One Nation One Election की 5 बड़ी चुनौतियां, इनसे कैसे निपटेगी मोदी सरकार?
One Nation One Election Challenges: भारत में फिर से एक देश एक चुनाव की सरगर्मी बढ़ने लगी है। मोदी कैबिनेट ने एक देश एक चुनाव को मंजूरी दे दी है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने एक देश एक चुनाव की सिफारिशों का खाका मोदी मंत्रिमंडल को सौंपा, जिसको मोदी 3.0 ने हरी झंडी दिखा दी है। हालांकि इसे लेकर लोगों के मन में कई सवाल हैं। वहीं एक देश एक चुनाव का रास्ता आसान नहीं होने वाला है। इसके सामने कई चुनौतियां मौजूद हैं।
संविधान संशोधनों की जरूरत
एक देश एक चुनाव की परिकल्पना को अमली जामा पहनाने के लिए मोदी सरकार को संविधान में कई बदलाव करने पड़ेंगे। इसमें 18 संविधान संशोधन शामिल हैं। हालांकि बीजेपी के पास लोकसभा में पूर्ण बहुमत नहीं है। ऐसे में एक देश एक चुनाव को लागू करने के लिए बीजेपी को सभी सहयोगियों दलों समेत कुछ विपक्षी पार्टियों का भी हाथ थामना पड़ सकता है।
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संसदीय कमेटी बनेगी रोड़ा
नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने पहले ही मोदी सरकार के इस फैसले पर सहमति जता दी है। मगर कांग्रेस ने इस पर मुहर लगाने से मना कर दिया है। सरकार को एक देश एक चुनाव से जुड़े बिल संसदीय कमेटी के पास भेजने होंगे, जहां विपक्षी दलों के नेता भी मौजूद रहेंगे। ऐसे में बिल को मंजूरी दिलाना सरकार के लिए मुश्किल हो सकता है।
राज्यों की नामंजूरी
एक देश एक चुनाव को लागू करने के लिए केंद्र सरकार को राज्यों का भी समर्थन हासिल करना होगा। खासकर पंचायती और नगर निगम के चुनाव करवाने के लिए आधे राज्यों की मंजूरी लेना आवश्यक है। ऐसे में लोकसभा और विधानसभा चुनाव के साथ लोकल इलेक्शन करवाने के लिए सरकार को 14 राज्यों की सहमति लेनी पड़ेगी।
विधानसभा के कार्यकाल पर पड़ेगा असर
एक देश एक चुनाव का प्रावधान अगर लागू होगा, तो इससे कई राज्यों के विधानसभा कार्यकाल पर सीधा असर पड़ सकता है। मसलन अगले साल दिल्ली और बिहार में चुनाव होने हैं। वहीं असम, केरल, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल का विधानसभा कार्यकाल 2026 में खत्म होगा। इसके अलावा गोवा, गुजरात, मणिपुर, पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड का विधानसभा कार्यकाल 2027 में पूरा हो जाएगा। 2029 में लोकसभा चुनाव के साथ सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव फिर से करवाए जाएंगे, जिससे इन सभी राज्यों की विधानसभा कुछ ही सालों में भंग हो जाएगी और नई सरकार 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सकेगी।
चुनाव आयोग की मुश्किल बढ़ेगी
एक देश एक चुनाव को सफल बनाना चुनाव आयोग के लिए भी आसान नहीं होगा। 28 राज्यों और 8 केंद्र शासित प्रदेशों में मौजूद 140 करोड़ आबादी वाले देश में एक साथ चुनाव करवाना टेढ़ी खीर साबित होगी। इसके लिए ढेर सारी EVM और स्टाफ समेत अन्य संसाधनों की जरूरत पड़ेगी। देश की सभी लोकसभा और विधानसभा सीटों पर मतदान और नतीजे जारी करना चुनाव आयोग के लिए काफी मुश्किल होगा।
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