शर्मनाक तस्वीर! पीरियड्स से गुजर रही थी वो इसलिए 5 दिन घर से बाहर रहने को होना पड़ा मजबूर
Woman Stayed Out of the House in Days of Periods: आज भारत 21वीं सदी का देश है। भारत में जहां आज एप्पल के फोन और 5जी टेक्नोलॉजी इस्तेमाल करने वाली जनरेशन है। जो भारत चांद और मंगल तक पहुंच चुका है। जिस भारत की बेटी मिस वर्ल्ड और मिस यूनिवर्स बनकर देश का नाम ऊंचा करती है। जिस देश की राष्ट्रपति एक महिला है। जिस देश में महिलाओं को संसद और विधानसभा में रिजर्वेशन दिया जा चुका है।
जिस देश की महिलाएं आज हर सेक्टर में अपने हुनर, काबिलियल और क्षमताओं का लोहा मनवा चुकी है, उसी भारत देश की एक शर्मनाक तस्वीर भी आज हम आपको दिखाते हैं। इस तस्वीर को देखकर आप एक बार यह सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि यह कैसा देश है? एक और इस देश में महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिया जा चुका है, उसी देश में आज भी महिलाओं को मासिक धर्म (पीरियड्स) के दिनों में घर से बाहर रहने को मजबूत किया जाता है। जी हां, इस तस्वीर को देखिए, जो भारत में क्लिक की गई और पिछले साल ही क्लिक की गई।
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सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ने खींची थी तस्वीर
तस्वीर में एक गांव में एक महिला अपने घर के बाहर टेंट लगाकर बैठी है। यह महिला घर से बाहर इसलिए बैठी थी, क्योंकि वह पीरियड्स से गुजर रही थी। 5 दिन से वह अपने घर से बाहर है। यह तस्वीर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय करोल ने खुद खींची हुई है। गोवा में SCAORA के एक कार्यक्रम में लोगों को संबोधित करते हुए जस्टिस करोल ने इस महिला की दर्द भरी कहानी का जिक्र किया। जस्टिस करोल ने बताया कि यह तस्वीर उन्होंने पिछले साल देश के ही एक सुदूर गांव में क्लिक किया था।
यह फोटोग्राफ उस महिला का है, जिसे 5 दिन तक सिर्फ इसलिए घर में नहीं घुसने दिया गया, क्योंकि वह शारीरिक बदलाव ( पीरियडस) से गुजर रही थी। जी हां, यह उसी भारत की तस्वीर है, जिसमें हम रह रहे हैं। हमारी ( न्यायपालिका) की कोशिश होनी चाहिए कि हम ऐसे लोग तक पहुंचे! इस तस्वीर को देखकर अंदाजा लगा सकता है कि भारत केवल दिल्ली, मुंबई में ही नहीं बसता, बल्कि देश के गांवों में आज भी प्राचीन सामाजिक परंपराओं और अंधविश्वास की बेड़ियों में लोग जकड़े हुए हैं।
जस्टिस ने जताई लोगों को जागरूक करने की प्रतिबद्धता
वकीलों को संबोधित करते जस्टिस संजय करोल ने कहा कि संविधान का संरक्षक सुप्रीम कोर्ट को बनाया गया है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की जिम्मेदारी है कि वह देश की न्याय व्यवस्था को उन लोगों तक भी पहुंचाए, जिन्हें आज भी यह नहीं पता कि न्याय, जस्टिस होता क्या है। आज भी देश के सुदूर गांवों में पीरियड्स के दिनों में महिलाओं की क्या हालत होती है? उन्हें किन परिस्थतियों से गुजरना पड़ता है, इस बारे में कई सोच भी नहीं सकता है।
आज भी देश के कई गांवों तक न्याय और कानून व्यवस्था की पहुंच ही नहीं है। जस्टिस करोल ने प्रतिबद्धता जताई कि वे अपने जीवनकाल में कोशिश करते रहेंगे कि जहां तक कानून और न्याय व्यवस्था नहीं पहुंची है, वहां तक वे खुद पहुंचे और लोगों को जागरूक करें कि आज 21वीं सदी में भारत पहुंच चुका है और जरूरत है कि देश का एक-एक नागरिक उसे 2047 का विकसित भारत बनाने में सहयोग करे।