पिता की सीख, सिस्टम की मार और खून में कुछ कर गुजरने का जज्बा, ऐसे ही एक फौजी नहीं बनता 'योद्धा'
नैन्सी तोमर,
Yodha: जब एक आम इंसान 'वर्दी' पहनता है, तो वो उसके लिए सिर्फ वर्दी नहीं होती बल्कि उसका, उसके परिवार का और उसके देश का सम्मान होती है। फिर चाहे वो कोई भी 'योद्धा' क्यों ना हो? आज सिनेमाघरों में सिद्धार्थ मल्होत्रा की फिल्म 'योद्धा' रिलीज हुई। इस फिल्म को लोगों ने पसंद किया और नापसंद भी। लोगों ने अपने हिसाब से फिल्म को रेटिंग दी, लेकिन बात अगर इस फिल्म की कहानी की करें तो इसमें सच ही दिखाया गया है कि कैसे एक 'जवान' सिस्टम की मार झेलता है और जब वो टूट रहा होता है तो असल में वो और भी मजबूत हो रहा होता है और यही सिस्टम की मार उसे बना देती है एक फौजी से 'योद्धा'।
हम रिस्क नहीं ले सकते
एक वो फौजी जो देश के लिए अपनी जान दे देता है और अपने बच्चे को भी देश के लिए जीना-मरना सिखाता है, लेकिन समय के आगे किसकी चलती है और अपने देश के लिए वो फौजी अपनी जान दे देता है, लेकिन अपने पीछे छोड़ जाता है वो अपना 'योद्धा'। अपने पिता की दी गई सीख पर आगे बढ़ता है अरुण कट्याल। हमेशा अपने देश के लिए ईमानदार और अपनी जान देने वाला एक फौजी, जिसने एक 'हाईजैक' प्लेन को बचाने के लिए वो सब किया जो उसे करने के लिए कहा गया, लेकिन हालात कंट्रोल में होते हुए भी एक अकेले 'फौजी' को अकेला छोड़ दिया जाता है, सिर्फ ये कहकर कि नहीं नहीं... हमें और टाइम चाहिए, हम रिस्क नहीं ले सकते। इसका नतीजा ये होता है कि देश को बड़ी शर्मनाक चोट का सामना करना पड़ता है और वो होती है भारतीय साइंटिस्ट की मौत, जो हाईजैकर्स कर देते हैं।
कानून, आदेश और बड़ी-बड़ी बातें
अब इस पूरी घटना का ठीकरा आता है 'योद्धा' यानी अरुण कट्याल के सिर, क्योंकि उन्होंने आदेशों का पालन नहीं किया और वो हमेशा अपने हिसाब से काम करना चाहते हैं, लेकिन कोई उसे सिचेएशन में जाकर नहीं सोचता, जिसमें कोई भी फौजी उस टाइम रहा होगा। सब कानून, आदेश और बड़ी-बड़ी बातें करके एक 'योद्धा' के हौंसले को तोड़ने का काम करते हैं और नतीजा ये होता है कि उन्हें या तो सस्पेंड कर दिया जाता है या फिर उनका तबादला।
आगे बढ़ता रहा 'योद्धा'
अब जब कोई भी फौजी अपनी जी-जान लगाकर भी सम्मान ना पा सके, तो ना सिर्फ उसका मनोबल टूटेगा बल्कि उसकी निजी जिंदगी पर भी इसका असर होगा, जो अरुण कट्याल के साथ हुआ। अपने पिता की कही बातें और उनके बताए रास्ते पर चलते हुए एक बार फिर 'योद्धा' आगे बढ़ता है और फिर से शुरुआत करता है, लेकिन नतीजा ये होता है कि अब जो देश को बचाने का काम कर रहा होता है उसे ही देश का दुश्मन बनाकर सबके सामने पेश कर दिया जाता है, लेकिन भारतीय फौजी है... इतनी जल्दी कैसे हार मानेगा।
असली हीरो तो 'योद्धा'
हिम्मत टूटना तो दूर-दूर तक नहीं जानता.... इसलिए एक बार फिर उसी पुराने हालातों के साथ 'योद्धा' आगे बढ़ता है और ना सिर्फ खुद का साबित करता है बल्कि अपने मुल्क और अपनी इज्जत को सबके सामने साबित कर देता है। फिल्म 'योद्धा' में अरुण कट्याल ने बेहद शानदार तरीके से दुश्मनों को छठी का दूध याद दिलाया और अपना खोया हुआ सम्मान वापस पाया। क्योंकि इस फिल्म का असली हीरो तो 'योद्धा' ही है।
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