Hemant Soren का जेल से आया देश को संदेश, कल्पना ने गिनाए NDA सरकार बनने के नुकसान
Jharkhand INDIA Alliance Ulgulan Rally : देश में लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर सियासी सरगर्मियां तेज हैं। झारखंड के रांची में रविवार को इंडिया गठबंधन की 'उलगुलान न्याय' रैली हुई, जिसमें विपक्षी दलों के दिग्गज नेताओं ने शिरकत की। झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन ने रैली के मंच से केंद्र पर जमकर निशाना साधा है। इस दौरान उन्होंने जेल में बंद हेमंत सोरेन का संदेश पढ़ा।
कल्पना सोरेन ने रैली में हेमंत सोरेन के पत्र को पढ़ते हुए कहा कि उलगुलान न्याय महारैली में सभी माता-बहनों, भाइयों और महागठबंधन के सभी नेताओं का स्वागत करता हूं। शिबू सोरेन को प्रणाम करता हूं। मुझे ढाई महीनों से बिरसा मुंडा जेल में बंद करके रखा गया है। इसी तरह दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और उनके सहयोगियों को भी जेल में डाल दिया गया है। आजादी के बाद यह पहला मौका है, जब चुने हुए प्रतिनिधियों को इस तरह से जेल में डाला गया है।
अब देश को नहीं देंगे टूटने
हेमंत सोरेन के पत्र में आगे कहा गया कि अब देश को टूटने नहीं देंगे, संविधान खत्म नहीं होने देंगे। साथियों आज देश विषम परिस्थितियों से गुजर रहा है। 2014 में सरकार बनने के बाद से ही गैर एनडीए सरकार को गिराने की कोशिश हो रही है, विधायकों की खरीद-फरोख्त की जा रही है और जो नहीं मानते हैं, उन्हें ऐसे ही जेल से बंदी बना देते हैं।
केंद्रीय एजेंसियों का हो रहा दुरुपयोग
पूर्व सीएम ने कहा कि आज पत्र के जरिए अपना संदेश भेजना पड़ रहा है। केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग किया जा रहा है। विपक्ष के नेताओं को परेशान किया जा रहा है। झारखंड देश का सबसे गरीब राज्य है, लेकिन झारखंड गरीब नहीं है। खनिज संसाधन से पूर्ण है। राज्य अलग होने के बाद राज्य में विधानसभा की सीटों को बढ़ाने का प्रस्ताव बढ़ गया था। परिसीमन करने लिए फिर से प्रस्ताव तैयार किया जा रहा था, जिसका शिबू सोरेन ने सदन से लेकर सड़क तक विरोध किया था।
एनडीए सरकार से सबसे ज्यादा नुकसान आदिवासी समाज को होगा
कल्पना सोरेन ने पूर्व मुख्यमंत्री का संदेश देते हुए कहा कि ये सरकार जो नई योजना बना रही है, उससे सबसे ज्यादा नुकसान आदिवासी समाज को ही उठाना पड़ेगा। मणिपुर में आदिवासी समाज के ऊपर जुल्म हुए, लद्दाख में जुल्म हुए। अगर 2024 में फिर से मोदी सरकार आई तो इसका सबसे ज्यादा खामियाजा आदिवासी समाज को ही उठाना पड़ सकता है।