'फिल्मों में दिव्यांगों का अपमान बर्दाश्त नहीं करेंगे'; सुप्रीम कोर्ट की सख्त हिदायत
Supreme Court Guidelines for Visual Media Producers: सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार दिव्यांग व्यक्तियों पर व्यंग्य या अपमानजनक टिप्पणी से बचने की हिदायत दी है। फिल्म, डॉक्यूमेंट्री और विजुअल मीडिया निर्माताओं के लिए विस्तृत दिशा निर्देश जारी किए हैं। CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि दिव्यांगों से जुड़े मामले में सेंसर बोर्ड को स्क्रीनिंग की अनुमति देने से पहले विशेषज्ञों की राय लेनी चाहिए।
दिव्यांग लोगों की वास्तविकताओं को दिखाने का प्रयास करना चाहिए, बजाय इसके की केवल उनकी चुनौतियों को दिखाया जाएl समाज में उनकी सफलताओं, प्रतिभाओं और योगदान को भी प्रदर्शित किया जान चाहिए। उन्हें न तो मिथकों के आधार पर चिढ़ाया जाना चाहिए और न ही अपंग और असमर्थ के रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए। दिव्यांग अधिकार कार्यकर्ता निपुण मल्होत्रा की याचिका पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश दिए।
दिल्ली हाईकोर्ट ने खारिज की थी याचिका
दिव्यांग अधिकार कार्यकर्ता निपुण मल्होत्रा ने 'आंखमिचौली' मूवी के खिलाफ याचिका दायर की है। उन्होंने याचिका में शिकायत की कि मूवी में PwDs को अपमानित किया गया। दिव्यांगों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां हुई। याचिका पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने सुनवाई की। निपुण मल्होत्रा के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता संजय घोष, अधिवक्ता जय अनंत देहदराई, अधिवक्ता पुलकित अग्रवाल थे। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सामने थे, जिन्होंने सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) का पक्ष रखा।
वरिष्ठ अधिवक्ता पराग त्रिपाठी ने निशित देसाई एसोसिएट्स, सोनी पिक्चर्स इंडिया, फिल्म प्रोड्यूसर का पक्ष रखा। इसके बाद बेंच ने फैसला सुनाया, जिसमें प्रोड्यूसर्स, डायरेक्टर्स, सेंसर बोर्ड को कुछ दिशा निर्देश दिए। बेंच ने दिव्यांगों के अधिकारों का अपने फैसले में जिक्र किया। दिल्ली हाईकोर्ट ने निपुण की याचिका खारिज कर दी थी। हाईकोर्ट ने कहा था कि देश में सेंसरशिप एक्ट बने हैं, जिनके दायरे में रहकर ही विजुअल मीडिया काम करता है। इससे ज्यादा सेंसरशिप की जरूरत नहीं है। हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।
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सुप्रीम कोर्ट ने क्या निर्देश दिए?
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि विजुअल मीडिया से जुड़े क्रिएशन्स में भेदभाव करने या दिखाने वाले शब्दों का इस्तेमाल न किया जाए। जैसे- लंगड़ा, लूला, अंधा, पागल आदि। ऐसी भाषा का इस्तेमाल करने से भी बचें, जो दिव्यांगों द्वारा फेस की गई चुनौतियों को इग्नोर करती हों और लोगों को उनके बारे में अधूरी चीजें बताती हों। विजुअल मीडिया क्रिएटर्स सुनिश्चित करें कि उनके पास उस दिव्यांग से जुड़ी पूरी मेडिकल हिस्ट्री है या नहीं। इसके अलावा भी कई निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने जारी किए हैं।
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