Delhi Smog: फिर शुरू हुआ दिल्ली में AQI-AQI का जाप, सालभर नहीं रहता किसी को याद!
Opinion on Delhi Air Pollution Problem: 'आग लगने पर कुआं खोदना', इस प्रचलित कहावत का अर्थ है- विपत्ति आने पर ही उसका निराकरण करना या विपरीत परिस्थिति आने से पहले से कोई उपाय न करना। चलिए इसे दूसरी तरह से समझने की कोशिश करते हैं, आप एक खतरनाक रास्ते से कहीं जा रहे हैं, अचानक सामने से दुश्मन आ जाता है। आप जान बचाने के लिए यहां-वहां भागते हैं और आसपास मौजूद पत्थरों से दुश्मन पर हमला बोल देते हैं। यही आग लगने पर कुआं खोदना हुआ। इसके विपरीत खतरनाक रास्ते पर जाने से पहले आप हर संभव खतरे के लिए खुद को तैयार करते हैं। बचाव के संसाधन साथ लेकर चलते हैं। यह हुआ किसी समस्या से बचाव के लिए पहले से उपाय करना। अब जरा सोचिये, कौन-सी रणनीति सही है? निश्चित तौर पर दूसरी वाली, क्योंकि इसमें आपके सर्वाइव करने की संभावना ज्यादा होगी।
लंबे समय से दिल्लीवासी झेल रहे दुष्परिणाम
अफसोस की बात है कि दिल्ली में प्रदूषण से निपटने के लिए अब तक पहले वाली रणनीति ही अपनाई जा रही है, यानी हर साल आग लगने पर कुआं खोदा जाता है। सबसे अहम बात यह है कि यह सर्वविदित है कि यह आग यानी प्रदूषण की भीषण समस्या हर साल दिवाली से पहले आती है। यह पता भी है कि हर साल ऐसा होगा, फिर भी पूरा साल इस पर सरकार आंखें मूंदी रहती है। जब पानी सिर से ऊपर गुजरने वाला होता है तो सबके सब एक्शन में दिखने लगते हैं। अब एक बार फिर देश की राजधानी प्रदूषण की गिरफ्त में है। दिल्लीवासी लंबे समय से इसके दुष्परिणाम का सामना कर रहे हैं। स्थिति यह हो चली है कि सेहत को लेकर फिक्रमंद रहने वाले दिल्ली जाने से बचने लगे हैं, लेकिन इस समस्या की विकरालता केवल दिवाली से चंद रोज पहले ही नजर आती है। इस बार भी यही नजारा देखने को मिल रहा है। बैठकें हो रही हैं, एक्शन प्लान तैयार हो रहा है, ऑड-ईवन लागू करने की भी तैयारी चल रही है। संभव है कि कुछ दिन बाद निर्माण कार्य भी बंद करा दिए जाएं।
चरणबद्ध तरीके से पूरा साल काम करने की जरूरत
इस बात में कोई संदेह नहीं कि दिवाली के आसपास और सर्दियों में प्रदूषण की समस्या बढ़ जाती है, लेकिन यह समस्या इस टाइमलाइन तक ही सीमित नहीं है। ऐसे में केवल टाइमलाइन के हिसाब से उपाय करने से क्या इससे निपटा जा सकता है? हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी प्रदूषण से निपटने में सरकारी लापरवाही पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा था कि हमें प्यास लगने पर कुंआ खोदने के दृष्टिकोण को बदलना पड़ेगा। यह टिप्पणी महाराष्ट्र सरकार के लिए थी, क्योंकि मुंबई में भी प्रदूषण एक बड़ी समस्या है। चूंकि प्रदूषण के दुष्परिणाम किसी दुर्घटना की तरह प्रत्यक्ष नजर नहीं आते, इसलिए सरकार आसमान में धुएं की चादर बिछने के बाद ही सक्रियता दिखाती है, जबकि जरूरत पूरा साल इस दिशा में चरणबद्ध काम करने की है।
शुरुआत में ही 300 पार जाने लगा है AQI
दिल्ली सरकार से पूछा जाना चाहिए कि कनॉट प्लेस में 20 करोड़ की लागत से बनाया गया स्मॉग टावर क्यों बंद पड़ा है? प्रदूषण में धूल भी बड़ी भूमिका निभाती है, फिर सड़कों की मरम्मत क्यों नहीं की गई है? समस्या सामने देखकर अब सरकार प्रदूषण फैलाने वाली इकाइयों के खिलाफ जुर्माने की कार्रवाई कर रही है। ऐसी सख्ती पूरा साल क्यों नहीं दिखाई गई? दिल्ली की हवा लगातार खतरनाक होती जा रही है। एक्यूआई (AQI) का आंकड़ा कई इलाकों में 300 से ज्यादा है, जबकि आदर्श स्थिति में इसे 50 के करीब होना चाहिए। क्या जहरीली होती फिजा से केवल चंद दिनों की कार्रवाई से बचा जा सकता है? प्रदूषण की समस्या केवल किसी पार्टी की समस्या नहीं है, यह संपूर्ण दिल्लीवासियों की समस्या है। लिहाजा इस पर होने वाली राजनीति पर भी अब पूर्ण विराम लगना जरूरी है। यदि मिलकर पूरी ईमानदारी से इससे निपटने की चरणबद्ध कोशिश की जाती है तो फिर आग लगने पर कुआं खोदने की जरूरत नहीं रहेगी, क्योंकि कुआं पहले से ही खुदा होगा।