बैंकों में पैसा जमा कराने में क्यों आ रही कमी? बढ़ते अंतर ने बढ़ाई चिंता; ये कदम उठा रहे बैंक
Slowdown In Bank Deposit Growth : भारत का बैंकिंग सेक्टर पिछले कुछ महीनों से क्रेडिट के मुकाबले डिपॉजिट्स में धीमी विकास दर का सामना कर रहा है। इसे लेकर भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) का ताजा डेटा बताता है कि जून तिमाही में बैंक डिपॉजिट 11.7 प्रतिशत की दर से बढ़ा तो बैंक क्रेडिट के बढ़ने की दर 15 प्रतिशत रही। यानी दोनों के बीच अंतर बढ़ गया है।
क्रेडिट और डिपॉजिट्स के बीच अंतर बढ़ने से कर्ज देने वालों के लिए एसेट-लायबिलिटी में असंतुलन की स्थिति बन जाती है। इसमें क्रेडिट से मतलब उस राशि से है जो बैंक अपने कस्टमर्स को एक ब्याज दर के साथ कर्ज के रूप में देता है। वहीं, डिपॉजिट का मतलब उस राशि से है जो कस्टमर बैंक में जमा कराता है। इस राशि पर उसे बैंक की ओर से इंटेरेस्ट यानी ब्याज भी मिलता है।
इस अंतर ने केंद्र सरकार और आरबीआई दोनों के लिए चिंता का माहौल बना दिया है। दोनों ने कर्जदाताओं से कहा है कि वे इनोवेटिव प्रोडक्ट्स के जरिए डिपॉजिट के मोबिलाइजेशन पर ज्यादा फोकस करें। इस रिपोर्ट में जानिए उन कारणों के बारे में जिनकी वजह से क्रेडिट और डिपॉजिट के बीच यह अंतर बढ़ रहा है और इस समस्या के समाधान के लिए बैंक अब क्या कदम उठा रहे हैं।
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जून 2024 में खत्म होने वाली तिमाही में बैंक डिपॉजिट की दर 11.7 प्रतिशत रही। वहीं, दूसरी ओर बैंक क्रेडिट की दर 15 प्रतिशत रही। 9 अगस्त को पूरे हुए पखवाड़े के लिए आरबीआई का डेटा बताता है कि बैंक क्रेडिट, डिपॉजिट से आगे निकल गया है। इस दौरान बैंक क्रेडिट में 14 प्रतिशत तो डिपॉजिट में 11 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। इसी को लेकर सरकार इस समय चिंतित है।
क्यों कम हो रहे डिपॉजिट?
इसका एक कारण यह है कि लोग अब अपनी बचत बैंक में जमा करने की जगह शेयर बाजार जैसी कैपिटल मार्केट्स में लगाना बेहतर मानने लगे हैं। कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौरान भारतीय कैपिटल मार्केट्स ने डायरेक्ट और इनडायरेक्ट चैनल्स के जरिए रिटेल एक्टिविटी में तेजी देखी थी। पिछले एक साल से भारतीयों में अपनी बचत को कैपिटल मार्केट्स में लगाने का रुख बढ़ा है।
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इकोनॉमिक सर्वे 2023-24 के अनुसार नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरीज लिमिटेड (एनएसडीएल) और सेंट्रल डिपॉजिटरी सर्विसेज लिमिटेड (सीडीएसएल) दोनों के साथ डीमैट अकाउंट्स की संख्या बढ़ी है। वित्त वर्ष 2024 में ऐसे अकाउंट्स की संख्या 15.14 लाख हो गई जो वित्त वर्ष 2023 में 11.45 करोड़ रुपये थी। इसके साथ ही म्यूचुअल फंड्स में भी निवेश बढ़ता हुआ दिखा है।
चिंता के कारण क्या-क्या?
इस साल जुलाई में आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा था कि पारंपरिक रूप से अपनी सेविंग को रखने के लिए बैंकों पर भरोसा करते आए लोग अब कैपिटल मार्केट की ओर जा रहे हैं। परिवारों के स्वामित्व वाली वित्तीय संपत्तियों में बैंक डिपॉजिट की हिस्सेदारी अभी भी सबसे ज्यादा है लेकिन अब लोग अपनी सेविंग्स म्यूचुअल फंड, इंश्योरेंस फंड और पेंशन फंड में ज्यादा लगा रहे हैं।
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शक्तिकांत दास के अनुसार क्रेडिट के मुकाबले धीमा डिपॉजिट रेट सिस्टम को लिक्विडिटी की समस्याओं में फंसा सकता है। उन्होंने बैंकों से अनुरोध किया था कि वह बैंक डिपॉजिट के रेट को बढ़ाने के लिए कदम उठाएं। पिछले महीने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी कहा था कि बैंक डिपॉजिट बढ़ाना जरूरी है और इसके लिए बैंकों को अपने पारंपरिक तरीकों पर फोकस करना चाहिए।
क्या कदम उठा रहे हैं बैंक?
डिपॉजिट की धीमी होती रफ्तार के बीच बैंक स्पेशल डिपॉजिट स्कीम्स का सहारा ले रहे हैं। पिछले कुछ समय में एसबीआई, बैंक ऑफ बड़ौदा, बैंक ऑफ इंडिया, आरबीएल बैंक, बंधन बैंक और बैंक ऑफ महाराष्ट्र जैसे कर्ज देने वाले संस्थानों ने कई स्पेशल रिटेल डिपॉजिट स्कीम्स लॉन्च की हैं। एसबीआई ने अमृत वृष्टि योजना लाई है जो 444 दिन से डिपॉजिट पर 7.25 प्रतिशत ब्याज देती है।
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इसके अलावा बैंक ऑफ बड़ौदा ने डिपॉजिट के प्रति लोगों का इंटेरेस्ट बढ़ाने के लिए मानसून धमाका नाम की एक योजना लॉन्च की है। इसमें 399 दिन के डिपॉजिट पर 7.25 प्रतिशत का ब्याज और 333 दिन के डिपॉजिट पर 7.15 प्रतिशत के हिसाब से ब्याज मिलता है। लेकिन, शेयर बाजार जैसे कैपिटल मार्केट्स में कहीं ज्यादा बेहतर रिटर्न की उम्मीद लोगों को इस ओर जाने से रोक रही है।