'मातृत्व लाभ के लिए भेदभाव स्वीकार्य नहीं'; कोलकाता हाईकोर्ट ने क्यों की यह टिप्पणी? RBI से क्नेक्शन
Kolkata High Court Verdict on Maternity Benefits: देशभर की महिलाओं को प्रसव और मातृत्व अवकाश के अधिकार को लेकर कोलकाता हाईकोर्ट ने बड़ी टिप्पणी की है। हाईकोर्ट ने भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की एक कार्यकारी इंटर्न की याचिका पर सुनवाई करते हुए बैंक को निर्देश दिया कि वह इंटर्न को मुआवजा दे।
साथ ही टिप्पणी की कि रेगुलर और कॉन्ट्रैक्ट कर्मियों के बीच भेदभाव स्वीकार नहीं किया जाएगा। न्यायमूर्ति राजा बसु चौधरी ने याचिका का निपटारा करते हुए फैसला सुनाया और अहम टिप्पणी करके अधिकारों को लेकर न्यायालय के रुख संबंधी इरादे भी स्पष्ट किए।
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RBI ने वेतन के साथ मातृत्व अवकाश देने से किया इनकार
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, याचिकाकर्ता, 16 अगस्त 2011 से 3 साल तक RBI के साथ एक कार्यकारी प्रशिक्षु के तौर पर काम करती थीं, लेकिन RBI ने उसे वेतन के साथ मातृत्व अवकाश की अनुमति देने से इनकार कर दिया। इसलिए अपने हक की लड़ाई लड़ने के लिए उसने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
फैसला सुनाते हुए हाईकोर्ट ने RBI को आदेश दिया कि वह याचिकाकर्ता को उस समय अवधि का वेतन और छुट्टी के रूप में मुआवजा दे, जिसके लिए छुट्टी देने से इनकार कर दिया गया था। न्यायाधीश ने कहा कि याचिकाकर्ता को लाभों का फायदा न देना भेदभावपूर्ण कार्य है।
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हाईकोर्ट ने RBI के इनकार को अधिकारों का उल्लंघन बताया
हाईकोर्ट ने कहा कि यह भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। याचिकाकर्ता को मातृत्व अवकाश देने से इनकार करना भेदभावपूर्ण कृत्य है और मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 के तहत एक अपराध है। अधिनियम के खंड 5(1) के अनुसार, प्रत्येक महिला मातृत्व लाभ के भुगतान की हकदार होगी और उसका नियोक्ता उसे यह लाभ देने के लिए उत्तरदायी होगा।
यदि RBI को याचिकाकर्ता को मातृत्व लाभ के मूल अधिकार से वंचित करने की अनुमति दी जाती है और मुआवजे के बिना केवल छुट्टी बढ़ा दी जाती है तो यह कर्मचारी को उसकी गर्भावस्था के दौरान काम करने के लिए मजबूर करने जैसा होगा।
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(इनपुट- PTI)