दादा ब्रिटिश अफसर; पोता निकला बागी, पूरे कराची को कैसे 'शोले' के रहीम चाचा ने कराया बंद?

A K Hangal Death Anniversary: फिल्म 'शोले' में 'रहीम चाचा' का किरदार निभाने वाले अवतार कृष्ण हंगल ने 26 अगस्त के दिन दुनिया को अलविदा कहा था। चलिए जानते हैं उनकी कहानी, आखिर कैसे उन्होंने कराची में एक हार दर्जियों की हड़ताल करा दी थी।

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A K Hangal Death Anniversary

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A K Hangal Death Anniversary: 'इतना सन्नाटा क्यों है भाई', फिल्म शोले का ये फेमस डायलॉग तो आपको याद ही होगा। फिल्म में 'रहीम चाचा' का किरदार निभाकर बॉलीवुड में अमिट छाप छोड़ने वाले अवतार कृष्ण हंगल, जिन्हें हम एके हंगल के नाम से जानते हैं, उन्होंने सिर्फ भारतीय सिनेमा को अपनी अदाकारी से प्रभावित नहीं किया बल्कि उनके जीवन की कहानियां भी काफी प्रेरणादायक है। बहुत कम लोग जानते हैं कि उनकी वजह से पाकिस्तान के कराची में दर्जियों की हड़ताल हो गई थी। इसके बाद स्वतंत्रता संग्राम में भी उनका अहम योगदान रहा।

कराची में दर्जियों की हड़ताल

साल 1946 में कराची में जब अवतार कृष्ण हंगल ने एक टेलरिंग वर्कशॉप पर काम किया तो उन्हें और दूसरे कर्मचारियों को अचानक बिना किसी पूर्व सूचना के नौकरी से हटा दिया गया। इस फैसले से नाराज होकर पूरे शहर के दर्जियों ने हड़ताल कर दी। ये हड़ताल कराची में पहली बार हुई और इसके नेतृत्व की बागडोर एके हंगल के हाथ में थी। इस हड़ताल से ही हंगल का वो अंदाज दिख गया था जहां वो अपने इरादों के हमेशा से पक्के नजर आते थे।

A K Hangal Death Anniversary

आजादी की जंग में अहम योगदान

हंगल का जन्म 1 फरवरी 1914 को सियालकोट में कश्मीरी पंडित परिवार में हुआ था। स्वतंत्रता आंदोलन के दिनों में हंगल ने अपने जवाने के दिनों में ही क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया था। भगत सिंह और उनके साथियों की गिरफ्तारी और फांसी ने उनपर गहरे रूप से असर डाला और उन्होंने इस समय में क्रांतिकारी गतिविधियों में एक्टिवली पार्ट लिया। आपको बता दें हंगल के दादा जहां पेशावर के पहले मैजिस्ट्रेट थे वहीं उनके पिता भी ब्रितानी कर्मचारी थे ऐसे में हंगल ने अपने ही परिवार को बागी तेवर दिखाए।

कराची में कम्युनिस्ट राजनीति की ओर रुख

दूसरे विश्व युद्ध के बाद हंगल ने कराची में कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल होकर राजनीति की दुनिया में कदम रखा। उन्होंने कराची टेलरिंग वर्कर्स यूनियन का गठन किया और श्रमिक अधिकारों की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई। कराची में नेवी विद्रोह के दौरान भी उन्होंने सक्रिय रूप से समर्थन किया।

जेल में भी अपने काम से पीछे नहीं हटे

विभाजन के वक्त कराची में दंगे भड़क उठे थे और हंगल ने कम्युनिस्ट पार्टी की ओर से शांति की अपील की। हालांकि, विभाजन के बाद उन्हें और उनके साथी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। हंगल ने जेल में भी अपने काम को जारी रखा और अपनी पत्नी के माध्यम से पार्टी तक संदेश पहुंचाते रहे।

अंतिम दिनों में कराची की यात्रा

अपने जीवन के अंतिम सालों में भी हंगल ने कराची का दौरा किया, जहां उन्होंने अपने पुराने दोस्तों और साथियों से मुलाकात की। 2005 में अपने अंतिम दौरे पर उन्होंने कराची आर्ट्स काउंसिल में अपने जीवन के अनुभव साझा किए।

भारतीय सिनेमा मे हंगल की भूमिका

अपनी पत्नी के गुजर जाने के बाद उन्होंने अपने बेटे की अकेले ही परवरिश की थी। हंगल साहब सिर्फ 18 साल के थे, जब उन्होंने नाटकों में एक्ट करना शुरू कर दिया था। उन्होंने साल 1936 से 1965 तक स्टेज पर एक्टिंग भी की थी। 50 की उम्र में उन्होंने फिल्मों में काम करना शुरू किया था। फिल्म 'तीसरी कसम' से उन्होंने फिल्मी करियर की शुरुआत की जिसके बाद उन्हें बड़े बुजुर्ग के किरदार मिला करते थे। एके हंगल की यादगार फिल्मों में 'नमक हराम', 'शोले', 'बावर्ची', 'छुपा रुस्तम', 'अभिमान', 'शौकीन' और 'गुड्डी' शामिल हैं। अभिनेता ने 26 अगस्त 2012 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

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