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'AMU का अल्पसंख्यक दर्जा फिलहाल बरकरार रहेगा, दूसरी बेंच करेगी सुनवाई'; CJI चंद्रचूड़ का 'सुप्रीम' फैसला

AMU Status Case Verdict: सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ का आज आखिरी वर्किंग डे है और आज उन्होंने अपने कार्यकाल का आखिरी केस फैसला सुनाकर पूरा किया। उनका आखिरी केस अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक का दर्जा देना रहा।
11:03 AM Nov 08, 2024 IST | Khushbu Goyal
Justice DY Chandrachud
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Aligarh Muslim University Minority Status Case Verdict: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया है। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के कार्यकाल का आज आखिरी दिन है और आज उन्होंने इस केस में अहम फैसला सुनाया है। उन्होंने खुद फैसला पढ़ा, जिसके मुताबिक अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक दर्जा फिलहाल बरकरार रहेगा। वहीं इस केस में पर आगे सुप्रीम कोर्ट की दूसरी बेंच सुनवाई करेगी। इसका मतलब यह है कि अभी सुप्रीम कोर्ट ने अभी यह फाइनल नहीं किया है कि AMU अल्पसंख्यक संस्थान है या नहीं।

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केस में 4:3 बहुमत से फैसला लिया गया है। जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एससी शर्मा ने असहमति जताई है। बाकी 4 सहमत हैं, जिनमें चीफ जस्टिस के अलावा न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, जस्टिस जेबी पारदीवाला, मनोज मिश्रा शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट ने केस में अजीज बाशा फैसले को पलट दिया है। वहीं केस में जो भी फैसला आए, उसका असर जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी पर भी पड़ेगा। वहीं फैसला आते ही 60 साल से चल रहा विवाद भी थम गया है, क्योंकि यूनिवर्सिटी के अल्पसंख्यक दर्जे पर साल 1968 से ही विवाद चला रहा है और आज तक कई सुनवाइयां हो चुकी हैं।

 

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कानून सभी के लिए समान, किसी से भेदभाव नहीं कर सकते

फैसला पढ़ते हुए CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि किसी शैक्षणिक संस्था को केवल इसलिए अल्पसंख्यक दर्जा देने से इनकार नहीं किया जा सकता कि इसकी स्थापना संसदीय कानून द्वारा की गई है। ऐसी स्थापना से जुड़े विभिन्न कारकों और अन्य पहलुओं को ध्यान में रखा जाना चाहिए। कोई भी धार्मिक समुदाय किसी भी संस्था की स्थापना कर सकता है, लेकिन उसका संचालन नहीं कर सकता।

संविधान के अनुच्छेद 30ए के तहत किसी संस्था को अल्पसंख्यक का दर्जा देने के मानदंड क्या हैं? सुप्रीम कोर्ट अच्छे से जानता है। अगर इसके प्रावधानों को संविधान लागू होने से पहले स्थापित संस्थानों पर लागू किया जाएगा और संविधान लागू होने के बाद वाले संस्थानों पर लागू नहीं किया जाएगा तो अनुच्छेद 30 कमजोर हो जाएगा। अंतर करके संविधान के इस कानून को कमजोर नहीं किया जा सकता।

 

साल 1968 से चल रहा अल्पसंख्यक दर्जे पर विवाद

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की 3 सदस्यीय पीठ इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2006 के फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। हाईकोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देने से इनकार किया था। साल 2019 में केस 7 जजों की पीठ को सौंप दिया गया, जिसका नेतृत्व चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ कर रहे थे। इस पीठ ने अनुच्छेद 30 के प्रावधानों को ध्यान में रखकर केस की सुनवाई की और फैसला सुरक्षित रखा।

8 दिन लगातार सुनवाई के बाद आज फैसला सुनाया गया है। बता दें कि इससे पहले साल 1968 में एस. अजीज बाशा बनाम भारत संघ केस में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था। उस समय यूनिवर्सिटी को केंद्रीय विश्वविद्यालय बताया गया था। साल 1981 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक्ट 1920 में संशोधन किया गया और इसका अल्पसंख्यक दर्जा बहाल किया गया। इस बहाली को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चैलेंज किया और मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।

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aligarh muslim universityCJI DY ChandrachudSupreme Court CJISupreme Court of India
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