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7वीं के बाद पढ़ाई छूटी..कोव‍िड में धंधा, अब हास‍िल क‍िया साह‍ित्‍य अकादमी पुरस्‍कार, द‍िल छू लेगी ये कहानी

Success Story: महाराष्ट्र के एक दर्जी की कहानी दूसरों के लिए प्रेरणास्त्रोत है। जब आंख खुली, तभी गरीबी से संघर्ष शुरू हो गया। लेकिन महाराष्ट्र के होनहार ने हार नहीं मानी। 7वीं तक स्कूल गए। दर्जी का काम शुरू किया। लेकिन कोविड में कमाई न के बराबर हुई। फिर भी सफलता की दास्तां लिख डाली।
04:10 PM Jun 18, 2024 IST | Parmod chaudhary
देवीदास सौदागर।
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Sahitya Akademi Youth Award 2024: साहित्य अकादमी की ओर से प्रतिष्ठित युवा पुरस्कारों के लिए 23 नामों का ऐलान कर दिया गया है। लिस्ट में अंग्रेजी राइटर वैशाली, मराठी लेखक देवीदास सौदागर और हिंदी लेखक गौरव पांडे का नाम अव्वल है। इनमें देवीदास सौदागर भले ही कम चर्चा में रहे हों, लेकिन अब उनके बारे में जानने के लिए हर कोई उत्सुक है। उनके नोवेल 'उस्वान' को मराठी में साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार 2024 का खिताब मिला है। देवीदास दर्जी का काम करते हैं। 7वीं के बाद उनकी नियमित पढ़ाई छूट गई थी। कारण था गरीबी, लेकिन फिर भी इन्होंने हार नहीं मानी। पेट की आग शांत करने के लिए दर्जी का काम शुरू कर दिया। लेकिन पढ़ाई का साथ नहीं छोड़ा। ओपन यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करते रहे। उपन्यास लिखा, लेकिन उसको छपवाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ा। दर्जी के साथ 5 हजार रुपये में चौकीदारी भी की। इनकी कहानी बेहद मार्मिक है।

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सौदागर की पुस्तक में सिले कपड़ों की डिमांड कम क्यों हुई? रेडीमेड कपड़ों ने उनके व्यवसाय पर कैसे असर डाला? इसका विवरण दिखता है। सौदागर के अनुसार कोविड में उनका धंधा बुरी तरह चौपट हो गया। निराश होने के बजाय उन्होंने पूर्णकालिक लेखन शुरू कर दिया। 2021 में 'कविताओं का संकलन' नामक नोवेल लिखा। 2022 में उन्होंने 'उस्वान' पूरा किया और कम से कम 10 प्रकाशकों के पास गए। लेकिन उन्होंने इसे पब्लिश करने से मना कर दिया। आखिरकार देशमुख एंड कंपनी की मुक्ता गोडबोले ने हामी भरी। जिसके बाद उनके उपन्यास की 500 प्रतियां प्रकाशित हुईं।

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सिर्फ मुक्ता ने समझा सौदागर का दर्द

33 वर्षीय मुक्ता मूल रूप से महाराष्ट्र के तुलजापुर जिले की रहने वाली हैं, जिन्होंने गरीबी को करीब से देखा है। उनके पिता और दादा मजदूरी करते थे। परिवार के पास जमीन और घर नहीं था। सौदागर ने सातवीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी। 10वीं के लिए रात्रि स्कूल में दाखिला लिया था। पिता ने दर्जी की दुकान पर काम शुरू किया। वे भी उनकी मदद करने लगे। 2006 में आईटीआई से मोटर मैकेनिक की स्टडी पूरी की। लेकिन मंदी के कारण उनको काम नहीं मिल सका। जिसके बाद सिलाई करनी शुरू कर दी। बाद में जूनियर कॉलेज में दाखिला लिया था। पैसे के लिए वे दिन-रात काम करते थे।

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सौदागर ने हिम्मत नहीं हारी और सफर जारी रहा। जिसके बाद ओपन यूनिवर्सिटी से हिस्ट्री में एमए पूरी की। बाद में नौकरी के लिए अंग्रेजी-मराठी टाइपिंग सीखी। बचपन से ही उनको लिखने का शौक था। गांव की लाइब्रेरी में पढ़ाई के लिए जाते थे। अन्नाभाऊ साठे की किताबें उनको पसंद हैं। 18 साल की उम्र तक कविताएं और कहानियां उन्होंने लिखनी शुरू कर दी थी। 2014 में उनकी पहली कविता एक मराठी पेपर में पब्लिश हुई थी। 2018 में नोवेल लिखने के बाद किसी तरह 8 हजार रुपये बचाकर वे सोलापुर गए थे। मराठी साहित्यकार भालचंद्र नेमाड़े ने उनको पहली बार पुस्तक के लिए 100 रुपये का चेक भेजा था। साथ में दो पन्नों का लेटर दिया था। जो उनके पास आज भी है।

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Tags :
Maharashtra News in HindiSahitya Akademi Youth Award 2024
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