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देश में Mutton पर मचा सियासी बवाल, ओडिशा में क्यों खुलेआम चल रही मटन-चावल की दावत

Lok Sabha Election 2024 : देश में लोकसभा चुनाव की सरगर्मियां तेज हो गई हैं। राजनीतिक दलों ने चुनाव प्रचार तेज कर दिया है। जहां बिहार में मटन-मछली को लेकर सियासी विवाद चल रहा है तो दूसरी तरफ ओडिशा में क्यों खुलेआम मटन-चावल की दावत चल रही है।
07:40 PM Apr 13, 2024 IST | Deepak Pandey
ओडिशा में क्यों खुलेआम चल रही मटन-चावल की दावत।
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Lok Sabha Election 2024 : देश में लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर मटन-मछली पर सियासी बवाल मचा हुआ है। सावन के महीने में लालू यादव, राहुल गांधी के साथ मटन बनाते दिखे और हाल में नवरात्रि में तेजस्वी यादव का मछली खाते हुए वीडियो सामने आया है। इसे लेकर पीएम नरेंद्र मोदी ने हमला बोला। चुनावी सरगर्मी के बीच ओडिशा में मटन-चावल की खुलेआम दावत दी जा रही है।

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एक तरफ देश में मटन को लेकर जुबानी जंग जारी है तो दूसरी तरफ ओडिशा में खुलेआम बकरे कट रहे हैं। पश्चिमी ओडिशा के कई जिलों में चुनावी सीजन में अचानक से बकरे की डिमांड बढ़ गई है। राजनेता इस वक्त मतदाताओं को लुभाने और कार्यकर्ताओं को खुश रखने के लिए दावत दे रहे हैं, जिसमें मुख्य रूप से मटन और चावल होते हैं। ऐसे में वे बकरे (जिसे खासी भी कहा जाता है) खरीदते हैं। हालांकि, ओडिशा में बकरी पालन प्रमुख व्यवसाय माना जाता है।

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8-9 हजार में बेचते हैं बकरी

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दुर्गापाली के गौतम माझी का कहना है कि ज्यादा पैसे कमाने के लिए वे चार महीने की बकरी को 2,000 रुपये में खरीदते हैं और फिर बकरी मजबूत होने के बाद उसे 8,000 से 9000 रुपए में बेचते हैं। वे सिर्फ बकरी ही पालते हैं। चुनाव के दौरान नेताओं को देर रात भी बकरी की जरूरत पड़ जाती है। उस स्थिति में वे मोलभाव करके ज्यादा पैसे भी कमा लेते हैं।

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जंगलों से सटे गांवों में अच्छे चारागाह भी होते हैं

उमुरिया के किसान सुरेंद्र प्रधान ने कहा कि बकरी मालिक जनवरी और फरवरी से चार से छह महीने के नर खासी का स्टॉक रखते हैं, ताकि वे आठ या नौ महीने तक बड़े होकर लगभग 9 किलोग्राम वजन के हो जाएं। जंगलों से सटे गांवों में अच्छे चारागाह हैं, इसलिए हमें घास काटने और उसे खेत में लाने के लिए अतिरिक्त परिश्रम नहीं करना पड़ता है।

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