कौन हैं Usha Mehta? फिल्म Ae Watan Mere Watan में जिनका किरदार निभा रही हैं Sara Ali Khan
Usha Mehta: 'यह है कांग्रेस का रेडियो। जो भारत में कहीं से 42.34 मीटर दूर है...' यह शब्द थे ऊषा महेता के। 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन को अंग्रेजों के खिलाफ आखिरी बड़ा आंदोलन माना जाता है। जब सारे भारतीयों ने एक-जुट होकर आजादी का नारा बुलंद किया था। बदकिस्मती यह थी कि महात्मा गांधी सहित देश के सभी दिग्गज नेता जेल में थे और खुशकिस्मती यह कि कई युवाओं ने आंदोलन की बागडोर अपने हाथों में ले ली थी। इसी फेहरिस्त में एक नाम 22 साल की युवती ऊषा मेहता का भी शामिल था। रेडियो के जरिए लोगों में आजादी का बिगुल फूंकने वाली ऊषा मेहता (Usha Mehta) की कहानी किसी बहादुर स्वतंत्रता सेनानी से कम नहीं है।
8 साल की उम्र में लगाए 'साइमन गो बैक' के नारे
ऊषा मेहता का जन्म 1920 को गुजरात के सूरत में हुआ था। ऊषा के पिता ब्रिटिश राज में जज थे। स्वतंत्रता आंदोलन के प्रति ऊषा का झुकाव पिता को रास नहीं आया। मगर ऊषा भी परिवार से छिपकर स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने लगी। 1928 में उन्होंने ना सिर्फ साइमन कमीशन के खिलाफ 'साइमन गो बैक' के नारे लगाए बल्कि वानर सेना का भी हिस्सा बनी थीं। इस दौरान ऊषा हाथों में तिरंगा लेकर भाग रही थीं। तभी पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया और ऊषा सड़क पर गिर पड़ी थीं।
गांधी जी से पहली मुलाकात
गुजरात में ही ऊषा की मुलाकात महात्मा गांधी से हुई। तब ऊषा की उम्र महज 5 साल की थी। इस दौरान उन्होंने गांधी जी को अहमदाबाद में एक यात्रा के समय देखा था, जिसके बाद गांधी जी ने अपने गांव में एक शिविर लगाया। इसमें नन्हीं ऊषा ने भी भाग लिया और वो गांधीवादी विचारधारा से बेहद प्रभावित हुई थीं।
मुंबई में पूरी की पढ़ाई
1930 में ऊषा मेहता के पिता सेवानिवृत हो गए और जब ऊषा 12 साल की हुईं तो पूरा परिवार मुंबई आ गया। मुंबई में ऊषा ने अपनी पढ़ाई पूरी की. जिसके बाद वो आजादी की लड़ाई में एक्टिव हो गईं। 1939 में विल्सन कॉलेज से दर्शनशास्त्र की डिग्री हासिल करने के बाद ऊषा मेहता ने कानून की पढ़ाई शुरू की। मगर 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन की कमान संभालने के बाद उन्होंने कानून की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी।
रेडियो की शुरुआत
कांग्रेस ने 9 अगस्त 1942 को मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान से भारत छोड़ो आंदोलन शुरू करने की योजना बनाई। मगर एक दिन पहले 8 अगस्त को ही अंग्रेजी हुकूमत ने कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। इस लिस्ट में महात्मा गांधी का नाम भी शामिल था। ऐसे में ऊषा मेहता सहित कई लोगों ने मुंबई के उसी मैदान पर तिरंगा फहराकर आंदोलन का शंखनाद किया था। लोगों में आजादी की आग जलाने के लिए ऊषा मेहता ने सभी से छिप पर एक रेडियो चैनल की शुरुआत की।
गिरफ्तार हुईं ऊषा मेहता
जब कांग्रेस के सभी नेता सलाखों के पीछे थे। तब ऊषा मेहता के रेडियो प्रसारण ने लोगों को एक-जुट करके आजादी का नारा बुलंद किया। हालांकि यह रेडियो कहां से प्रसारित होता था? इसकी किसी को भनक भी नहीं लगी। एक रेडियो प्रसारण ने अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें हिलाकर रख दी थी। मगर 12 नवंबर 1942 को ऊषा मेहता पकड़ी गईं और अंग्रेजों ने उन्हें जेल में डाल दिया।
मुंबई के उसी मैदान में कहा अलविदा
1946 में अंतरिम सरकार बनी और मोरारजी देसाई देश के गृह मंत्री। तब मोरारजी देसाई के कहने पर ऊषा मेहता को जेल से रिहा किया गया। ऊषा मेहता ने 80 साल की लंबी जिंदगी जीने के बाद 11 अगस्त 2000 को आखिरी सांस ली। 9 अगस्त 2000 को भारत छोड़ो आंदोलन की सालगिरह पर ऊषा मेहता ने मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान में फिर तिरंगा फहराया था, जिसके बाद उन्हें बुखार हुआ और 2 दिनों बाद उन्होंने इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया था।
ऊषा मेहता पर बन रही है फिल्म
ऊषा मेहता की जिंदगी पर अब एक फिल्म बन रही है, जिसमें बॉलीवुड अदाकारा सारा अली खान ऊषा मेहता का किरदार अदा करेंगी। कन्नन अय्यर के निर्देशन में बनने वाली फिल्म 'ऐ वतन मेरे वतन' (Ae Watan Mere Watan) 21 मार्च को सिनेमाघरों में दस्तक देने वाली है।