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Manmohan Singh को शत-शत नमन! भारतीय राजनीति में अब मुश्किल ही मिलेगा कोई और मनमोहन!

Former FM Manmohan Singh Memoir: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को देश की राजनीति और लोकतांत्रिक देश के विकास में अतुलनीय योगदान के लिए जाना जाएगा। 92 साल की उम्र में उन्होंने 26 दिसंबर 2024 को दुनिया को अलविदा कह दिया। आइए उनके व्यक्तित्व पर बात करते हैं...
11:57 AM Dec 27, 2024 IST | Khushbu Goyal
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Former FM Manmohan Singh Memoir: भारतीय राजनीति आज जिस ओर करवट ले चुकी है, उसमें शायद ही अब कोई दूसरा मनमोहन हो! शब्दों में ही उनके नाम के अर्थ को भी समझाने की कोशिश कर रहा हूं। अब कोई भी मनमोहन नहीं होगा, क्योंकि जिन गुणों को उनके अवगुण करार दिया जाता रहा, वही उनकी खासियत रहे। एक ऐसे शख्स जो राजनीति के ओछे तौर-तरीके तो सीखे ही न थे। उल्टा हमें यह सिखा गए कि राजनीति में भी सौम्य, शालीन और शांतचित्त रहकर भी देश और समाज के विकास में अपना अतुलनीय योगदान दिया जा सकता है।

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ऐसे डॉ. मनमोहन सिंह को भारतीय राजनीति और अर्थशास्त्र के ग्रंथों के श्वेत पन्नों में बेहद सम्मानजनक जगह मिलेगी। क्योंकि जिस दौर में उन्होंने प्रधानमंत्री का पदभार संभाला था, उस दौर में दुनिया आर्थिक मंदी के झोंकों को झेल रही थी। भारतीय राजनीति मंडल और कमंडल से हल्कान होकर अपना विद्रूप चेहरा लेकर सामने थी। देश को आर्थिक संकट के दौर से गुजरना पड़ रहा था और अपना सोना भी अपना नहीं रहा था। ऐसे हालात को महसूस हम सब कर सकते हैं कि जब घर के सोने को ही हम नहीं बचा पा रहे हों तो देश किस मुश्किल में होगा, यह अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है।

 

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गांधी-नेहरु का दौर नहीं देखा, मनमोहन सिंह का देखा

उस दौर में कुर्सी संभालना किसी कांटों से सजे ताज से कम नही था, लेकिन योग्यता और सूझबूझ से डॉ. मनमोहन सिंह ने बतौर प्रधानमंत्री देश को मुश्किल दौर से उबार लिया। आर्थिक मंदी के जोखिम से देश को बचा लिया, ये कोई कम उपलब्धि नहीं रही उनकी। हम उस पीढ़ी के सौभाग्यशाली लोग हैं, जिन्होंने नेताओं को अथाह सम्मान पाते हुए देखा है। उतने ही दुर्भाग्यशाली भी हैं, जिन्होंने नेताओं के लिए अपमानजनक शब्द कहते हुए लोगों को देखा है। हम कह सकते हैं कि हमने गांधी जी और नेहरू जी के दौर को तो नहीं देखा, लेकिन हमने डॉ. मनमोहन सिंह के सुखद दौर को जरूर देखा है।

हमने राजनीति के ऐसे हस्ताक्षर के दौर में जीवन जिया है, जिसके न सिर्फ हमारी मुद्रा पर हस्ताक्षर थे, बल्कि हमारे दिल-ओ-दिमाग पर भी अमिट हस्ताक्षर हैं। जब देश में वो प्रधानमंत्री थे, आसपास काम-कारोबार में समृद्धि देखी है। उनके लिए किसी उधार के उदाहरण की जरूरत ही नहीं। क्या आसानी से भूल जाएंगे उन्हें, जब पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव साहब देश में आर्थिक सुधारों के अगुआ बने तो वित्तमंत्री के रूप में डॉ. मनमोहन सिंह ही उस देश हितकारी योजना के मास्टरमाइंड थे।

 

राजनेता ही नहीं, उच्च कोटि के अर्थशास्त्री थे मनमोहन

मनमोहन सिंह को मौनी बाबा कहकर आज के ओछे राजनेताओं ने अपमानित करने का प्रयास किया, लेकिन क्या उनके बौद्धिक स्तर का कोई नेता था? आज के राजनेता संसद से लेकर आम सभाओं तक में अपनी भाषा पर नियंत्रण नहीं रख पा रहे हैं। क्या कोई डॉ. मनमोहन सिंह जी की जुबान से ऐसे शब्दों का कोई ऑडियो या वीडियो क्लिप तलाश सकेगा? आज की राजनीति की परिभाषा में कहें तो वह राजनेता नहीं थे, लेकिन वे उच्च कोटि के अर्थशास्त्री जरूर थे, जिनकी उस चुनौतीभरे दौर में जरूरत थी, कांग्रेस नेतृत्व वाले गठबंधन का उनको नेता इसीलिए चुना गया था।

वर्ना नेता तो कांग्रेस के पास तब भी कम न थे। उस जिम्मेदारी को उन्होंने शांत भाव से अपने कामों को अंजाम देकर निभाया और देश के लिए वह कर दिखाया, जो दूसरे नहीं कर सके। आज आधुनिक भारत की जो तस्वीर हमें आर्थिक सुधारों के बाद दिखाई देती है, उसमें पीवी नरसिंह राव और डॉ. मनमोहन सिंह ने अपने-अपने स्तर पर रंग भरे थे। भारत का आज जो बदला-सा स्वरूप दिखाई देता है, उसके लिए योजनाबद्ध तरीके से काम किया तो परिणाम सुखद रहा।

 

मनमोहन सिंह ने सिखाया संवैधानिक पद की गरिमा का मतलब

मनमोहन सिंह को इस बात के लिए भी अपमानित किया गया कि वे यसमैन बनकर रहे। इसको भी गलत तरीके से प्रचारित किया जाता रहा। क्या कोई सत्तासीन राजनेता यह भूल जाए कि अपनी जिस पार्टी की नुमाइंदगी वह संसद एवं प्रधानमंत्री के रूप में देश का शासन संभालते हुए कर रहा है, उसकी उस पार्टी का कोई अध्यक्ष भी है। उसकी असल जवाबदेही जितनी जनता के प्रति है, उतनी ही अपनी पार्टी और उसके मुखिया के प्रति भी है। इसको यसमैन कहकर कोई खोट निकाले तो निकालता रहे, लेकिन उनसे वह बेहतर है जो अपने अध्यक्ष को महज कठपुतली भर समझ कर सत्ता के दंभ में चूर होकर राजनीति और सत्ता में काम करते रहे।

देश के किसी भी संवैधानिक पद की गरिमा क्या होती है और उसको कैसे पावर में रहकर कायम रखा जा सकता है, वह भी डॉ. मनमोहन सिंह सिखा गए। इतिहास सबको याद रखता है। दस्तावेज बनाकर जिन्होंने कुछ किया उनको भी और जिन्होंने कुछ नहीं किया उनको भी। वर्ष 2004 से 2014 तक के प्रधानमंत्री के रूप में दो कार्यकाल में उन्होंने वह सब किया, जो उस वक्त देश के लिए जरूरी था। इस महान शख्सियत डॉ. मनमोहन सिंह को शत-शत नमन!

 

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