मच्छर काटने से विलुप्त हो रहा है ये खूबसूरत पक्षी, अब मच्छरों से ही मिलेगा जीवनदान
Honeycreeper Avian Malaria from Mosquito: मच्छर अमूमन दुनिया के सभी कोनों में मौजूद रहते हैं। वहीं मच्छरों से फैलने वाली बीमारी भी हर देश में मौजूद है। डेंगू और मलेरिया वैसे तो कई इंसानों की जान ले चुका है। मगर क्या आपने कभी सोचा होगा मच्छर किसी पक्षी के विलुप्त होने का कारण भी बन सकते हैं। जी हां, अपने रंगों से लोगों का दिल जीतने वाला हनीक्रीपर पक्षी अमेरिका के एक आइलैंड से विलुप्त होता जा रहा है और इसकी वजह सिर्फ मच्छर है।
17 प्रजातियां हो गईं विलुप्त
हम बात कर रहे हैं अमेरिका के हवाई आईलैंड की। अमेरिका के खूबसूरत टूरिस्ट स्पॉट्स में शुमार हवाई आईलैंड पर हनीक्रीपर की 50 प्रजातियां हुआ करती थीं। मगर मच्छरों की वजह से अब यहां सिर्फ 33 हनीक्रीपर की प्रजातियां बची हैं। जाहिर है आपके मन में सवाल होगा कि मच्छर के काटने से किसी पक्षी की मौत भला कैसे हो सकती है? हम आपको बता दें कि हनीक्रीपर की मौत का कारण मच्छरों से फैलने वाला एवियन मलेरिया है।
एवियन मलेरिया से गई जान
1800 के दशक में मच्छरों की वजह से पक्षियों में एवियन मलेरिया फैलने लगा था। कुछ समय में ये बीमारी सभी देशों में पहुंच गई। हालांकि ज्यादातर पक्षियों में एवियन मलेरिया से लड़ने की रोग प्रतिरोधक क्षमता मौजूद रहती है। मगर हनीक्रीपर में इस बीमारी के लिए कोई प्राकृतिक प्रतिरक्षा मौजूद नहीं है। ऐसे में मच्छरों के काटने की वजह से हनीक्रीपर की मौत हो जाती है।
मच्छर से ही बचेगी जान
हालांकि हैरानी की बात तो ये है कि हनीक्रीपर की मौत का कारण ही अब उनके बचाव की वजह बनने जा रहा है। जी हां, जिस मच्छर के काटने से हनीक्रीपर की जान पर बन आती है। वही मच्छर अब हनीक्रीपर की जान बचाएगा। यूएस नेशनल पार्क सर्विस, हवाई राज्य और मुउई फॉरेस्ट बर्ड ने इन्कमपेटिबल इन्सेक्ट टेक्निक का एक प्रोजेक्ट शुरू किया है। इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत हवाई में हर हफ्ते ढाई लाख नर मच्छरों को हेलीकॉप्टर से छोड़ा जा रहा है। इन मच्छरों में वेलबाकिया नामक बैक्टीरिया मौजूद है। जिससे हवाई में मच्छरों की आबादी कम की जा सकती है। इस प्रोजेक्ट के तहत अब तक 1 करोड़ से ज्यादा मच्छर हवाई में छोड़े जा चुके हैं। उम्मीद की जा रही है कि नर मच्छरों की मदद से हवाई में मच्छरों की संख्या कम हो जाएगी।
जलवायु परिवर्तन बना खतरा
अमेरिका के अलावा चीन और मैक्सिको जैसे देशों में भी मच्छरों की जनसंख्या कम करने के लिए इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा चुका है। वहीं अब हनीक्रीपर को बचाने के लिए अमेरिका ने भी इस तकनीक की मदद ली है। बता दें कि मच्छरों से बचने के लिए हनीक्रीपर 4-5 हजार फीट की ऊंचाई पर रहते हैं क्योंकि मच्छर इतनी ऊंचाई पर जिंदा नहीं रह सकते और हनीक्रीपर पूरी तरह से सुरक्षित रहते हैं। हालांकि जलवायु परिवर्तन हनीक्रीपर के लिए बड़ा खतरा बन गया है। लगातार बढ़ते तापमान की वजह से मच्छरों की संख्या में इजाफा हो रहा है। ऐसे में ऊंचाई पर रहने वाले पक्षियों की मुश्किलें भी बढ़ सकती हैं।