होमखेलवीडियोधर्म मनोरंजन..गैजेट्सदेश
प्रदेश | हिमाचलहरियाणाराजस्थानमुंबईमध्य प्रदेशबिहारदिल्लीपंजाबझारखंडछत्तीसगढ़गुजरातउत्तर प्रदेश / उत्तराखंड
ज्योतिषऑटोट्रेंडिंगदुनियावेब स्टोरीजबिजनेसहेल्थExplainerFact CheckOpinionनॉलेजनौकरीभारत एक सोचलाइफस्टाइलशिक्षासाइंस
Advertisement

कांग्रेस की हार के साथ कमलनाथ की सियासी पारी खत्म! 77 की उम्र में देख रहे थे CM बनने का ख्वाब

Kamal Nath Political Inning ends : मध्य प्रदेश में कांग्रेस की हार के साथ पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का एक बार फिर से मुख्यमंत्री बनने का सपना, अब सपना ही रह गया।
04:45 PM Dec 03, 2023 IST | Balraj Singh
Advertisement

नई दिल्ली/भाेपाल: देश के चार राज्यों में रविवार को हुई मतगणना के बाद सामने आए राजनैतिक परिदृश्य में मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (BJP) को पूर्ण बहुमत नजर आ रहा है। यहां कांग्रेस के हार के साथ राज्य के एक कद्दावर राजनेता की सियासी पारी लगभग खत्म होती नजर आ रही है। यह नाम है प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का। असल में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान होने का उनके पास यह आखिरी मौका था और शायद इसी के चलते वह 77 की उम्र में सहानुभूति कार्ड खेलकर मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे थे। अफसोस यह सपना टूट गया।

Advertisement

UP के कानपुर में जन्म तो फिर कोलकाता से हुए ग्रेजुएट

18 नवंबर 1946 को उत्तर प्रदेश के कानपुर में जन्मे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ की स्कूली शिक्षा उत्तराखंड (अविभाजित उत्तर प्रदेश का हिस्सा) के देहरादून से हुई थी। इसके बाद कोलकाता के सेंट जेवियर से कमलनाथ ने B.Com किया। फिर 1968 में कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता के रूप में राजनीति में पैर रखा। 1970 से 81 तक लगभग 11 साल कमलनाथ अखिल भारतीय युवा कांग्रेस की राष्ट्रीय परिषद के सदस्य रहे। इसी बीच 1976 में उत्तर प्रदेश युवक कांग्रेस का प्रभार भी इन्हें मिला। 1979 में युवा कांग्रेस की तरफ से महाराष्ट्र के पर्यवेक्षक रहे।

9 बार लोकसभा सांसद तो पांच बार केंद्र में मंत्री भी रहे कमलनाथ

इसके बाद 1979 में पहली बार मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा से सांसद चुने गए। इसके बाद 1984, 1990, 1991, 1998, 1999, 2004, 2009 और 2014 में भी वह संसद के निचले सदन का हिस्सा रह चुके हैं। इसी बीच 1991 से 1994 तक कमलनाथ केंद्र में वन एवं पर्यावरण मंत्री, 1995 से 1996 कपड़ा मंत्री, 2004 से 2008 तक वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री रहे। 2009 से 2011 तक उनके पास सड़क एवं परिवहन मंत्रालय था, वहीं 2012 से 2014 तक शहरी विकास एवं संसदीय कार्य मंत्री के पद पर विराजमान रहे।

Advertisement

की 600 से ज्यादा बार विदेश यात्राएं

1982 से 2018 तक कमलनाथ ने 600 से ज्यादा बार विदेश यात्रा पर भी गए। दुनिया के ज्यादातर देशों में संयुक्त राष्ट्र संघ की साधारण सभा से लेकर अंतरराष्ट्रीय संसदीय सम्मेलनों में भागीदारी निभाई। इसके अलावा 2,000 से 2018 तक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (AICC) के जनरल सेक्रेटरी भी रहे, वहीं इस वक्त मध्य प्रदेश प्रदेश कांग्रेस कमेटी (PCC) के प्रेजिडेंट हैं। 2006 में राजनेता कमलनाथ को जबलपुर स्थित रानी दुर्गावती यूनिवर्सिटी ने डॉक्टरेट की उपाधि से नवाजा। कमलनाथ की एक और बड़ी उपलब्धि यह भी है कि इन्होंने एक पुस्तक भी लिखी है, जिसका शीर्षक ‘भारत की शताब्दी एवं व्यापार, निवेश, उद्योग’ है।

यह भी पढ़ें: क्या है 7 नंबर का संयोग, जिसने भाजपा को 3 राज्यों में दिलाई जीत, जानें 2014 और 2023 विधानसभा चुनाव के बीच इस नंबर का क्या कनेक्शन?

15 महीने मध्य प्रदेश के CM रहे कमलनाथ तो अब फिर चाहते थे कुर्सी

15 दिन पहले ही 77वीं वर्षगांठ मना चुके कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ के नाम एक उपलब्धि मुख्यमंत्री के रूप में भी है। 2019 में कमलनाथ छिंदवाड़ा से विधानसभा चुनाव जीतने के बाद विधायक दल ने उन्हें अपना नेता चुना, लेकिन 15 महीने बाद ही ज्योतिरादित्य सिंधिया के बगावत करके भाजपा में चले जाने के बाद कमलनाथ की मुख्यमंत्री की कुर्सी चली गई। अब 77 साल की उम्र में एक बार फिर मुख्यमंत्री बनने का सपना देख रहे थे। खास बात यह है कि वह यह कुर्सी सहानुभूति कार्ड खेलकर हासिल करना चाह रहे थे। हालांकि मतदाताओं ने नाथ को मुख्यमंत्री की कुर्सी के रूप में आखिरी मौका देने से इनकार कर दिया है।

Assembly Poll Results 2023: ‘कभी अल्पसंख्यकों की चैंपियन थी कांग्रेस…’, तीन राज्यों में कांग्रेस की हार पर गुलाम नबी आजाद ने साधा निशाना

इसलिए थे जीत के प्रति आश्वस्त

पिछले साल कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में कमलनाथ के पास एक नई जिम्मेदारी आ रही थी, लेकिन हालिया विधानसभा चुनाव में भागीदारी निभाग मुख्यमंत्री बनना उन्होंने ज्यादा मुनासिब समझा। इसके लिए इस साल की शुरुआत तक कमलनाथ लोगों को दी जा रही गारंटी का हवाला देते हुए आश्वस्त थे। उन्होंने कर्नाटक में कांग्रेस की जीत का फायदा उठाते हुए सत्ता में आने पर महिलाओं को प्रति माह 1,500 रुपए और 500 रुपए में एलपीजी सिलेंडर देने की पेशकश की थी। स्वास्थ्य ठीक न होने की स्थिति में इसे सीएम की कुर्सी पर नाथ का आखिरी दांव माना गया। अब न तो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में प्रोमोट हो सके और न ही मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली। जहां तक हार के कारण की बात है, कमलनाथ ने पार्टी के लिए पूरे राज्य में प्रचार अभियान के दौरान रोज दो से तीन रैलियां की और आखरी सप्ताह में अपने गढ़ छिंदवाड़ा में चले गए। इसके उलट मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज भाजपा नेता शिवराज सिंह चौहान ने आखिरी दो हफ्तों में रोज 10-12 रैलियां करते हुए 165 हलकों को कवर किया। कमलनाथ ने राज्य में बड़े पैमाने पर प्रियंका गांधी वाड्रा और उनके भाई राहुल गांधी से प्रचार कराया। खास बात यह रही कि राहुल की एंट्री प्रदेश में थोड़ा देर से हुई। बावजूद इसके अब नतीजा सबके सामने है।

(Provigil)

Open in App
Advertisement
Advertisement
Advertisement