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'जाटों की नाराजगी और सत्ता विरोधी लहर...' 10 साल बाद भी हरियाणा में नैरेटिव क्यों नहीं सेट कर पाई BJP

Haryana Politics: हरियाणा में इस बार बीजेपी के लिए कांग्रेस की चुनौती से पार पाना आसान नहीं होगा। हालांकि कांग्रेस स्वयं गुटबाजी के दौर से गुजर रही है। कुछ दिनों पहले तोशाम से विधायक किरण चौधरी और उनकी बेटी श्रुति चौधरी बीजेपी में शामिल हो गए। ऐसे में हरियाणा में इस बार के विधानसभा चुनाव रोचक होने जा रहे हैं?
01:27 PM Jun 22, 2024 IST | Rakesh Choudhary
हरियाणा में बीजेपी को तीसरी जीत की तलाश?
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Haryana Politics: लोकसभा चुनाव में उम्मीद के मुताबिक नतीजे नहीं मिलने के बाद बीजेपी का पूरा जोर 4 राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों पर हैं। पार्टी ने चारों राज्यों के लिए चुनाव प्रभारियों की नियुक्ति भी कर दी है। इन चार में दो राज्यों में पार्टी की सरकार है। वहीं हरियाणा में पिछले 10 सालों से पार्टी सत्ता में है। भाजपा ने मनोहर लाल खट्टर को साढ़े 9 साल तक सीएम बनाकर रखा। लोकसभा चुनाव 2024 से ऐन पहले जेजेपी से सीटों पर सहमति नहीं बनने के बाद बीजेपी ने जेजेपी ने गठबंधन तोड़ लिया।

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फिलहाल प्रदेश में बीजेपी नायाब सिंह सैनी बहुमत से दूर सरकार चला रहे हैं लेकिन संवैधानिक बाधाओं के चलते कांग्रेस अविश्वास प्रस्ताव नहीं ला पा रही है। ये तो आज की स्थिति है। अब चलते हैं बीजेपी के कामकाम पर कि आखिर क्यों 10 साल सत्ता में रहने के बावजूद वह जनता की नब्ज नहीं पकड़ पाई। राजनीति के जानकारों की मानें तो हरियाणा में इस बार क्लोज फाइट है। पिछले 10 सालों से पार्टी सत्ता में है लेकिन पार्टी के खिलाफ राज्य में सत्ता विरोधी लहर है। इस बार के लोकसभा चुनाव के नतीजों को देखें तो आप पाएंगे कि 5 सीटों पर बीजेपी, तो 5 सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की है।

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लोकसभा में 5 सीटों पर सिमटी बीजेपी

लोकसभा चुनाव के नतीजों का विश्लेषण करने पर एक बात तो साफ है कि पार्टी को सीएम बदलने का फायदा नहीं मिला। सीएम लोकसभा चुनाव में अपना गृह जिला अंबाला तक नहीं बचा पाए। फिलहाल बीजेपी राज्य में फ्री स्कीम्स चलाकर लोगों की नाराजगी दूर करने की कोशिश कर रही है लेकिन यह सब कयासों की दुनिया की बातें हैं। हकीकत तो जनता ज्यादा जानती है।

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लोकसभा चुनाव में पार्टी को उम्मीद के अनुसार सीटें नहीं मिली। पिछले दो लोकसभा चुनावों में क्लीन स्वीप कर रही पार्टी इस बार 5 सीटों पर सिमट गई। भाजपा की 5 सीटों पर जीत का मार्जिन भी कम हो गया। जबकि कांग्रेस की 5 सीटों पर जीत का मार्जिन बढ़ा है। विधानसभा वार अगर नतीजे देखें तो कांग्रेस अभी बहुमत की स्थिति में है। अगर यही नतीजे विधानसभा चुनाव में भी रहते है, तो 90 सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस को 46 सीटें मिलती दिख रही है।

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गांवों में पार्टी का वोट घटा

प्रदेश के गांवों में भाजपा की स्थिति बहुत ही खराब है। किसान वर्ग दिल्ली में चले किसान आंदोलन, एमएसपी गारंटी जैसे कानून नहीं बनने के कारण मोदी से नाराज है। कई जिलों में स्थिति ऐसी है कि बीजेपी गांवों में नहीं घुस पा रही है। 2020 से 2022 के बीच चले किसान आंदोलन में भाजपा सरकार के सख्त रवैये के कारण किसान मोदी सरकार से नाराज हैं। वहीं किसानों को लगता है कि अग्निवीर योजना के कारण हमारे बेटे सेना में भर्ती नहीं हो पाए। ऐसे में प्रदेश के गांवों में बीजेपी की हालत खस्ता है। हालांकि इसकी भरपाई के लिए पार्टी भावांतर जैसी योजनाएं चला रही हैं लेकिन जमीन पर उसका असर नहीं आ रहा है।

किसान-जाटों की नाराजगी भारी

वहीं बात करें अगर जातियों की तो हरियाणा मोटे तौर पर जाट और गैर जाट में बंटा है। इसके अलावा कुछ संख्या जट सिखों की भी है। वहीं मेवात के क्षेत्र में मुसलमान भी ठीक-ठीक आबादी में बसते हैं। पार्टी ने 2014 में जीत हासिल करने के बाद जाट सीएम न बनाकर पंजाबी समुदाय से आने वाले मनोहरलाल खट्टर को सीएम बनाया था। ऐसे में जाट नाराज नहीं हुए। उन्होंने इस बीजेपी की विकास के विजन से जोड़कर देखा। हालांकि जाट आरक्षण आंदोलन के कारण 2019 के चुनाव में जाट वोटर्स बीजेपी से छिटक गए। क्योंकि आंदोलन के बाद सरकार ने दमनात्मक कार्रवाई की थी। 2019 के चुनाव में बीजेपी को मात्र 40 सीटें मिली। जबकि 2014 में उसने अपने दम पर सरकार बनाई थी। हालांकि वोट शेयर में कमी नहीं आई। इस समय तक जाटों की नाराजगी मोदी से नहीं बल्कि खट्टर से थी।

हरियाणा में गैर जाट वोटर्स के भरोसे बीजेपी

वहीं गैर जाट राजनीति भाजपा ने 2014 के शुरुआत से करनी शुरू कर दी। जब वह पहली बार सत्ता में आई। पार्टी ने पंजाबी समुदाय के मनोहरलाल खट्टर को सीएम बनाया। ऐसे में पंजाबी, बनिया, सैनी, सुनार, लोहार और सामान्य वर्ग के मतदाताओं का साथ बीजेपी को मिला। जबकि मेवात क्षेत्र में बसने वाले अहीर और मुस्लिम कांग्रेस और बीजेपी में बंटे हुए हैं। मुस्लिम वोटर्स परंपरागत रूप से कांग्रेस और यादव शुरू से ही बीजेपी के समर्थक रहे हैं।

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