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'भूले-भटके बाबा' कौन? कुंभ में करते हैं ये नेक काम, पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहा बेटा

Maha Kumbh Bhoole Bhatke Baba Story: महाकुंभ में आपने कई साधु-संत और बाबाओं की कहानी सुनी होगी। मगर क्या आपने भूले-भटके बाबा का नाम सुना है? कुंभ मेला क्षेत्र में उनका शिविर भी मौजूद है।
09:11 AM Jan 25, 2025 IST | Sakshi Pandey
 भूले भटके बाबा  कौन  कुंभ में करते हैं ये नेक काम  पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहा बेटा

Maha Kumbh Bhoole Bhatke Baba Story: महाकुंभ की धूम पूरे देश में देखने को मिल रही है। खास से लेकर आम लोग तक पवित्र संगम में डुबकी लगाने के लिए प्रयागराज का रुख कर रहे हैं। महाकुंभ के बीच कई बाबा भी बेहद मशहूर हो गए हैं। मगर क्या आपने 'भूले-भटके बाबा' के बारे में सुना है?

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1946 से शुरू की मुहिम

हिन्दी फिल्मों में आपने अक्सर देखा होगा कि कुंभ मेले में दो भाई बिछड़ जाते हैं। बॉलीवुड में यह लाइन बेहद मशहूर है। मगर क्या हो अगर कोई शख्स दोनों भाई को फिर से मिलवा दे? कुंभ में ऐसे ही एक शख्स हैं, जिन्हें 'भूले-भटके बाबा' के नाम से जाना जाता है। ये बाबा 1946 से कुंभ में बिछड़े लोगों को उनके परिवारों से मिलवाते आए हैं। 2016 में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। हालांकि बाबा के बेटे उमेश तिवारी अब पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।

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बुजुर्ग महिला को परिवार से मिलवाया

'भूले-भटके बाबा' का असली नाम राजा राम तिवारी है। यह कहानी 1946 की है, जब प्रयागराज में कुंभ लगा था। उस वक्त बाबा की उम्र 18 साल थी। उनकी मुलाकात एक बुजुर्ग महिला से हुई, जो कुंभ में अपने परिवार से बिछड़ गई थी। राजा राम ने उस महिला को उसके घर पहुंचाया। महिला की खुशी का ठिकाना नहीं था। उसने राजा राम के पैर छूए और उसकी खुशीं आंखों में साफ झलक रही थी। बस यही राजा राम की जिंदगी का टर्निंग पॉइंट था।

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Bhoole Bhatake Baba

लोगों ने दिया नया नाम 

राजा राम तिवारी ने हर साल कुंभ में अपना शिविर लगाना शुरू कर दिया और भूले भटके लोगों को उनके परिवारों से मिलवाने का मिशन शुरू कर दिया। वो टिन का लाउडस्पीकर लेकर कुंभ में घूमते, भूले लोगों का नाम पुकारते और उनके परिवार को ढूंढना शुरू कर देते थे। 1946 के ही कुंभ में उन्होंने 800 लोगों को उनके परिवार के पास पहुंचाया था। तभी से लोग उन्हें 'भूले-भटके बाबा' कहकर पुकारने लगे।

70 साल में 12 लाख लोगों को घर पहुंचाया

राजा राम तिवारी तब से हर माघ मेले, अर्ध कुंभ और महाकुंभ में अपना शिविर लगाने लगे थे। आंकड़ों की मानें तो 7 दशकों में उन्होंने 12.5 लाख से ज्यादा लोगों को उनके परिवारों से मिलवाया था। हालांकि 2016 में उनका निधन हो गया।

Bhoole Bhatake Shivir

बेटे ने संभाली कमान

अब उनके बेटे उमेश चंद्र तिवारी ने पिता के काम को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया है। उमेश तिवारी 150 वालंटियर्स के साथ इस मिशन पर लगे रहते हैं। कुंभ के मेला क्षेत्र में उनका शिविर मौजूद है। यहां वो भूले-भटके लोगों को फ्री में उनके घर तक पहुंचाते हैं। इसके लिए उमेश कोई पैसे चार्ज नहीं करते हैं।

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