AQI की फुल फार्म क्या? कैसे मापा जाता है प्रदूषण, कौन सा लेवल ‘जानलेवा’, जानें सबकुछ
What is AQI: दिल्ली में वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर है। इस समय दिल्ली के हालात ऐसे हैं कि बिना मास्क के घर से निकलना खतरे से खाली नहीं है। इसको देखते हुए सरकार ने ग्रेप-4 लागू कर दिया है। जिसमें स्कूल, ऑफिस और ट्रैफिक के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं। इस दौरान दिल्ली का AQI 481 रिकॉर्ड किया गया। आज आपको बताएंगे कि आखिर AQI क्या है और ये कैसे काम करता है?
क्या है AQI?
आज कल देश में AQI का काफी जिक्र हो रहा है। कई लोगों के मन में इसको लेकर सवाल हैं। कि ये क्या है, कैसे काम करता है? दरअसल, वायु गुणवत्ता सूचकांक (Air Quality Index) वायु गुणवत्ता का एक मापदंड है, जो वायु में प्रदूषण के स्तर का संकेत देता है। यह एक संख्या होती है, जो हवा में मौजूद कई प्रदूषकों की मात्रा के आधार पर बनती है। AQI एक थर्मामीटर की तरह काम करता है जो 0 से 500 डिग्री तक चलता है। AQI का उद्देश्य है यह बताना कि वायु की गुणवत्ता हमारे स्वास्थ्य के लिए कितनी खतरनाक हो सकती है।
ये भी पढ़ें: Toxic Air Alert: दिल्ली की हवा जहरीली क्यों हो रही? 1000 से ज्यादा हुआ AQI
हवा में क्या मौजूद होता है?
जिस हवा में हम सांस लेते हैं उसमें चीजें मिक्स होती हैं। वायुमंडल में हवा में कई गैस घुली होती हैं। इन्हीं में से AQI 5 को ट्रैक करता है। जिसमें जमीनी स्तर ओजोन, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और हवा में मौजूद कण या एरोसोल होते हैं।
फोटो क्रेडिट- मेटा एआई
AQI की 6 कैटेगरी
AQI में 6 श्रेणियां हैं जो कई रंगों के जरिए स्वास्थ्य संबंधी खतरे के स्तर को बताती हैं। कोड ग्रीन और येलो का मतलब है कि हवा आम तौर पर सभी के लिए सुरक्षित है। कोड ऑरेंज संवेदनशील समूहों के लिए अस्वस्थ है, जिसमें बच्चे, सीनियर नागरिक और दिल और फेफड़ों की बीमारी वाले लोग शामिल हैं। कोड पर्पल का मतलब है कि हवा सभी के लिए अस्वस्थ है और कोड मैरून खतरनाक स्थिति में एक स्वास्थ्य चेतावनी होती है।
क्या है PM 2.5 और PM 10?
AQI के नाम के साथ ही PM 2.5 और PM 10 का जिक्र भी अक्सर होता है। आपको बता दें कि हवा में धूल के छोटे-छोटे कण मौजूद होते हैं, जो धूल गले, आंखों, नाक में सांस के जरिए शरीर में चले जाते हैं। जिससे शरीर में समस्याएं पैदा होती हैं। लेकिन जो खतरनाक वायु प्रदूषण होता है उसके पीछे PM 2.5 और PM 10 होता है। PM यानी पार्टिकुलेट मैटर, 2.5 और 10 मैटर या कण का आकार होता है। ये आकार इतना छोटा होता है कि इनको आंखों से नहीं दिखता है। इसके लिए माइक्रोस्कोप की जरूरत पड़ती है।
PM 2.5 और 10 कई वजह से हमारे शरीर में पहुंच सकते हैं। ये प्राकृतिक और मानवीय दोनों कारणों से फैलते हैं। प्राकृतिक में जंगल में लगी आग, ज्वालामुखी विस्फोट, रेतीला तूफान शामलि है। जबकि, मानवीय कारणों में फैक्ट्रियों का प्रदूषण, अपशिष्ट पदार्थों, गाड़ियों का धुआं शामिल हैं। कई बार ये हवा में मौजूद गैसों के साथ मिलकर एक जहरीला पार्टिकुलेट मैटर बनकर सामने आते हैं।
फोटो क्रेडिट- मेटा एआई
हवा कैसे बनती है जानलेवा?
अब सवाल ये उठता है कि PM 2.5 और 10 शरीर के लिए जानलेवा कैसे बन जाता है? आपको बता दें कि जब ये सांस के जरिए शरीर में पहुंचते हैं तो इसका सीधा असर फेफड़ों पर पड़ता है। इससे फेफड़ों कमजोर हो जाते हैं। जिससे सांस संबंधी बीमारियां होती हैं। इसके साथ ही ये पार्टिकुलेट मैटर खून में मिक्स हो जाते हैं। जिसके बाद नाक, आंख में खुजली, दर्द और छींकों जैसे लक्षण दिखते हैं। इससे क्रोनिक बीमारी होने का भी खतरा पैदा होता है।
स्कूल ऑफिस को लेकर क्या हैं नियम?
दिल्ली का AQI 481 रिकॉर्ड किया गया, जिसकी वजह से लोगों को सांस लेने में भी दिक्कत हो रही है। प्रदूषण की गंभीरता को देखते हुए दिल्ली के सभी स्कूलों में ऑनलाइन क्लास के निर्देश दिए गए हैं। इसमें फिलहाल 10वीं और 12वीं की क्लास शामिल नहीं हैं। इसके अलावा 50% कर्मचारियों को वर्क फ्रॉम होम देने के निर्देश दिए गए हैं।
ये भी पढ़ें: Delhi के वो 10 इलाके, जहां हवा जहरीली; सांस लेना हो सकता ‘जानलेवा’