आज CAA पर आएगा अहम फैसला; सुप्रीम कोर्ट में 230 याचिकाओं पर सुनवाई, जानें क्या है विरोधियों की मांग?
Supreme Court Hearing Over CAA Controversy: नागरिकता संशोधन अधिनियम 2024 पर आज अहम फैसला आ सकता है। सुप्रीम कोर्ट एक्ट के खिलाफ दायर 200 से ज्यादा याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। याचिकाओं में CAA कानून के नियमों पर रोक लगाने की मांग की गई है।
याचिकाओं में कहा गया है कि कानून के प्रावधान तब तक लागू न हों, जब तक सुप्रीम कोर्ट इस पर कोई फैसला न सुना दे। भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, ए न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।
CAA को मुस्लिमों के साथ भेदभाव बताया गया
बता दें कि साल 1955 में बने नागरिकता बिल में साल 2019 में संशोधन किया गया था। 2019 में ही नागरिकता संशोधन बिल संसद में पास किया गया था और 5 साल बाद केंद्र सरकार ने इसे 11 मार्च को लागू किया, लेकिन मुस्लिमों द्वारा इसका विरोध किया गया है। इस नए अधिनियम के तहत अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए प्रवासी, जो हिंदू, सिख, जैन, पारसी, बौद्ध या ईसाई धर्म के हैं।
31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए थे। उन्हें भारतीय नागरिकता दी जाएगी। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि CAA मुस्लिम समुदाय के साथ भेदभाव करता है। यह धार्मिक अलगाव अनुचित है और अनुच्छेद 14 के तहत मिले अधिकार का उल्लंघन करता है। इसलिए इस लागू पर रोक लगाई जानी चाहिए।
CAA का विरोध सबसे पहले केरल ने किया था
साल 2020 में केरल ने CAA को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। केरल ने इसे भारतीय संविधान के तहत मिले समानता के अधिकार का उल्लंघन करने वाला कानून बताया था। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने भी पिछले हफ्ते शीर्ष अदालत के समक्ष केरल स्थित इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) द्वारा दायर याचिका पेश की थी।
याचिका में लोकसभा चुनाव 2024 से कुछ दिन पहले CAA लागू करने के केंद्र सरकार के कदम पर सवाल उठाया गया। अन्य याचिकाकर्ताओं में कांग्रेस नेता जयराम रमेश, AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी, असम कांग्रेस नेता देबब्रत सैकिया, TMC नेता महुआ मोइत्रा, गैर-सरकारी संगठन रिहाई मंच और सिटीजन्स अगेंस्ट हेट, कुछ कानून के छात्र और असम एडवोकेट्स एसोसिएशन शामिल हैं।
ओवैसी का मुसलमानों को अनाथ करने का आरोप
ओवैसी ने CAA पर भारतीय जनता पार्टी के रुख की आलोचना करते हुए कहा कि देश में धर्म के आधार पर कानून बनाने की अनुमति किसी को नहीं है। यह केवल राजनीतिक दलों तक ही सीमित मामला नहीं है। यह पूरे देश का मामला है। क्या भाजपा 17 करोड़ मुसलमानों को राज्य विहीन बनाना चाहती है? यह संविधान के मूल सिद्धांतों के ख़िलाफ़ है।