छत्तीसगढ़ के विस सदन में उठा फर्जी जाति प्रमाण पत्र के जरिए नौकरी का मुद्दा, कैबिनेट मंत्री ने दिया जवाब
Chhattisgarh Fake Caste Certificate In Health Department: छत्तीसगढ़ में फर्जी जाति प्रमाण पत्र के जरिए नौकरी का किस्सा काफी पुराना है, लेकिन किसी निष्कर्ष तक नहीं पहुंचने की वजह से यह मुद्दा हमेशा तरो-ताजा रहता है। छत्तीसगढ़ विधानसभा के मानसून सत्र के तीसरे दिन सत्तापक्ष के ही विधायक अजय चंद्राकर ने स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल को शासकीय नर्सिंग महाविद्यालय में फर्जी जाति प्रमाण पत्र के जरिए हुई नियुक्तियों की जांच और उन पर हुई कार्रवाई पर घेर दिया। वहीं, छत्तीसगढ़ के शासकीय नर्सिंग महाविद्यालय में फर्जी जाति प्रमाण पत्र से चार नियुक्तियों की शिकायत स्वास्थ्य विभाग के पास पहुंची है। इसमें से दो की जांच पूरी तथा दो की प्रक्रियाधीन है। सदन में एक सवाल के जवाब में स्वास्थ्य मंत्री श्याम बिहारी जायसवाल ने बताया कि रायपुर के शासकीय नर्सिंग महाविद्यालय में पदस्थ सहायक प्राध्यापक वर्षा गुर्देकर, प्रदर्शक वीणा डेविड, सह प्राध्यापक नीलम पाल और राजनांदगांव शासकीय नर्सिंग महाविद्यालय में पदस्थ सह प्राध्यापक ममता नायक के खिलाफ शिकायतें मिली है।
शिकायतों के आधार पर उच्च स्तरीय प्रमाणीकरण छानबीन समिति और शासन की ओर से जांच की गई है। उच्च स्तरीय प्रमाणीकरण छानबीन समिति ने ममता नायक और नीलम पाल की जाति प्रमाण पत्र की वैधानिकता प्रमाणिक पाई है। वहीं, वर्षा गुर्देकर और वीणा डेविड के जाति प्रमाण पत्र के संबंध में जांच प्रक्रियाधीन है।
जांच अधिकारी ने नीलम पाल के अन्य पिछड़ा वर्ग से संबंधित होकर अनुसूचित जनजाति वर्ग से पदोन्नति का लाभ लिए जाने के संबंध में रिव्यू डीपीसी की अनुशंसा की है। रिव्यू डीपीसी के लिए कार्रवाई प्रक्रियाधीन है। वर्षा गुर्देकर के संबंध में शासन की ओर से 18 बार टीएल बैठक हुई है, लेकिन छानबीन समिति के सामने मामला प्रक्रियाधीन होने से कोई निर्णय नहीं लिया गया है। एक सवाल के जवाब में मंत्री ने बताया कि जांच के दौरान पदोन्नति दी जा सकती है।
टीबी की दवाई में आई थी कमी
मंत्री जायसवाल ने बताया कि टीबी के मरीजों को छह माह दवा दी जाती है। मरीज को एक बार में एक माह की दवा दी जाती है। सेंट्रल टीबी डिवीजन द्वारा दवा की आपूर्ति में कमी के कारण राज्य में टीबी की दवाई के बफर स्टाक में कमी आई थी। इस वजह से मरीजों को एक बार में केवल एक सप्ताह की दवाई उपलब्ध कराई जा रही थी। समय पर दवा नहीं मिलने के कारण ड्रग रेजिस्टेंट की समस्या का प्रकरण सामने नहीं आया है।
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