हाईकोर्ट पहुंची शंकराचार्य और गोविंदानंद सरस्वती की लड़ाई, फेक बाबा कहने का मामला, जज ने कही बड़ी बात
Shankaracharya Avimukteshwaranand Saraswati News: शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती द्वारा गोविंदानंद सरस्वती के खिलाफ दायर मानहानि मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को अंतरिम निषेधाज्ञा जारी की। जस्टिस नवीन चावला ने कहा कि संतों को मानहानि के बारे में चिंतित नहीं होना चाहिए। सम्मान और यश आपके कर्मों से मिलता है, कानूनी लड़ाइयों से नहीं। दरअसल सोमवार को स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने सोमवार को गोविंदानंद सरस्वती के खिलाफ मानहानि का केस दायर किया था। गोविंदानंद सरस्वती ने शंकराचार्य पर फेक बाबा होने का आरोप लगाया था और कहा कि उन्हें कांग्रेस पार्टी से समर्थन प्राप्त है।
बार एंड बेंच के मुताबिक अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के वकील से जस्टिस नवीन चावला ने कहा कि 'उनका बयान ठीक नहीं था। मुझे लगता है कि वह हताश हैं। लेकिन मैं नहीं मानता कि कोई मानहानि हुई है। आप एक संत हैं। आपको इस बारे में चिंतित होने की क्या जरूरत है। संतों की इन सब चीजों से मानहानि नहीं हो सकती। संत अपने कर्मों के जरिए सम्मान प्राप्त करते हैं।'
सुनवाई के अंत में कोर्ट ने अंतरिम निषेधाज्ञा के लिए नोटिस जारी किया। और अगली सुनवाई 29 अगस्त के लिए तय कर दी। अविमुक्तेश्वरानंद के वकील ने दलील दी कि गोविंदानंद ने कई सारे अपमानजनक बयान दिए हैं। इन बयानों में उन्होंने शंकराचार्य को फर्जी बाबा, ढोंगी बाबा और चोर बाबा कहा है।
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गोविंदानंद सरस्वती ने क्या आरोप लगाए
उन्होंने कहा कि गोविंदानंद ने शंकराचार्य पर आपराधिक गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाया है। इसके साथ ही अपहरण के मामलों में शामिल होने, हिस्ट्रीशीटर होने, 7 हजार करोड़ मूल्य का सोना चुराने और साध्वियों के साथ अवैध संबंध बनाने के आरोप शामिल हैं।
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के वकील ने स्पष्ट किया कि गोविंदानंद सरस्वती भले ही आपराधिक मामलों में शामिल होने का आरोप लगाते हों, लेकिन शंकराचार्य के खिलाफ एक मात्र केस अखिलेश यादव की सरकार के समय दायर किया गया था, जिसे योगी आदित्यनाथ की सरकार ने वापस ले लिया।
बता दें कि हाल के दिनों में स्वामी गोविंदानंद सरस्वती ने शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के खिलाफ चौंकाने वाले आरोप लगाए थे। उन्होंने अविमुक्तेश्वरानंद को शंकराचार्य बुलाए जाने की भी आलोचना की थी और कहा था कि वे एक साधु कहलाने के योग्य भी नहीं हैं।