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भगवान श‍िव के 'आशीर्वाद' से खास बना ये आम, इस वजह से कहलाया लंगड़ा

Know About Langra Aam and It's Name : लंगड़ा आम को आमों का राजा कहा जाता है। यह काफी रसीला और मीठा होता है। इसकी पैदावार सबसे पहले बनारस में हुई थी। हालांकि इसका नाम लंगड़ा ही क्यों पड़ा, इसके पीछे भी दिलचस्प कहानी है। जानें, यह काम कितना पुराना है और इसके नाम के पीछे की कहानी:
12:19 PM Jul 10, 2024 IST | Rajesh Bharti
करीब 300 साल पुराना है लंगड़ा आम का इतिहास।
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The History Of Langra Aam : मार्केट में इन दिनों कई वैराइटी के आम आ चुके हैं। आपको अलग-अलग वैराइटी के आम पसंद होंगे। किसी को दशहरी पसंद होता है तो किसी को चौसा तो किसी को लंगड़ा। क्या आपने कभी सोचा है कि इन आमों का नाम यही क्यों पड़ा? दरअसल, हर आम के नाम के पीछे एक कहानी है। इन्हीं में है लंगड़ा आम। यह आम काफी मीठा और रसीला होता है। इसे आमों का राजा भी कहा जाता है। इस आम के नाम के पीछे एक बड़ी कहानी है।

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300 साल पुराना है यह आम

यह आम सबसे पहले बनारस में पैदा हुआ था। इस कारण इसे बनारसी लंगड़ा भी कहते हैं। इसका इतिहास करीब 250 से 300 साल पुराना है। इस समय इसकी पैदावार उत्तर प्रदेश के अलावा बिहार और पश्चिम बंगाल में भी होती है। पड़ोसी देश बांग्लादेश में भी इस आम की पैदावार होती है। इस आम की खासियत है कि इसकी गुठली काफी छोटी होती है।

सबसे पहले बनारस के मंदिर में लगे थे पौधे

माना जाता है कि लंगड़ा आम की पैदावार सबसे पहले बनारस में हुई थी। यहां एक शिव मंदिर में एक पुजारी रहते थे। एक दिन एक साधु उस मंदिर में आए और उन्होंने मंदिर के परिसर में आम के दो छोटे पौधे लगाए। उन्होंने पुजारी से कहा वह रोजाना इस पौधे की देखभाल करे। जब इस पर आम आ जाएं तो उसे सबसे पहले भगवान शिव पर चढ़ाएं और फिर बाकी भक्तों को प्रसाद के रूप में बांट दें। साथ ही साधु ने पुजारी से यह भी कहा था कि इस पेड़ की कलम या आम की गुठली किसी को न दें। पुजारी ने ऐसा ही करना शुरू कर दिया।

लंगड़ा आम काफी मीठा और रसीला होता है।

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ऐसे फैला हर जगह

यह आम काफी मीठा और रसीला था। इसकी चर्चा दूर-दूर तक होने लगी। पुजारी किसी भी शख्स को इस पेड़ की कलम और आम की गुठली नहीं देता था। काशी नरेश को जब इस आम के बारे में पता चला तो वह भी वहां पहुंचे और आम की कलम मांगी।

पुजारी ने कहा कि वह भगवान से प्रार्थना करेंगे और उनके निर्देश पर महल में आकर इस आम के पेड़ की कलम दे देंगे। रात को भगवान शिव उस पुजारी के सपने में आए और कलम देने के लिए हामी भर दी। इसके बाद पुजारी ने उस पेड़ की कलम राजा को सौंप दी। राजा ने उसे बगीचे में लगा दिया। धीरे-धीरे यह पेड़ बनारस से बाहर निकलकर दूसरी जगह पहुंच गया।

ऐसे पड़ा नाम लंगड़ा

इस आम का नाम लंगड़ा कैसे पड़ा, इसके पीछे भी एक कहानी है। दरअसल, साधु ने जिस पुजारी को इस आम के पेड़ की जिम्मेदारी सौंपी थी, वह पुजारी दिव्यांग था। उन्हें चलने में परेशानी होती थी। कहा जाता है कि लोग उन्हें 'लंगड़ा पुजारी' कहते थे। इसी कारण इस किस्म के आम का नाम भी लंगड़ा आम पड़ गया।

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