डेटिंग के फैसले पर 'सुप्रीम' आपत्ति के बाद अब खुलकर बोले रिटायर्ड जज, बेटी होती तो भी...
Reaction on Physical Relations With Boy Friend: अपनी यौन इच्छाओं को नाबालिग लड़कियों को कंट्रोल करना चाहिए। जब वे डेट पर जाएं तो उन्हें शारीरिक संबंध नहीं बनाने चाहिएं। यह कहना है कोलकाता हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज चितरंजन दास का, जिन्होंने ऐसे एक केस में अहम फैसला दिया था, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी आपत्ति जताई थी, लेकिन अब उन्होंने अपने इस फैसले पर खुलकर बात की है। उनका कहना है कि सिर्फ देशभर की नाबालिग लड़कियों से ही नहीं, अपनी बेटी से भी यही कहता कि लड़कों से मिलो, लेकिन शारीरिक संबंध नहीं बनाओ। अपनी यौन इच्छाओं को दबाकर रखना चाहिए। उनके एक समय होता है। जब तक वह सही समय नहीं आता, तब तक लड़कियों को अपने शरीर और इज्जत की रक्षा खुद करनी चाहिए।
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अक्टूबर 2023 में दिया गया था फैसला
चितरंजन दास ओडिशा हाईकोर्ट में भी सेवाएं दे चुके हैं। चितरंजन दास का कहना है कि शारीरिक संबंध 2 मिनट का सुख हो सकता है, लेकिन इस सुख के कारण सोसायटी लड़कियों को कठघरे में खड़े कर देती है। चितरंजन ने अक्टूबर 2023 में फैसला देते हुए यह टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा कि नाबालिग लड़कियों की खुद को लेकर कुछ ड्यूटी होती है। उन्होंने अपने शरीर, इज्जत और सेल्फ रिस्पेक्ट का खुद की ध्यान रखना होगा। इसके लिए उन्हें यौन इच्छाएं दबानी चाहिएं। लिंगभेद से हटकर खुद को जिंदगी में आगे बढ़ाना चाहिए, क्योंकि जब किसी कारण से घर की बेटी को झुकना पड़ता है तो पूरे परिवार को झुकना पड़ता है। इसलिए लड़कियां अपनी यौन इच्छाओं का खुद ध्यान रखें। अगर वे खुद को कंट्रोल करेंगी तो परिवार को भी शर्मिंदा नहीं होना पड़ेगा।
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भारतीय समाज की सच्चाई से वाकिफ कराया
चितरंजन दास ने बार एंड बेंच के साथ बातचीत करते हुए अपने बयान पर खुलकर बात की। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने उनके फैसले पर आपत्ति जताई थी और कहा कि इस तरह के फैसले गलत मैसेज देते हैं, लेकिन संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में जो सिफारिश की गई थी, उससे वे सहमत नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट नाबालिग लड़के-लड़कियों को शारीरिक संबंध बनाने का अधिकार देने का पक्षधर है, लेकिन भारतीय समाज में यह संभव नहीं है। भारतीय मान्यताओं को देखते हुए ही लड़कियों को यौन इच्छाएं दबाने की सलाह दी गई है। भारतीय समाज की यही सच्चाई है और उन्होंने काफी रिसर्च करने के बाद ही यह फैसला दिया था। इसी समाज में रहता हूं तो अपनी बेटी के लिए भी उनकी यही सलाह होगी। खुद को पीड़िता के पिता की जगह रखकर महसूस करने के बाद ही उन्होंने फैसला दिया।
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