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अटल बिहारी वाजपेयी बनकर दर्शकों की उम्मीदों पर खरे उतरे पंकज त्रिपाठी, पढ़ें रिव्यू

Pankaj Tripathi starrar Main Atal Hoon Movie Review :अटल बिहारी वाजपेयी की जिंदगी के 94 साल के जीवन और 6 दशक के राजनीतिक करियर को दिखाने में पूरी तरह से कामयाब होते दिखी है पंकज त्रिपाठी की 'मैं अटल हूं'। एक नजर डालें रिव्यू पर।
07:13 PM Jan 19, 2024 IST | News24 हिंदी
अटल बिहारी वाजपेयी बनकर दर्शकों की उम्मीदों पर खरे उतरे पंकज त्रिपाठी  पढ़ें रिव्यू

Pankaj Tripathi starrar Main Atal Hoon Movie Review (अश्विनी कुमार) : देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पर बनी फिल्म 'मैं अटल हूं' सिनेमाघरों में 19 जनवरी को सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। फिल्म में पंकज त्रिपाठी ने अटल बिहारी वाजपेयी का किरदार निभाया है, जो विश्व भर में शांति का प्रतीक बने। जिनकी कविताओं में प्रेम और क्रांति का अद्भुत संगम देखने को मिला। महज 2 घंटे 20 मिनट में उनके राजनीतिक जीवन को दिखाना काफी टेढ़ी राह रही है, जिसमें जरा सी गलती पूरी की पूरी कहानी बिगाड़ सकती थी। जाहिर है कि मैं अटल हूं बनाने में तीन शख़्सियत जुड़ी, जिसने वाजपेयी की जिंदगी के 94 साल के जीवन और 6 दशक के राजनीतिक करियर के सबसे महत्वपूर्ण पड़ावों को दिखाया है। आइए एक नजर डालते हैं फिल्म के रिव्यू पर।

ये है फिल्म की कहानी

मैं अटल हूं के जरिए फिल्म की कहानी को डॉक्यू-ड्रामा जैसे फॉर्मेट में भुनाने की कोशिश की गईहै। फिल्म की शुरुआत RSS की शाखाओं में वाजपेयी जी की मेहनत और लगन को दिखाती है। बचपन में बोलने की कला सीखने का एक छोटा सबक पिता से सीखने की घटना से लेकर, नागपुर में आरएसएस मुख्यालय में हेडगेवार जी को सुनना और उनके निधन से लगे धक्के तक की कहानी तेजी से आगे बढ़ती है। कहानी में ठहराव आता है अटल जी के प्रेम प्रसंग से जिसे देखने के बाद दर्शक भी चौंक जाते हैं। हालांकि राजकुमारी के साथ अटल जी के प्रेम के पन्ने खुलते हैं लेकिन बंदी भी जल्दी हो जाते हैं। सिर्फ़ एक गाने में इस संबध की गहराई समझ आती है।

फर्स्ट हॉफ़ तक नहीं होंगे बोर

डायरेक्टर रवि जाधव ने ऋषि वर्मन के साथ मिलकर फिल्म 'मैं अटल हूं' में वाजपेयी जी के जीवन के कई अहम पड़ावों को दिखाया है। फिल्म में उनके पिता से उनकी दोस्ती, आरएसएस प्रचारक बनने के लिए वकालत छोड़ना, राष्ट्र-धर्म पत्रिका से उनके लेखनी और व्यक्तिव का निखरना, दीन दयाल उपाध्याय जी के साथ उनका पिता-पुत्र जैसा रिश्ता, श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ जनसंघ के ज़रिए राजनीति में उतरना, संसद में 4 सांसदों के साथ देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू जी को अपना मुरीद बनाने जैसे किस्से हैं। इसके अलावा इंदिरा गांधी से उनका टकराव, इमरजेंसी, विदेश मंत्रालय पहुंचने से लेकर कई अहम किस्से देखने को मिले। ये सारी कहानी फिल्म के फर्स्ट हॉफ़ तक है।

मंज़िल तक पहुंचाती है सेकेंड हॉफ़

बात करें फिल्म के सेकेंड हॉफ में रवि जाधव ने भारतीय जनता पार्टी का उदय, आडवाणी जी के साथ राम मंदिर का आंदोलन, अटल जी का राजकुमारी के परिवार को अपनाना, राजनीति से विछोह के बीच प्रधानमंत्री का उम्मीद्दवार बनना और अपने 13 महीनों के कार्यकाल में पोखरन परमाणु परीक्षण, लाहौर बस यात्रा और करगिल युद्ध में विजय गाथा लिखने तक की घटनाओं को जगह दी है। चूकि समय काफी कम रहा जिसके कारण कहानी में काफी कुछ छूट जाता है। इसके बाद भी फिल्म को देखने के बाद आपको ऐसा लगेगा कि आपने काफी हद तक वाजपेयी जी को जान लिया है।

पंकज त्रिपाठी ने जीता दिल

'मैं अटल हूं' में वाजपेयी जी के किरदार में रंगे एक्टर पंकज त्रिपाठी ने अपनी पूरी जान लगा दी है। पूरी फिल्म में उन्हें देखकर कहीं भी ऐसा नहीं लगता कि वह अटल जी की मिमिक्री कर रहे हैं। कहना गलत नहीं होगा कि ये किरदार पंकज त्रिपाठी को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता बनाती है। वहीं वाजपेयी जी के पिता के किरदार में पीयूष मिश्रा ने भी अपने किरदार के साथ इंसाफ किया है जबकि राजकुमारी के किरदार में एकता कौल ने काफी काबिल-ए-तारीफ काम किया है। दीनदयाल उपाध्याय के किरदार में, सुषमा स्वराज और प्रमोद महाजन के किरदार में कास्ट किए गए कलाकार बस लुक्स मैच करने जैसे हैं। ग्वालियर के अटला से अटल बिहारी वाजपेयी बनने की इस कहानी में जैसे देश की कहानी नज़र आती है। अटल जी को जानने और पंकज त्रिपाठी को सहारने के लिए ये फिल्म देखी जानी चाहिए।

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