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Gujarat: क्या है डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट? जिसके तहत सूरत में मुस्लिम महिला की संपत्ति हुई सील

Gujarat: गुजरात में डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट विधेयक साल 1986 में पेश किया गया था। 1991 में इसे कानून बनाया गया। इसी एक्ट के तहत सूरत में एक संपत्ति को सील कर दिया गया है। यहां हम बता रहे हैं क्या है गुजरात का डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट?
12:18 AM Feb 10, 2025 IST | News24 हिंदी
gujarat  क्या है डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट  जिसके तहत सूरत में मुस्लिम महिला की संपत्ति हुई सील
सांकेतिक तस्वीर।

Gujarat Disturbed Areas Act News: गुजरात में कपड़ा उद्योग और हीरे के कारोबार के लिए चर्चित शहर सूरत में डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट के तहत बड़ी कार्रवाई का एक मामला सामने आया है। दरअसल, सूरत के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट (DM) ने हाल ही में पुराने शहर के सलाबतपुरा क्षेत्र में एक संपत्ति को सील कर दिया। इस संपत्ति की मालिक एक हिंदू महिला थी, जिसने इसे एक मुस्लिम महिला को बेच दिया था। हालांकि, बिक्री की प्रक्रिया अभी पूरी नहीं हुई थी। इसे जिला कलेक्टर ने अशांत क्षेत्र अधिनियम (Disturbed Areas Act) का उल्लंघन बताया।

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संपत्ति बेचने से पहले कलेक्टर को करना होता है आवेदन

गुजरात डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट की धारा 5 ए और बी के तहत संपत्ति बेचने वाले शख्स को मंजूरी के लिए कलेक्टर के पास एक आवेदन करना होता है। इसके बाद कलेक्टर इसकी जांच करता है और सभी पक्षों की सुनवाई करता है। इस दौरान सौदे को मंजूरी देने या मना करने का अधिकार पूरी तरह कलेक्टर के पास होता है।

क्या है डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट ?

बता दें कि गुजरात में डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट विधेयक साल 1986 में पेश किया गया था और 1991 में इसे कानून बनाया गया। डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट के मुताबिक, अशांत घोषित क्षेत्रों में संपत्ति बेचने से पहले कलेक्टर की अनुमति लेना अनिवार्य है। इस अधिनियम के तहत हर 5 साल में एक नई अधिसूचना जारी की जाती है और आवश्यकता के अनुसार इसमें नए क्षेत्र जोड़े जाते हैं। आवेदन में विक्रेता को एक हलफनामा (Affidavit) देना होता है। जिसमें कहा गया हो कि उसने अपनी मर्जी से संपत्ति बेची है और उसे सही दाम मिले हैं। अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर कारावास और जुर्माना हो सकता है।

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क्या है इस कानून का मकसद?

गुजरात सरकार के अनुसार, इस एक्ट का मकसद राज्य के कुछ हिस्सों में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को रोकना है। 2020 में गुजरात सरकार ने इस एक्ट की कुछ धाराओं में संशोधन भी किया था। जिसके बाद कलेक्टर को और भी ज्यादा पावर मिल गई है। संशोधन होने से पहले कलेक्टर विक्रेता की तरफ से दिए जाने वाले हफलनामे के बाद संपत्ति को ट्रांसफर करने की इजाजत देता था। लेकिन, संशोधन के बाद कलेक्टर को यह पता लगाने का अधिकार मिला कि क्या बिक्री के जरिए किसी खास समुदाय से संबंधित लोगों के ध्रुवीकरण की संभावना है।

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3 से 5 साल तक हो सकती है जेल

हालांकि, राज्य सरकार को कलेक्टर के फैसले की समीक्षा और जांच करने का अधिकार भी दिया गया है। अगर मामले को लेकर कोई अपील दायर नहीं भी की जाती है तब भी राज्य सरकार चाहे तो इसकी जांच कर सकती है। संशोधन के बाद इस एक्ट के उल्लंघन के लिए कारावास को 6 महीने से बढ़ाकर 3 से 5 साल कर दिया गया है।

हाईकोर्ट में कई मामलों को चुनौती

गुजरात हाईकोर्ट में डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट में संपत्ति के ट्रांसफर के कई मामलों को चुनौती दी गई है। अकेले वडोदरा में ही 2016 से समुदायों के बीच संपत्ति की बिक्री के 5 मामलों को चुनौती दी गई है। पड़ोसियों ने बिक्री पर आपत्ति जताते हुए याचिका दायर की थी। इनमें से कम से कम 3 मामलों में कोर्ट ने तीसरे पक्ष की दखलअंदाजी को रोकते हुए सौदे के पक्ष में आदेश दिए। बता दें कि संशोधनों की संवैधानिकता को भी हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। जिसके बाद अक्टूबर 2023 में गुजरात सरकार ने हाईकोर्ट को बताया कि वह संशोधनों पर फिर से विचार कर रही है और नए संशोधन लेकर आएगी।

इस एक्ट के तहत कौन-कौन से क्षेत्र हैं शामिल?

डिस्टर्ब्ड एरिया एक्ट के तहत अहमदाबाद , वडोदरा, सूरत , आनंद, अमरेली, भावनगर, पंचमहल और अन्य जिलों के कई इलाके आते हैं और नए क्षेत्रों को इसमें जोड़ा जा रहा है। गुजरात सरकार ने पिछले महीने आणंद जिले के मौजूदा इलाके में इस एक्ट के लागू होने की अवधि को अगले 5 साल के लिए बढ़ा दिया था।

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