरान टाटा मोटर्स ने उस समय की सबसे पावरफुल एसयूवी टाटा सफारी लॉन्च की। यह आइकॉनिक एसयूवी थी।

साल 2009 में उतारी दुनिया की सबसे सस्ती कार

टाटा मोटर्स ने साल 2009 में दुनिया की सबसे सस्ती कार मार्केट में उतारी। इस कार का नाम दिया टाटा नैनो। उस समय कार की शुरुआती कीमत मात्र एक लाख रुपये थी। इसे निम्न आय वर्ग के लोगों की कार बताया गया। इस कार को मार्केट में लाने का उद्देश्य उस वर्ग को फोकस करना था जो बाइक तो खरीद सकता है लेकिन उस समय मार्केट में मौजूद कारों को नहीं खरीद सकता था।

हालांकि इस कार सड़क पर उतरने के बाद इसमें सुरक्षा से संबंधित कई खामियां सामने आईं जिसके कारण यह कारण लोकप्रिय नहीं बन पाई। साल 2018 में टाटा ग्रुप के तत्कालीन चेयरमैन साइरस मिस्त्री ने इसे एक विफल प्रोजेक्ट बताया और मई 2018 में इसका प्रोडक्शन बंद कर दिया।

इलेक्ट्रिक गाड़ियों पर फोकस

हैचबैक, सेडान और एसयूवी कारों को लॉन्च करने के बाद कंपनी ने इलेक्ट्रिक कारों (EV) में कदम रख दिया और साल 2020 में पहली EV टाटा नेक्सन लॉन्च कर दी। साल 2020 में यह भारत में बेस्ट सेलिंग कार बन गई। इसके बाद कंपनी कई EV कार लॉन्च कर चुकी है।

TATA EV

जब रतन टाटा ने अपमान का बदला कंपनी खरीदकर लिया

टाटा मोटर्स की कई विदेशी कंपनियों को खरीदा है। इनमें जगुआर लैंड रोवर, देवू, हिस्पानो, मार्कोपोलो आदि प्रमुख हैं। इनमें फोर्ड कंपनी की जगुआर लैंड रोवर के बिकने का किस्सा काफी दिलचस्प है। दरअसल, साल 1999 में टाटा ग्रुप अपना कार बिजनेस फोर्ड कंपनी को बेचना चाहता था। इस सिलसिले में टाटा ग्रुप के चेयरमैन रतन टाटा अपनी टीम के साथ अमेरिकी शहर डेट्रॉइट स्थित कंपनी के ऑफिस गए। वहां रतन टाटा ने कंपनी के चेयरमैन बिल फोर्ड से करीब 3 घंटे मुलाकात की।

इस बैठक में रतन टाटा को अपमान झेलना पड़ा क्योंकि उनसे कहा गया था कि आपको कारो के बारे में कुछ नहीं पता। इसके बाद रतन टाटा ने अपने बिजनेस को बेचने का फैसला टाल दिया और भारत वापस आ गए। यहां उन्होंने अपना सारा ध्यान टाटा मोटर्स पर लगा दिया। करीब 9 साल बाद यानी 2008 में स्थिति बदल गई। अब फोर्ड कंपनी बिकने की कगार पर थी। फोर्ड की सब्सिडियरी कंपनी जगुआर और लैंड रोवर 2008 की मंदी के बाद दिवालिया होने की कगार पर थीं। उस समय टाटा ने फोर्ड की इन दोनों कंपनियों को खरीद लिया। इस डील के बाद बिल फोर्ड ने रतन टाटा को धन्यवाद दिया और कहा कि आपने हमारे ऊपर बहुत बड़ा अहसान किया है।

ऐसे कर्ज से फ्री हुई कंपनी

टाटा मोटर्स कारों के साथ बस, ट्रक और दूसरे वाहन भी बनाती है। कंपनी सेना के लिए भी गाड़ियां बनाती है। टाटा मोटर्स का प्रदर्शन लगातार सुधर रहा है। कंपनी को फायदा भी हो रहा है। साल 2024 में खत्म हुए वित्तीय वर्ष में कंपनी कर्ज से मुक्त हो गई है। साल 2021 में कंपनी पर 15,500 करोड़ रुपये का कर्ज था। इसके बाद कर्ज में कमी आती गई। साल 2022 में यह कर्ज घटकर 10,300 करोड़ रुपये रह गया। इसके ठीक अगले साल यानी 2023 में कर्ज और कम रहकी 6,200 करोड़ रुपये रह गया। इसके बाद वित्त वर्ष 2023-24 में यह कंपनी पूरी तरह कर्जमुक्त हो गई। अब कंपनी प्रॉफिट में हैं। वित्त वर्ष 2024 में कंपनी का रेवेन्यू बढ़कर 43,800 करोड़ रुपये हो गया है।

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Ratan TataTata Motors
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