'परिजनों के बैठने के लिए सिर्फ 3 कुर्सियां', मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार के बाद कांग्रेस नेताओं ने उठाए सवाल
Manmohan Singh Funeral: पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार के बाद कांग्रेस नेताओं ने दिल्ली के निगम बोध घाट पर की गई व्यवस्था और उनकी समाधि स्थल के लिए कई सवाल उठाए हैं। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर पोस्ट कर कहा कि भारत माता के महान सपूत और सिख समुदाय के पहले प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह का अंतिम संस्कार आज निगमबोध घाट पर करवाकर वर्तमान सरकार द्वारा उनका सरासर अपमान किया गया है। उन्होंने कहा कि एक दशक के लिए वह भारत के प्रधानमंत्री रहे, उनके दौर में देश आर्थिक महाशक्ति बना और उनकी नीतियां आज भी देश के गरीब और पिछड़े वर्गों का सहारा हैं।
डॉ मनमोहन सिंह सम्मान और समाधि स्थल के हकदार हैं
कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह के अंतिम संस्कार के लिए यथोचित स्थान न उपलब्ध कराकर सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री के पद की गरिमा, मनमोहन सिंह की शख्सियत, उनकी विरासत और खुद्दार सिख समुदाय के साथ न्याय नहीं किया। इससे पहले सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों को सर्वोच्च सम्मान और आदर दिया गया था। डॉ मनमोहन सिंह इस सम्मान और समाधि स्थल के हकदार हैं। आज पूरी दुनिया उनके योगदान को याद कर रही है।
प्रियंका गांधी ने उठाए ये सवाल
सरकार को इस मामले में राजनीति और तंगदिली से हटकर सोचना चाहिए था। आज सुबह डॉ मनमोहन सिंह के परिवारजनों को चितास्थल पर जगह के लिए मशक्कत करते, भीड़ में जगह पाने की कोशिश करते, और जगह के अभाव में आम जनता को परेशान होते और बाहर सड़क से ही श्रद्धांजलि देते देखकर ये महसूस हुआ।
क्यों नहीं मिली मीडिया को अनुमति?
कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा कि डॉ. मनमोहन सिंह के राजकीय अंतिम संस्कार में असम्मान और कुप्रबंधन का चौंकाने वाला प्रदर्शन हुआ। उनका कहना था कि डीडी (दूरदर्शन) को छोड़कर किसी भी समाचार एजेंसी को निगमबोध घाट पर अंदर जाने की अनुमति नहीं दी गई। उनका आरोप था कि डीडी ने पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह पर ध्यान केंद्रित किया।
डॉ. मनमोहन सिंह के परिवार के लिए केवल तीन कुर्सियां
उनका कहना था कि डॉ. मनमोहन सिंह के परिवार के लिए केवल तीन कुर्सियां सामने की पंक्ति में रखी गईं। कांग्रेस नेताओं को उनकी बेटियों और अन्य परिवार के सदस्यों के लिए सीटों की व्यवस्था के लिए जद्दोजहद करनी पड़ी। राष्ट्रीय ध्वज को उनकी विधवा को सौंपे जाने या गार्ड ऑफ ऑनर के दौरान प्रधानमंत्री और मंत्रियों ने खड़े होने की ज़हमत नहीं उठाई। अंतिम संस्कार की चिता के आसपास परिवार को पर्याप्त स्थान नहीं दिया गया क्योंकि एक ओर सैनिकों ने जगह घेर रखी थी।
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