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बिना प्रेस किए कपड़े पहनें, सरकार के इस विभाग का कर्मचारियों-छात्रों को फरमान, जानें क्यों लिया फैसला?

CSIR Campaign for Climate Change: देश के एक संस्थान ने अपने कर्मचारियों और छात्रों को अजीबोगरीब फरमान सुनाया है। देशभर में इस डिपार्टमेंट की 37 लैब हैं और हजारों वैज्ञानिक, स्टूडेंट्स और टेक्निकल स्टाफ कर्मी इससे जुड़े हैं, जिन्हें सप्ताह में एक दिन आदेशानुसार कपड़े पहनने होंगे।
09:42 AM May 08, 2024 IST | Khushbu Goyal
कपड़े प्रेस करने से कार्बन-डाई-ऑक्साइड का उत्सर्जन होता है।
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CSIR Employees Unique Dress Code: बिना प्रेस किए हुए, सिलवटों वाले कपड़े पहनकर ही आएं। रिंकल्स अच्छे लगते हैं, सप्ताह में एक दिन सोमवार को रिंकल्ड कपड़े पहनकर ही आएं। यह फरमान देश के एक सरकारी विभाग वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) ने अपने कर्मचारियों को सुनाया है।

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विभाग के अधिकारियों ने इस फरमान की पुष्टि करते हुए बताया कि कर्मचारियों को सोमवार को बिना प्रेस किए (Non-Ironed) कपड़े पहनने को कहा गया है। साथ ही यह भी बताया कि विभाग का फरमान एक मुहिम का हिस्सा है, जिसका कनेक्शन जलवायु परिवर्तन (Climate Change) और पर्यावरण संरक्षण (Environment Preservation) से है।

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क्या है CSIR की मुहिम और इसका मकसद?

वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (CSIR) ने एक मई से 'रिंकल्स अच्छे हैं...' मुहिम शुरू की है। स्वच्छता पखवाड़ा के तहत अभियान शुरू किया गया है, जो 15 मई तक चलेगा। विभाग ने देश में बिजली की खपत कम करने के लिए एक पहल की है। इसके लिए देशभर में मौजूद सभी 37 लैब में स्पेसिफिक स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग सिस्टम लगा रहा है। इसका मकसद बिजली की खपत को 10 प्रतिशत घटाना है।

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एक जोड़ी कपड़े प्रेस करने से 100 से 200 ग्राम कार्बन-डाई-ऑक्साइड उत्सर्जित होती है। एक लोहे को गर्म करने में 800 से 1200 वाट बिजली लगती है, जो एक बल्ब से निकलने वाली रोशनी से 20 से 30 गुना ज्यादा है। भारत में 74 प्रतिशत बिजली उत्पादन कोयले से होता है। परिवार में 5 लोग हैं तो 5 जोड़ी कपड़े प्रेस करने में एक किलो कार्बन-डाई-ऑक्साइड उत्सर्जित होगी। इसे बचाने के लिए मुहिम शुरू की गई है।

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IIT बॉम्बे के प्रोफेसर ने शुरू किया था अभियान

सेंट्रल लेदर रिसर्च इंस्टीट्यूट भी इस मुहिम का हिस्सा है। दोनों संस्थानों के कर्मचारी, स्टूडेंट्स और अधिकारी सोमवार के दिन बिना प्रेस किए कपड़े पहकर आएंगे और घरवालों को भी ऐसे कपड़े पहनने के लिए प्रेरित करेंगे। IIT बॉम्बे के एनर्जी साइंस एंड इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के प्रोफेसर चेतन सिंह सोलंकी ने अपने एनर्जी स्वराज फाउंडेशन के तहत इस मुहिम को शुरू किया था।

इसी मुहिम को अपनाते हुए CSIR-CLRI ने भी जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संरक्षण के लिए पहल की है। बता दें कि CSIR देश का प्रमुख अनुसंधान एवं विकास संस्थान है, जिसकी देशभर में 37 लैंब हैं। 4 हजार से ज्यादा टेक्निकल और 3500 से ज्यादा साइंटिस्ट इसके मेंबर्स हैं। देशवासियों को जलवायु परिवर्तन के लिए जागरूक करने और इसे रोकने के लिए आवश्यक प्रयास करने के लिए लगातार प्रयासरत रहता है।

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