कभी रंग लगाकर, तो कभी हाथ पकड़कर... Jadunathjee Maharaj कौन? जिसने वासना मिटाने के लिए लिया धर्म का सहारा
Who is Jadunathjee Maharaj: आमिर खान के बेटे जुनैद खान की फिल्म 'महाराज' ओटीटी पर रिलीज हो गई है। 21 जून को फिल्म को नेटफ्लिक्स पर रिलीज किया गया। हालांकि पहले फिल्म 14 जून को रिलीज होनी थी, लेकिन गुजरात हाईकोर्ट ने इसकी रिलीज पर रोक लगा दी थी। इसके बाद फिल्म को रिलीज कर दिया गया। इस फिल्म में 'महाराज' की उस सच्चाई को दिखाया गया, जिसे लोग आस्था और धर्म के नाम पर बंधी अंधविश्वास की पट्टी की वजह से देख नहीं पाए। भगवान के दर्शन के नाम पर महिलाओं के साथ घिनौनी हरकतें करना और उनको छोड़ देना तो महाराज के लिए जैसे 'दूध में से मक्खी निकालकर फेंकने जैसा था'। फिल्म में 'महाराज' नाम के जिस किरदार ने इतना लाइमलाइट चुराई है, वो असल जिंदगी में भी रहा है। आखिर कौन है ये 'महाराज'?
Jadunathjee Maharaj कौन?
ऐसा पहली बार नहीं है, जब धर्म के रक्षक उसके भक्षक बने हैं। जी हां, कई बार इस तरह की चीजें सामने आ जाती हैं। फिल्म 'महाराज' में भी यही दिखाया गया है कि कैसे धर्म की रक्षा करने वाले ने धर्म को ही मोहरा बनाकर आस्था और भक्ति के नाम पर लोगों के भरोसे को तोड़ा। जदुनाथजी महाराज, जिसने धर्म की रक्षा करने का जिम्मा लिया था। वही 'महाराज', जो लोगों को ज्ञान का पाठ पढ़ाता था। वही महाराज जो लोगों को भगवान तक पहुंचने का रास्ता दिखाता था... लेकिन ऐसा सच में नहीं था, क्योंकि ये सब सिर्फ बातों में ही अच्छा लगता है।
16वीं शताब्दी का सच
'महाराज' की अगर बात करें तो वो 16वीं शताब्दी में हिंदू धर्म के वैष्णव पुष्टिमार्ग संप्रदाय के धार्मिक नेता थे। 16वीं शताब्दी में वल्लभ द्वारा पुष्टिमार्ग की स्थापना की गई थी और यह कृष्ण को सर्वोच्च मानकर उनकी पूजा किया करते हैं। संप्रदाय का नेतृत्व वल्लभ के प्रत्यक्ष पुरुष वंशजों के पास रहा, जिनके पास महाराजा की उपाधियां थी।
आस्था और धर्म, रक्षक या भक्षक
अरे भई... जिस 'महाराज' ने आस्था और धर्म का सहारा लेकर केवल अपनी वासना शांत की हो, भला वो कैसे धर्म का रक्षक हो सकता है। जी हां, जदुनाथजी महाराज ने भगवान का सहारा लेकर ना सिर्फ अपनी शारीरिक भूख को शांत किया बल्कि इन सब में बलि चढ़ी, तो उन बच्चियों की जिन्हें बचपन से महाराज की गाथा सुनाई जाती थी। उन महिलाओं की जिनके पति उन्हें खुद इस नरक में धकेलेते थे। उन प्रियसीयों की जो अपनी पति नहीं बल्कि 'महाराज' की इच्छाओं को पूरी करती गईं।
हिल गईं अंधविश्वास की जड़ें
धर्म और आस्था की ये दास्तां, अंधविश्वास में बदल गई और जब इसकी जड़े हिली तो वार सीधा 'महाराज' के अंहकार पर हुआ। भला कोई अकेला कैसे उस नींव को हिलाने की क्षमता रखता है, जिसे अंधविश्वास के पानी से सींचा गया हो? लेकिन नींव हिली भी, मंजिल ढही भी... क्योंकि पाप का घड़ा जब भरता है, तो सुख का आना तय होता है और ऐसा ही हुआ जब महाराज ने खुद की जिद्द पूरी करने के लिए 'महाराज मानहानि केस' दायर किया।
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