वो सांसद जिसे एक नहीं 2 बार सुनाई गई मौत की सजा, बेटों की भी हुई हत्या
John Richardson: देश में जल्द ही 18वें लोकसभा चुनाव का शंखनाद होने वाला है। 18 अप्रैल से सात चरणों में मतदान करवाए जाएंगे। संसद के सदन तक पहुंचने के लिए कई नेताओं में होड़ लगी है। मगर आज हम आपको देश के पहले आम चुनाव से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा सुनाने जा रहे हैं। कहानी एक ऐसे सांसद की, जिसने दूसरे विश्व युद्ध में हिस्सा लिया। उन्हें दो बार फांसी की सजा सुनाई गई। मगर इसके बावजूद वो आजाद अंडमान के पहले सांसद बनकर उभरे।
कौन थे जॉन रिचर्डसन?
कार निकोबारी परिवार में जन्मे जॉन रिचर्डसन का असली नाम 'हा चेव का' था। बर्मा से पढ़ाई पूरी करने के बाद जॉन रंगून में पहले एंग्लिकन पादरी बने। मगर कुछ ही समय में उन्होंने निकोबार में वापसी की और 1912 में बतौर शिक्षक पढ़ाना शुरू कर दिया। 1913 में जॉन रिचर्डसन की शादी हुई। 1920 में उन्हें बंदरगाहों का संरक्षक नियुक्त किया गया और 1925 से लेकर 1945 तक जॉन निकोबार द्वीप पर ही मानद तहसीलदार के रूप में तैनात थे।
दूसरे विश्व युद्ध में लिया हिस्सा
जॉन की जिंदगी का असली संघर्ष दूसरे विश्व युद्ध में शुरू हुआ, जब जापानी सेना ने निकोबार द्वीप समूह पर कब्जा कर लिया। पहले तो जापानियों ने जॉन को निकोबार का मुखिया बना दिया, मगर कुछ समय में जॉन ने जापानियों का हुकुम मानने से इनकार कर दिया और जापानी सेना ने उन्हें जेल भेज दिया। यही नहीं जापानी सैनिकों ने जॉन के दोनों बेटों को मौत के घाट उतार दिया और जॉन को एक नहीं बल्कि दो बार मौत की सजा सुनाई गई।
कैसे बची जॉन की जान?
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापानी हुकूमत ने जॉन को दो बार फांसी की सजा सुनाई, मगर उन्हें फिर भी फांसी नहीं हुई। दरअसल पहली बार फांसी का फरमान देने पर निकोबारी जनता ने विद्रोह का बिगुल फूंक दिया। ऐसे में बगावत के डर से जॉन की फांसी टाल दी गई। वहीं जब जॉन को दोबारा मौत की सजा मिली, तो फांसी से पहले ही विश्व युद्ध समाप्त हो गया।
अंडमान के पहले सांसद बने जॉन रिचर्डसन
विश्व युद्ध खत्म होने के बाद एक तरफ जापानी सेना ने अंडमान से पीछे हटना शुरू कर दिया, तो दूसरी तरफ अंग्रेजों ने भी भारत छोड़ने का फैसला कर लिया। अब देश आजाद था। 1950 में संविधान लागू होने के बाद देश में पहले लोकसभा चुनाव का आगाज हुआ और राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने जॉन रिचर्डसन को अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का सांसद नियुक्त कर दिया। इस तरह से जॉन देश की पहली लोकसभा का हिस्सा बनने वाले एकमात्र एंग्लिकन बिशप थे।
पद्म विभूषण से हुए सम्मानित
15 जनवरी 1950 को जॉन अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के बिशप बने। 1977 तक वो बिशप के पद पर रहे। जॉन ने बाइबल का निकोबारी भाषा में अनुवाद किया, जो कि 1970 में प्रकाशित हुई थी। 1975 में भारत सरकार ने जॉन रिचर्डसन को देश के सर्वोच्च सम्मानों में से एक पद्म विभूषण से नवाजा। वहीं 3 जून 1978 को जॉन रिचर्डसन ने दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया।