सिंगूर प्रोटेस्ट से लेकर टाटा टेप तक... रतन टाटा से जुड़े 5 बड़े विवाद जिन्होंने बटोरी थीं सुर्खियां
Ratan Tata Controversies : साल 1991 में टाटा समूह की कमान संभालने वाले रतन टाटा का बुधवार देर रात निधन हो गया था। देश के सबसे प्रतिष्ठित उद्योगपतियों में आने वाले रतन टाटा यूं तो अपनी सादगी और विनम्रता के लिए जाना जाता रहा लेकिन उनके कार्यकाल के दौरान कई बड़े विवाद भी हुए। सिंगूर में नैनो प्लांट का मुद्दा हो या साइरस मिस्त्री की पदोन्नति पर हुआ सार्वजनिक विवाद, इस रिपोर्ट में जानिए उन 5 बड़ी कंट्रोवर्सी के बारे में जो रतन टाटा के टाटा समूह की कमान संभालने के दौरान हुए।
सिंगूर-नैनो मामला
साल 2006 में पश्चिम बंगाल की तत्कालीन लेफ्ट सरकार ने टाटा ग्रुप को वहां के सिंगूर में नैनो कार प्रोजेक्ट बनाने का न्योता दिया था। लेकिन भूमि अधिग्रहण पर मामला अटक गया ता। साल 2007 में ममता बनर्जी सत्ता में आ गई थीं। उन्होंने नैनो प्रोजेक्ट के किलाफ आंदोलन की अगुवाई की और भूख हड़ताल भी की थी। पुलिस ने प्रदर्शनकारियों के खिलाफ एक्शन लिया तो हिंसा भड़क गई। आखिरकार साल 2008 में टाटा मोटर्स ने पश्चिम बंगाल में नैनो के प्रोडक्शन के प्लान पर ही विराम लगा गिया। फिर इसे गुजरात के सानंद में किया गया। इस पूरे मामले ने टाटा की ड्रीम कार को काफी नुकसान पहुंचाया था।
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साइरस मिस्त्री केस
साल 2012 में पालोनजी मिस्त्री ग्रुप के साइरस मिस्त्री को टाटा ग्रुप के सेलेक्शन पैनल ने समूह की अगुवाई करने के लिए चुना था। दिसंबर 2012 में उन्होंने ग्रुप की कमान संभाल ली थी। हालांकि, समय के साथ हालात खराब हुए और ग्रुप के विस्तार व डाइवर्सिफिकेशन (विविधीकरण) जैसे विभिन्न मुद्दों पर मिस्त्री और टाटा के बीच संबंध बिगड़ गए। 24 अक्टूबर 2016 को टाटा संस के बोर्ड ने मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटा दिया। इसके बाद मिस्त्री ने ग्रुप की फंक्शनिंग को लेकर गंभीर आरोप लगाए थे। उन्होंने कहा था कि कंपनी में कॉरपोरेट गवर्नेंस है ही नहीं। टाटा ग्रुप ने इन आरोपों को खारिज किया था।
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नुस्ली वाडिया केस
बॉम्बे डाईंग कंपनी के प्रमुख नुस्ली वाडिया और रतन टाटा कई दशकों तक करीबी दोस्त रहे थे। लेकिन, साइरस मिस्त्री के मामले के दौरान उनके संबंधों में खटास आ गई थी। दिसंबर 2016 में टाटा संस ने वाडिया को टाटा मोटर्स, टाटा स्टील और टाटा केमिकल्स के बोर्ड्स से हटा दिया था। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि वाडिया ने साइरस मिस्त्री को टाटा संस से बाहर किए जाने का विरोध किया था। वाडिया ने टाटा, टाटा संस व अन्य डाचरेक्टर्स के खिलाफ डिफेमेशन का केस किया था और भरपाई के लिए 3000 करोड़ रुपये की मांग की थी। केस तो सुलझ गया था लेकिन दोनों के रिश्ते कभी नहीं सुधर पाए।
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टाटा टेप्स विवाद
अक्टूबर 1997 में इंडियन एक्सप्रेस ने नुस्ली वाडिया की रतन टाटा, केशुब महिंद्रा और फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ के बीच टेलीफोन पर हुई बातचीत की ट्रांसक्रिप्ट्स को पब्लिश किया था। ये बातें असम सरकार और टाटा टी के बीच चल रही दिक्कतों को लेकर थीं। असम सरकार का आरोप था कि कंपनी आतंकी संगठन यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के हाथ में थी। टाटा पर आरोप लगा था कि वह मामले में केंद्र से हस्तक्षेप करवा रहे थे, क्योंकि उल्फा राज्य की चाय कंपनियों से धन उगाही करने की कोशिश कर रहा था। टाटा टी ने कहा था उसे उल्फा से संबंध के बारे में कुछ नहीं पता है।
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राडिया टेप्स मामला
नवंबर 2010 में कॉरपोरेट लॉबिस्ट नीरा राडिया और विभिन्न उद्योगपतियों, राजनेताओं, पत्रकारों व नौकरशाहों के बीच टेलीफोन पर हुई बातचीत मीडिया में लीक हो गई थी। इसकी वजह से कदाचार के आरोप लगे और ये बातचीत पूर्व टेलीकॉम मंत्री ए राजा के खिलाफ आरोपों के बीच आई थीं। ए राजा 2जी स्कैम मामले में मुख्य आरोपियों में से एक थे, जिन्हें बाद में दोषमुक्त कर दिया गया था। राडिया ने जिन उद्योगपतियों से बात की उनमें से एक रतन टाटा भी थे। इन टेप के सामने आने के बाद, रतन टाटा ने मीडिया पर इस तरह के और टेप प्रसारित करने पर रोक लगाने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।