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Economic Survey से कामकाजी घंटों पर बहस में कैसे आया ट्विस्ट? समझिए पूरा मामला

Working Hours Debate: 31 जनवरी को पेश किए गए देश के आर्थिक सर्वेक्षण में कुछ ऐसी बातें कही गई हैं, जिनसे कामकाजी घंटों को लेकर नई बहस शुरू हो गई है।
10:32 AM Feb 01, 2025 IST | News24 हिंदी
economic survey से कामकाजी घंटों पर बहस में कैसे आया ट्विस्ट  समझिए पूरा मामला
Photo Credit: Garrigues

Economic Survey: देश के आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 ने कामकाजी घंटों को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन द्वारा तैयार किए गए इस सर्वेक्षण में कहा गया है कि कर्मचारियों के कामकाजी घंटों पर लगी सीमाएं भारत के आर्थिक विकास के लिए अच्छी नहीं हैं। बता दें कि इंफोसिस के फाउंडर नारायण मूर्ति और एलएंडटी के चेयरमैन एसएन सुब्रमण्यन की इस विषय पर सलाह को लेकर काफी बवाल मचा था।

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विकास के लिए नहीं अच्छा

आर्थिक सर्वेक्षण में यह कहा गया है कि श्रमिकों के लिए कामकाजी घंटों के लिए निर्धारित सीमाएं भारत के आर्थिक विकास के लिए अच्छी नहीं हैं। इससे छोटे और मझोले उद्योगों का विकास सीमित हो सकता है। सर्वेक्षण में आगे कहा गया है कि व्यापार वृद्धि को बढ़ावा देने वाले अनुकूल माहौल को बढ़ावा देना रोजगार और आर्थिक विकास को आगे बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण है। हालांकि, ऐसे उदाहरण हैं जहां श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए बनाए गए श्रम नियम शायद अनजाने में फर्मों, विशेष रूप से छोटे और मध्यम उद्यमों के विकास में बाधा डालते हैं। ऐसा करने से रोजगार सृजन भी कम होता है।

कानून का किया जिक्र

फैक्ट्रीज एक्ट (1948) की धारा 51 में कहा गया है कि किसी भी वयस्क कर्मचारी से सप्ताह में 48 घंटे से ज्यादा काम नहीं लिया जा सकता। इसका हवाला देते हुए सर्वेक्षण में कहा गया है कि यह धारा एक दिन और एक सप्ताह में एक कर्मचारी के कामकाजी घंटों की संख्या को सीमित करती है। जबकि कई देशों में इस सीमा को सप्ताह और महीनों के बीच औसत करके कामकाजी घंटों को फ्लेक्सिबल बनाया जाता है।

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ILO का दिया हवाला

सर्वेक्षण में कहा गया है कि कामकाजी घंटों की यह सीमा निर्माताओं को बढ़ती मांग को पूरा करने तथा वैश्विक बाजारों में भाग लेने से रोकती है। कई देशों के श्रम कानूनों के अनुसार निर्माता समय-समय पर कामकाजी घंटों की सीमा को औसत करके उत्पादन बढ़ा सकते हैं, जिससे उन्हें लाभ मिलता है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) भी निर्माताओं को 3 सप्ताह में काम के घंटों की औसत सीमा तय करने की स्वतंत्रता देने की सिफारिश करता है।

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प्रभावित होती है क्षमता

आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत में काम के घंटों की सीमा से विनिर्माण की लागत, समय और जोखिम बढ़ सकता है। इसमें आगे कहा गया है कि काम के घंटों पर प्रतिबंध श्रमिकों के स्वास्थ्य की रक्षा करने और अधिक काम को रोकने के लिए लगाए गए हैं। हालांकि, काम के घंटों पर विभिन्न सीमाओं के चलते परेशानी उत्पन्न हो सकती है और इससे श्रमिकों की कमाई की क्षमता कम हो जाती है।

कमाई का दिया हवाला

सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि श्रमिकों के लिए अधिक कामकाजी घंटे की अनुमति देने से उनकी वित्तीय स्थिति में सुधार आ सकता है, क्योंकि इससे उन्हें ओवरटाइम करने का अवसर मिलता है और कमाई बढ़ती है। सर्वेक्षण के अनुसार, नए लेबर कानूनों के तहत महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश जैसे कुछ राज्यों ने ओवरटाइम घंटों की सीमा 75 घंटे से बढ़ाकर 144 घंटे कर दी है।

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