भाजपा की रखी नींव, आर्टिकल 370 का किया विरोध, श्रीनगर में रहस्यमयी तरीके से हुई थी श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत
Shyama Prasad Mukherjee Death: देश में हर तरफ लोकसभा चुनाव की गूंज है। इसी बीच कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने राजस्थान में एक रैली के दौरान आर्टिकल 370 का जिक्र करते हुए गलती से 371 बोल दिया, तो उनपर पलटवार करते हुए भाजपा प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत का पन्ना पलटना शुरू कर दिया। राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप का ये सिलसिला नया नहीं है। मगर श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत आज भी लोगों के लिए रहस्य बनी हुई है।
नेहरू मंत्रिमंडल का बने हिस्सा
श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 1901 में हुआ। कोलकाता का कामयाब वकील बनने के बाद महज 36 साल की उम्र में उन्हें कलकत्ता विश्वविद्यालय का कुलपति बना दिया गया। उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत का विरोध करने से लेकर भारत छोड़ो आंदोलन में हिस्सा लिया। वहीं आजादी के बाद वो नेहरू मंत्रिमंडल में शामिल हुए। पंडित नेहरू ने उन्हें उद्योग एंव आपूर्ति मंत्री बनाया। लेकिन 1950 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
जनसंघ की शुरुआत
श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक जनसंघ की स्थापना की और जनसंघ के पहले अध्यक्ष भी बने। ये वही जनसंघ है, जिसे आज हम RSS के नाम से पहचानते हैं। इसी जनसंघ से आज की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का भी जन्म हुआ है। श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा शुरू की गई जनसंघ ने पहले आम चुनाव में भी हिस्सा लिया और पार्टी ने 3 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल कर ली।
कैसे हुई मौत?
श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत आज भी लोगों के लिए रहस्य बनी हुई है। पहले आम चुनाव के दौरान उन्होंने आर्टिकल 370 का विरोध किया। श्यामा प्रसाद मुखर्जी का कहना था कि 'एक देश में दो विधान, दो निशान और दो प्रधान नहीं चलेंगे'। जम्मू कश्मीर के स्पेशल स्टेटस का विरोध करने के लिए श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने श्रीनगर का रुख किया। मगर वहां पहुंचते ही उन्हें गिरफ्तार करके शहर से दूर नजरबंद कर दिया गया और 23 जून 1953 की रात श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत ने सभी को चौंका कर रख दिया।
रहस्य बना मौत का राज
श्यामा प्रसाद मुखर्जी की अचानक हुई मौत की वजह हार्ट अटैक बताया गया। मगर वास्तव में उनके परिवार का कहना था कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मौत एक साजिश थी। उनके परिवार ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर मौत की जांच करवाने की गुजारिश की। मगर प्रधानमंत्री कार्यालय का कहना था कि इसमें कोई साजिश नहीं है इसलिए जांच करवाने का कोई तुक नहीं है। अब सच्चाई क्या थी? इसका जवाब भी इतिहास के पन्नों में सिमट कर रह गया है। मगर ये कहना गलत नहीं होगा कि आर्टिकल 370 को हटवाने के लिए ही श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपनी जान की भी बाजी लगा दी।