Delhi Assembly Elections 2025: मुस्तफाबाद सीट पर ताहिर हुसैन के उतरने से किसे फायदा, किसे नुकसान? जानें पूरा समीकरण
Delhi Assembly Elections 2025: दिल्ली में विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों ने तैयारियां तेज कर दी हैं। दिल्ली की 70 सीटों के लिए होने वाला चुनाव फरवरी में हो सकता है। चुनाव आयोग जनवरी में इसका ऐलान कर सकता है। राजधानी दिल्ली में विधानसभा चुनाव के लिए मुकाबला काफी दिलचस्प हो गया है क्योंकि यहां कई सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबला होने की उम्मीद है।
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) ने मुस्तफाबाद सीट पर ताहिर हुसैन को उतारकर इस हॉट सीट पर मुकाबला दिलचस्प बना दिया है। ताहिर आम आदमी पार्टी (AAP) के पूर्व पार्षद रह चुके हैं। वह 2020 में हुए दिल्ली दंगों में भी आरोपी थे। मुस्तफाबाद के कई इलाकों में ही दंगे हुए थे। आइए जानते हैं कि ताहिर हुसैन के विधानसभा चुनाव में उतरने के क्या मायने हैं और मुस्तफाबाद सीट का क्या समीकरण हैं?
हाजी यूनुस का कटा टिकट
अरविंद केजरीवाल ने मुस्तफाबाद सीट से पूर्व विधायक हाजी यूनुस का टिकट काटा है। युनुस ने पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी जगदीश प्रधान को 20704 वोटों से शिकस्त दी थी। इस बार AAP ने आदिल अहमद खान को टिकट दिया है। जिनकी विधानसभा सीट पर अच्छी पकड़ है। वह पार्टी के शीर्ष नेताओं के खास माने जाते हैं।
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बीजेपी कांग्रेस ने नहीं की प्रत्याशी की घोषणा
बीजेपी-कांग्रेस ने फिलहाल प्रत्याशी का ऐलान नहीं किया है। कांग्रेस ने पिछली बार पूर्व विधायक हसन अहमद के बेटे अली मेहंदी को मैदान में उतारा था। हालांकि उन्हें सिर्फ 5300 वोट ही मिल सके। अनुमान लगाया जा रहा है कि कांग्रेस इस बार उम्मीदवार बदल सकती है।
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मुस्लिम वोटों के ध्रुवीकरण की उम्मीद
जानकारी के अनुसार, इस सीट पर करीब 35 से 40 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है। ऐसे में ताहिर हुसैन के मैदान में उतरने से मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण होगा। ताहिर AAP के वोट काट सकते हैं। जिसका फायदा बीजेपी के प्रत्याशी को मिल सकता है। लगभग 60 प्रतिशत हिंदू वोटरों के सहारे बीजेपी इस सीट पर जीत के समीकरण साध सकती है।
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जगदीश प्रधान हासिल कर चुके हैं जीत
इस सीट से बीजेपी के जगदीश प्रधान 2015 में जीत हासिल कर चुके हैं। खास बात यह है कि 2015 के चुनाव में बीजेपी ने सिर्फ 3 सीट ही हासिल की थीं। जिसमें से एक मुस्तफाबाद थी। हालांकि 2008 से अब तक हुए चार चुनावों में तीन बार मुस्लिम प्रत्याशी ने ही जीत दर्ज की है, लेकिन वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो बीजेपी की पार लग सकती है।
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