IC 814 अचानक एटीसी की रडार से हुआ गायब, Kandahar Hijack के वो 7 दिन, जब अटकी भारत की सांसें
IC 814: The Kandahar Hijack: बीते दिन यानी 29 अगस्त को नेटफ्लिक्स पर IC 814: The Kandahar Hijack सीरीज रिलीज हुई है। ये सीरीज किसी काल्पनिक कहानी पर आधारित नहीं है बल्कि आज से 25 साल पहले हुई एक सच्ची घटना पर आधारित है। ये सिर्फ एक प्लेन हाईजैक की कहानी नहीं है बल्कि वो मजबूरी भी है, जिसको तत्कालीन भारत सरकार को ना चाहते हुए भी मानना पड़ा था।
एटीसी की रडार से गायब नहीं 'हाईजैक' हुआ था IC 814
इस सीरीज में काठमांडू से कंधार तक के उन 7 दिनों की कहानी है, जिसका दर्द आज भी कहीं ना कहीं भारत को होता है। जब काठमांडू के त्रिभुवन इंटरनेशनल एयरपोर्ट से भारतीय विमान IC 814 ने उड़ान भरी, तो उस वक्त प्लेन में भारतीय यात्रियों के अलावा, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, कनाडा, फ्रांस, इटली, जापान, स्पेन और अमेरिका के भी लोग थे। सब बेहद खुश थे क्योंकि हर कोई अपनी मंजिल से महज एक या डेढ घंटे की दूरी पर थे, लेकिन कौन जानता था कि यात्री जिसे एक या डेढ घंटे की दूरी समझ रहे हैं, वो उनकी जिंदगी के बेहद बुरा पल होने वाला था और ऐसा ही हुआ क्योंकि जिस विमान ने भारत आने के लिए शाम साढ़े चार बजे उड़ान भरी थी, वो पांच बजे तक एटीसी की रडार से गायब हो गया। गायब नहीं... 'हाईजैक' हो गया।
IC 814 का हुआ अपहरण
भारतीय विमान IC 814 को लेकर जहां पूरा सिस्टम जानने के लिए बेकरार था कि आखिर अचानक विमान हवा में कहां गायब हो गया, तो कुछ देर बाद खबर मिलती है कि IC 814 कहीं गायब नहीं बल्कि 'हाईजैक' हो गया है। नीचे से लेकर ऊपर तक, आम से लेकर खास तक सभी की सांसे थम जाती है क्योंकि भले ही IC 814 हाईजैक हुआ था, लेकिन अपहरणकर्ताओं की तरफ से कोई डिमांड नहीं आई थी। अब सवाल ये था कि जब अपहरणकर्ताओं की कोई मांग ही नहीं है, तो भला IC 814 को हाईजैक क्यों किया गया?
कैप्टन पर उठे सवाल, क्यों कुछ देर और नहीं रोक सके विमान?
IC 814 की कमान उस दिन कैप्टन देवी शरण के हाथों में थी। जब विमान ने काठमांडू से उड़ान भरी तो वो दिल्ली आने वाला था, लेकिन प्लेन बीच रास्ते में ही हाईजैक हो गया, तो जाहिर है कि उसमें उतना ईंधन नहीं था कि प्लेन को अपहरणकर्ताओं के कहे अनुसार उड़ाया जा सके। अपहरणकर्ताओं का कहना था कि विमान अगर कहीं लैंड होगा तो वो सिर्फ एक जगह है और वो है 'काबुल', लेकिन विमान में ईंधन नहीं होने की वजह से इसको पहले ही लैंड कराना था और जगह तय की गई। हाईजैक के दौरान पहली बार IC 814 अमृतसर में लैंड हुआ, तब भारत सरकार ने अपने बल का प्रयोग करना चाहा, लेकिन अपहरणकर्ताओं को भारत सरकार के हर एक कदम पर शक था, इसलिए बिना ईंधन भरवाए ही कैप्टन का फिर से प्लेन उड़ाने के लिए कहा गया।
अफगानिस्तान के कंधार पहुंचा IC 814
कैप्टन देवी शरण ने ना चाहते हुए भी फिर से उड़ान भरी। जब विमान को अमृतसर से ईंधन नहीं मिला, तो अपहरणकर्ताओं ने इसे लाहौर में लैंड करने के लिए कहा, लेकिन जैसे ही कैप्टन देवी शरण ने पाकिस्तान एटीसी से विमान की इमरजेंसी लैंडिंग की बात कही, तो पाकिस्तान सरकार ने विमान की लैंडिंग की परमिशन नहीं दी। कैप्टन के पास कोई रास्ता नहीं था और इसके चंद मिनटों बाद ही भारतीय प्लेन आईसी 814 ने रात 8 बजकर 7 मिनट पर लाहौर में लैंडिंग की। इसके बाद विमान दुबई गया, जहां पर कुछ यात्रियों को रिहा भी किया गया और फिर IC 814 पहुंचा अफगानिस्तान के कंधार।
भारत के लिए संजीवनी बना तालिबान का सख्त मिजाज
भारतीय विमान IC 814 अफगानिस्तान के कंधार में लैंड तो हो गया, लेकिन सवाल अभी भी वही था कि आखिर इसके पीछे का मकसद क्या है? कंधार जाने के बाद अपहरणकर्ताओं ने अपनी मांग रखी और कहा कि उनके 36 आतंकी साथियों को रिहा किया जाए। साथ ही 20 करोड़ अमेरिकी डॉलर बतौर फिरौती दिए जाएं। इतना ही नहीं बल्कि इसके अलावा एक कश्मीरी अलगाववादी की लाश भी उन्हें सौंपी जाए। हालांकि भारत सरकार ने इसे मानने से मना कर दिया। जब बात नहीं बनी, तो मामले में तालिबान ने एंट्री ली और कहा कि कंधार की सरजमीं पर कोई खून-खराबा नहीं होगा और पैसे और लाश की मांग उन्हें छोड़नी होगी। तालिबान सरकार का सख्त रवैया अपहरणकर्ताओं पर भारी पड़ा।
तीन आतंकियों के बदले IC 814
इसके बाद अब कहानी अपने आखिरी मोड़ पर आ गई और अपहरणकर्ताओं ने तीन आतंकियों मौलाना मसूद अजहर, अहमद जरगर और शेख अहमद उमर सईद को रिहा करने की मांग रखी। भारत सरकार को ना चाहते हुए भी इन तीनों को रिहा करना पड़ा। उस वक्त भारत सरकार के सामने एक तरफ उनके शहीद जवानों की कुर्बानी थी और दूसरी ओर वो बेकसूर 155 बंधक यात्री, जिसके लिए मौजूद भारत सरकार ने इस कड़े फैसले को लिया था। इस समझौते के बाद ही उन 155 बंधक यात्रियों को दक्षिणी अफगानिस्तान के कंधार एयरपोर्ट से रिहाई मिली थी। हालांकि सरकार के इस फैसले पर उनकी खूब आलोचना की गई थी, लेकिन मासूमों को बचाने के अलावा उस वक्त कोई और रास्ता नहीं था। जब 7 दिनों के बाद 8वें दिन भारतवासी अपने वतन लौटे, तो हर किसी की आंखें नम थीं। 25 साल पुरानी ये कहानी आज भी उतना ही भावुक करती है, जितना इस घटना ने उस वक्त किया था।
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