पेशाब से जुड़े इस संकेत को बिल्कुल न करें इग्नोर, ये है गंभीर बीमारी के शुरुआती लक्षण
कितने प्रकार का होता है इनकांटीनेंस
स्ट्रेस इनकॉन्टीनेंस
इसे एसआई या स्ट्रेस इनकॉन्टीनेंस भी कहा जाता है। ऐसा तब होता है जब आप एक्टिव होते हैं। इस स्थिति में लीकेज की मात्रा इस बात पर निर्भर करती है कि एसआई कितना गंभीर है। एसआई अमूमन ऐसी स्थिति में होता है जब पेल्विक (यूरिनरी ब्लैडर या प्रजनन अंग का हिस्सा) की मांसपेशियों में खिंचाव होता है, शारीरिक गतिविधियों से भी ब्लैडर या यूरिनरी ब्लैडर पर दबाव पड़ता है और ब्लैडर से रिसाव होने लगता है। कई बार व्यायाम करने, चलने, झुकने, भारी सामान उठाने और यहां तक की खांसने और छींकने से भी यूरिन लीक होने लगता है, हालांकि रिसाव की मात्रा अधिक नहीं होती है।
तीव्र इनकांटीनेंस
इसमें तुरंत पेशाब की जरूरत महसूस होती है। आप इस तीव्र इच्छा को नजरअंदाज नहीं सकते हैं। कहने का मतलब आपको पेशाब करना ही है। आपको तुरंत यह एहसास होता है कि नजदीक में कहीं बाथरूम नहीं है। ऐसी स्थिति में आप रात को अच्छी नींद भी नहीं ले पाते हैं।
मिक्स या मिलाजुला इनकांटीनेंस
कभी-कभी लोगों को कुछ एक्टिविटी करने पर पेशाब का रिसाव होने लगता है और अक्सर उन्हें तुरंत पेशाब त्यागने की जरूरत महसूस होती है। इसे मिक्स या मिलाजुला इनकांटीनेंस कहा जाता है। इसमें लोगों को इनकांटीनेंस के दोनों तरह के लक्षण होते हैं।यूरिनरी इनकंटीनेंस किस प्रकार का है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपको कब और कैसे मूत्र त्यागने की जरूरत पड़ती है। हालांकि यूरिनरी इनकॉन्टिनेंस एक बहुत ही संकोच और शर्मिंदा करने वाली स्थिति है। लेकिन ऐसी स्थिति में आपकी मदद के लिए प्रोडक्ट और दवाएं मिलती हैं।
क्या है इसका इलाज
यूरिनरी इनकंटीनेंस को सेल्फ मैनेजमेंट या फिर खुद भी सही किया जा सकता है। इसके अलावा दवाएं, सर्जरी, इलेक्ट्रिक सिमुलेशन, बोटूलिनम टॉक्सिन इंजेक्शन, क्रायस्टोप्लाटी और यूरिनरी डायवर्सन आदि इलाज शामिल हैं। सेल्फ मैनेजमेंट में रेगुलर रूटीन को सही करने, ब्लैडर ट्रेनिंग, पेल्विक फ्लोर मांसपेशियों के व्यायाम आदि करके परेशानी को सही किया जा सकता है। अपनी दिनचर्या में कुछ साधारण बदलाव से आप यूरिनरी इनकंटीनेंस की स्थिति में सुधार कर सकते हैं। आप एक डायरी में समस्या से जुड़ी बातों से सुधार को रेगुलर रूप से लिख सकते हैं। रीनरी इन्कान्टनन्स में सुधार की सही स्थिति का पता लगाने के लिए यह जरूरी है कि नियमित रूप से समस्या पर नजर रखें।
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