केशव महतो को कांग्रेस ने क्यों दी झारखंड की कमान? जानें पार्टी का समीकरण और रणनीति
Jharkhand Assembly Election 2024: लोकसभा चुनाव 2024 में झारखंड में कांग्रेस ने दो आदिवासी बहुल सीटों पर जीत हासिल की। पिछले चुनाव में इन दोनों सीटों पर कांग्रेस हारी थी, स्पष्ट था कि कांग्रेस के लिए यह राहत की बात थी, लेकिन बाकी सीटों पर कांग्रेस को बड़ा नुकसान हुआ। किसी भी दूसरी सीट पर कांग्रेस चुनाव नहीं जीत पाई। उसके बाद से झारखंड कांग्रेस में बदलाव की मांग उठने लगी थी। झारखंड कांग्रेस के पद से राजेश ठाकुर की विदाई और केशव महतो को कमान देने का सीधा अर्थ है कि पार्टी ने जेएमएम के आधार वोट आदिवासी के साथ ओबीसी वोट को जोड़कर विधानसभा चुनावों में अपनी नैया पार लगाने की रणनीति तैयार की है।
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झारखंड में महतो
कोयला प्रदेश में महतो समुदाय एक राजनीतिक तौर पर ताकतवर समुदाय है। झामुमो की स्थापना ही निर्मल महतो की थी, उनकी हत्या के बाद शिबू सोरेन को कमान मिली। झारखंड में इस समय युवा नेता जयराम महतो की अगुवाई में महतो समुदाय आंदोलनरत है। छात्रों के मुद्दे और 1932 खातियान के मुद्दे पर लोकसभा चुनाव लड़ने वाले जयराम महतो ने रांची, गिरिडीह और हजारीबाग लोकसभा में अच्छा खासा वोट हासिल किया। इसके बाद से ही बीजेपी, कांग्रेस और जेएमएम जैसी बड़ी पार्टियों की नींद उड़ी हुई है।
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केशव महतो को कमान देने के मायने
झारखंड में आदिवासी समाज की आबादी 26 प्रतिशत है। वहीं महतो समाज की आबादी 15 प्रतिशत के आसपास मानी जाती है। पार्टी की कोशिश महतो समुदाय को साधने की है। इसके साथ ही रामेश्वर उरांव को विधानसभा में नेता विधायक दल बनाकर पार्टी ने पार्टी ने कांग्रेस के भीतर ओबीसी और आदिवासी का समीकरण बिठाया है।
जेएमएम के साथ होने से बनेगा मजबूत समीकरण
2019 के विधानसभा चुनाव में जेएमएम ने आदिवासी इलाकों में शानदार प्रदर्शन किया था। और इसी के दम पर पार्टी ने सत्ता में वापसी की थी। इस बार हेमंत सोरेन को जेल भेजने का मुद्दा हावी है। साथ ही सरना धर्म कोड को लेकर भी आदिवासी समुदाय में हलचल है। जेएमएम के आधार वोट के साथ अगर कांग्रेस का वोट बैंक जुड़ता है तो यह निर्णायक हो जाएगा।
लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन
2024 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 9 सीटों पर जीत हासिल की है। 2019 में उसे 12 सीटों पर जीत मिली थी, लेकिन बीजेपी को 2019 में विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। बीजेपी की टेंशन आदिवासी इलाके हैं, जहां 2024 के लोकसभा चुनाव में उसे हार का सामना करना पड़ा है। आदिवासी इलाकों में अगर जेएमएम और कांग्रेस ने अपनी पकड़ बनाए रखी तो बीजेपी के लिए सत्ता में वापसी करना मुश्किल हो जाएगा।
कांग्रेस के पुराने चावल हैं केशव महतो
केशव महतो ने 1985 में सिल्ली विधानसभा सीट से विधायक का चुनाव जीता। 1989 में वे बिहार सरकार में मंत्री बनाए गए। 1995 में दूसरी बार चुनाव जीते। साल 2000 में सिल्ली विधानसभा सीट पर आजसू के सुदेश महतो ने केशव महतो को हराकर खेल पलट दिया। अध्यक्ष बनने से पहले केशव महतो रामेश्वर उरांव की कमिटी में प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष पद पर थे, वर्तमान में राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य भी थे।
महतो वोटों के लिए मारामारी
बीजेपी के साथ सुदेश महतो की पार्टी आजसू का गठबंधन है। सुदेश महतो की राजनीति ही महतो वोटों पर टिकी है। उधर युवा नेता जयराम महतो के उभार ने महतो वोटों पर दांवा ठोंका है। इसके साथ ही जेएमएम के पास भी बड़े कद्दावर महतो नेता हैं, तो कांग्रेस ने पुराने कांग्रेसी केशव महतो को जिम्मेदारी देकर अपनी मंशा साफ कर दी है।