Explainer: क्या सप्ताह में 4 दिन काम सच में बढ़ा सकता है प्रोडक्टिविटी? जानिए एक्सपर्ट्स की राय
Can Four-Day Work Weeks Increase Productivity : क्या काम के घंटे काम करने से प्रोडक्टिविटी बढ़ सकती है? यह सवाल इस समय जरूर चर्चा में है लेकिन आपको बता दें कि 19वीं शताब्दी से ही विकसित देशों में काम के घंटों में लगातार कमी आई है। बेल्जियम और कुछ नॉर्डिक देश सप्ताह में काम के दिनों की संख्या 4 करने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं, स्पेन और पुर्तगाल काम के घंटों में कमी करके प्रोडक्टिविटी बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। इस रिपोर्ट में जानिए कि यह आइडिया कहां से आया और एक्सपर्ट्स का इसे लेकर क्या कहना है।
90 के दशक में आया था आइडिया
सप्ताह में 4 दिन काम के सिस्टम का जन्म 90 के दशक में काम के समान बंटवारे के लिए राजनीतिक और आर्थिक मांग के परिणामस्वरूप हुआ था। इसके पीछे का उद्देश्य काम के घंटों को इसलिए कम करना था ताकि ज्यादा संख्या में लोगों को रोजगार मिल सके। फ्रांस के अर्थशास्त्री पियरे लैराउटुरौ ने साल 1933 में यह आइडिया दिया था और 1996 में काम के घंटों के ऑर्गेनाइज करने को लेकर डि रोबियन कानून के साथ इसे टेस्ट किया गया था। लेकिन, इस कानून को साल 2000 की शुरुआत में वापस ले लिया गया था।
इसके स्थान पर फ्रांस में लेबर रिफॉर्म लाया गया था जिसमें सप्ताह में 35 घंटे काम का नियम कर दिया गया था। बता दें कि फ्रांस के कई बड़े कारोबारियों ने इस आइडिया को भर्तियां बढ़ाने के लिए बेहतर तरीका बताया था। इसके अलावा जर्मनी की दिग्गज कार निर्माता कंपनी फॉक्सवैगन ने साल 1994 में 30,000 नौकरियां बचाने के लिए सप्ताह में 4 दिन काम की व्यवस्था लागू की थी। लेकिन साल 2006 में उसने भी इस पर रोक लगा दी थी। कोविड-19 वैश्विक महामारी और इसके चलते लगाए गए कई लॉकडाउन के बाद इस पर बहस फिर शुरू हुई जो अब जोर पकड़ रही है।
कई देशों में लागू हो रहा है ये सिस्टम
न्यूजीलैंड की सरकार ने कोरोना महामारी के बाद चार दिन काम की व्यवस्था पेश की थी। इसके पीछे उसका उद्देश्य प्रोडक्टिविटी बढ़ाना और वर्क-लाइफ बैलेंस को बेहतर करना था। इसके अलावा जापान में हिताशी और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कई कंपनियां भी इस सिस्टम को अपना रही हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार यह व्यवस्था लागू करने के बाद माइक्रोसॉफ्ट के कर्मचारियों की प्रोडक्टिविटी में 40 प्रतिशत तक का इजाफा हुआ है। इसके अलावा जर्मनी, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, पुर्तगाल और स्पेन समेत कई यूरोपीय देशों में भी इसे लेकर गंभीरता से विचार-विमर्श किया जा रहा है।
इस पर एक्सपर्ट्स का क्या मानना है?
इसे लेकर एक्सपर्ट्स का कहना है कि वर्कफोर्स की ताकत और प्रोडक्टिविटी बढ़ाने के लिए कंपनियों या देशों को काम करने के घंटों में बदलाव करने के अलावा और भी कई फैक्टर्स पर ध्यान देने की जरूरत है। बेल्जियम और नॉर्डिक देशों ने सप्ताह में 4 दिन काम का सिस्टम लागू किया है। यहां काम के घंटों में बदलाव नहीं किया गया है। इसके तहत कर्मचारियों के वेतन में कोई कटौती नहीं की गई है। इटली का एक बैंक भी इसी व्यवस्था पर काम कर रहा है। बता दें कि सप्ताह में 4 दिन काम लेकिन काम के घंटे पहले जैसे ही रखने की व्यवस्था अब खासी लोकप्रिय हो रही है।
एक्सपर्ट कहते हैं कि प्रोडक्टिविटी बढ़ाने के लिए सबसे जरूरी है कि काम करने का तरीका बदला जाए ताकि उसकी क्वालिटी बेहतर हो सके। हमें काम के घंटों पर फोकस करने के स्थान पर काम के नेचर पर बात करनी चाहिए। काम करने के नए तरीके खोजने के बजाय जीने के नए तरीकों की तलाश करनी चाहिए। हालांकि, एक वर्ग का यह भी मानना है कि यह सिस्टम कर्मचारियों को तनाव-दबाव से मुक्ति दे सकता है और उन्हें अपने निजी जीवन और काम के बीच बेहतर तरीके से संतुलन बनाने का अवसर दे सकता है। इससे उनका जीवन और प्रोडक्टिविटी दोनों में इजाफा होगा।