'नेहरू को छोड़िए, बताइए आपने क्या किया...', संसद में पहली बार गरजीं प्रियंका गांधी की 5 बड़ी बातें
Priyanka Gandhi Speech on Samvidhan Pe Charcha: प्रियंका गांधी ने शुक्रवार को संसद में संविधान पर चर्चा के दौरान मोदी सरकार पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि संविधान ने आज की सरकार को यह मानने के लिए मजबूर किया कि ये कितना महत्वपूर्ण हैं। केंद्र सरकार नारी शक्ति अधिनियम लागू क्यों नहीं करती? क्या आज की महिला 10 साल तक इंतजार करेगी। आइये जानते हैं उनके भाषण की 5 बातें।
1.प्रियंका गांधी ने कहा हमारा संविधान सुरक्षा कवच है। ऐसा सुरक्षा कवच जो नागरिकों को सुरक्षित रखता है - यह न्याय का, एकता का, अभिव्यक्ति के अधिकार का कवच है। यह दुखद है कि 10 साल में सत्ता पक्ष के बड़े-बड़े दावे करने वाले साथियों ने इस कवच को तोड़ने की पूरी कोशिश की है। लेटरल एंट्री और निजीकरण के ज़रिए यह सरकार आरक्षण को कमज़ोर करने की कोशिश कर रही है।
2.प्रियंका गांधी ने अपने भाषण में उन्नाव रेप पीड़िता का जिक्र किया। उन्होंने कहा उन्नाव में मैं रेप पीड़िता के घर गई। हम सबके बच्चे हैं, हम सोच सकते हैं कि बेटी के साथ बार-बार बलात्कार हुआ। खेत जला दिए, भाई को मारा, घर को जला दिया। उसके पिता ने मुझे बताया कि हमे न्याय चाहिए। बेटी की एफआईआर दर्ज नहीं की गई।
3.कांग्रेस सांसद ने कहा अगर लोकसभा में ऐसे नतीजे नहीं आए होते तो ये लोग संविधान बदलने का काम कर देते। आप लोग संविधान-संविधान इसलिए कर रहे हैं क्योंकि चुनाव में पता चल गया देश की जनता ही संविधान को सुरक्षित रखेगी। हारते-हारते जीते तो पता चला कि संविधान बदलने की बात नहीं चलेगी।
4.प्रियंका ने पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए कहा जिसका नाम लेने से वे कभी झिझकते हैं वे कभी खुद का बचाव करने के लिए उनका नाम जी भरकर लेते हैं। इन लोगों ने तमाम पीएसयू बनाए। उनका नाम पुस्तकों से और भाषणों से हटाया जा सकता है, लेकिन देश निर्माण से उनका नाम कभी नहीं मिटाया जा सकता।
5.आज सत्ता पक्ष के साथी अतीत की बातें करते हैं। 1921 में क्या हुआ, नेहरू ने क्या किया। अरे आज की बात कीजिए। देश को बताइये कि आप क्या कर रहे हैं? क्या सारी जिम्मेदारी नेहरू जी की है। प्रियंका ने आगे कहा भय फैलाने वाले खुद भय में रहने लगे हैं। ये प्रकृति का नियम हैं। चर्चा से घबराते हैं। आज के राजा भेष बदलते हैं, उन्हें शौक है। न जनता के बीच जाने की हिम्मत है और न आलोचना सुनने की है।