इंटरनेट की लत भी पहुंचा सकती है अस्पताल, अधूरी जानकारी को लेकर भी टेंशन में हैं लोग
Internet Effects On Health: दुनियाभर में लाखों-करोड़ों लोग डेली इंटरनेट का यूज करते हैं। कई लोग काम के कारण इंटरनेट इस्तेमाल करते हैं, तो कुछ सिर्फ टाइमपास के लिए घंटों एक्सप्लोर करते रहते हैं। इंटरनेट की लत कई लोगों को ऐसी लगती है कि इस कारण अक्सर उनकी मेंटल हेल्थ के लिए नुकसानदायक साबित हो रहा है।
एक ऐसा ही इंटरनेट से जुड़ा मामला है सुनील शर्मा का, जो कुछ अरसे से ब्रेन ट्यूमर या फिर दिमाग में किसी और परेशानी की आशंका से घबराए हुए है। क्योंकि उन्हें कई दिनों से सिरदर्द की शिकायत थी। डॉक्टर ने बताया कि उन्हें ऐसी कोई समस्या नहीं है। दरअसल, उन्होने कुछ अरसे पहले सोशल मीडिया पर एक विडियो में देखा था कि अगर आपको अक्सर सिरदर्द रहता है तो यह ब्रेन ट्यूमर हो सकता है।
इसी वजह से उन्हें ब्रेन ट्यूमर का डर सता रहा था। बेशक कोविड के बाद लोग अपनी सेहत को लेकर काफी जागरुक हुए हैं और इस वजह से वे आस-पड़ोस के लोगों की सलाह व मोबाइल-सोशल मीडिया के जरिए अपनी हेल्थ पर नजर रखते हैं। हांलाकि इन्हीं सब के जरिए कई तरह के भ्रम भी लोगों के बीच पनप रहे हैं। इस कारण से सामान्य समस्या भी बड़ी बन जाती है, जिसके चलते लोगों को एंग्जायटी, नींद न आना और घबराहट जैसी समस्याओं से जूझना पड़ता है।
15-20% लोगों पर सोशल मीडिया का असर
मेडिकल एक्सपर्ट्स का कहना है कि उनके पास आने वाले लोग कई दूसरे माध्यमों से मिली जानकारियों के बाद उन तक पहुंचते हैं। सेहत के मामले में फैल रही गलत जानकारियां और धारणाएं बड़ी समस्या बन रही हैं। हमारे पास आने वाले लगभग 15-20% पेशेंट्स ऐसे होते हैं, जो सोशल मीडिया से प्रभावित होकर आते हैं। वहीं, करीब 40-45% ऐसे होते हैं, जो कहीं न कहीं पढ़कर आते हैं। सेल्फ ट्रीटमेंट से नुकसान पहुंचाने वाले भी बहुत से लोग आते हैं, जिनको गलत जानकारी होती है।
विजुअल इफेक्ट्स और ऑडियो के आधार पर जब सूचना दी जाती है, तो वह मन पर असर भी ज्यादा करती है। वैसे भी ऑडियो विजुअल जानकारी लोगों को ज्यादा याद रहती है। इसमें भी अगर कोई डॉक्टर के कपड़े पहनकर बता दें, तो फिर वह सच ही लगने लगता है। यही हाल इंटरनेट का भी है। यहां भी लोगों को लगता है कि जो लिख रहा है, वह डॉक्टर ही होगा, जबकि ऐसा होता ही नहीं है।
ऐसे मिल सकती है सही सूचना
डॉक्टर्स के अनुसार, जिन लोगों के पास मेडिकल की डिग्री नहीं है, उनके लिए इस तरह की सूचनाओं को पहचानना आसान नहीं है। लेकिन थोड़ी सी सावधानी बरतकर सोशल मीडिया और इंटरनेट पर भरोसेमंद जानकारी प्राप्त की जा सकती है। इंटरनेट और सोशल मीडिया के जरिए विश्वसनीय सूचना प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि आप इंफ्लुएंसर को फॉलो न करें, बल्कि किसी एक्सपर्ट को फॉलो करें।
इसके लिए आप जिसको फॉलो करें उसका प्रोफाइल जरूर चेक करें। सबसे पहले देखें कि उसके पास कोई डिग्री है या वह सिर्फ इंफ्लुएंसर है। क्या उसके पास मेडिकल फील्ड का कोई अनुभव है। कोई सोशल मीडिया पर प्रोफाइल बनाता है, तो उसे फेसबुक या ट्विटर अकाउंट से लिंक करता है।
आप उस लिंक पर जाकर देखें कि उसकी प्रोफेशनल जानकारी कितनी है? भ्रामक सूचनाओं से बचने के लिए मॉनिटरिंग की जरूरत है। अगर कोई आर्टिकल भी पढ़ रहे हैं, तो यह समझने की कोशिश करें, दी गई जानकारी कितनी सही है और उसे लिखा किसने है। क्या उस व्यक्ति के पहले के लेखों की जानकारी सही साबित हुई है?
ये हैं सबसे कॉमन मिथ
मिथः कोविड वैक्सीन की वजह से खून में थक्के जम रहे हैं और हार्ट अटैक हो रहे हैं।
सचः कोविड वैक्सीन की वजह से खून में थक्के जमने और हार्ट अटैक की बात सही नहीं है। ये दिक्कतें कोविड और उसके आफ्टर इफेक्ट्स की वजह से तो हो सकती हैं, लेकिन वैक्सीन के कारण ऐसा नहीं हो रहा है।
मिथः एक्सरसाइज करने से हार्ट अटैक आ रहे हैं।
सचः एक्सरसाइज करने की वजह से हार्ट अटैक नहीं आ रहे हैं। अगर आप रूटीन में रेगुलर एक्सरसाइज करेंगे तो कुछ नहीं होगा। मगर एक साथ ढेर सारी एक्सरसाइज या शुरुआत में ही बहुत सारी एक्सरसाइज एक साथ न करें।
मिथः कोहनी को टच करो, तो शरीर की नसें खुलती हैं और बीमारी नहीं होती है।
सचः एल्बो को टच करने से शरीर की नसें नहीं खुलती हैं। दवाई और रेगुलर एक्सरसाइज करने से बीमारी आगे नहीं बढ़ती है।
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