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कौन थे हरविलास शारदा? जिनकी किताब से अजमेर दरगाह मामले पर छिड़ा 'घमासान'

Who Was Har Bilas Sarda: हरविलास शारदा की किताब 'अजमेर: ऐतिहासिक और वर्णनात्मक' का जिक्र कर हिंदू पक्ष ने अजमेर दरगाह में शिव मंदिर होने का दावा किया है।
07:11 PM Nov 28, 2024 IST | Pushpendra Sharma
हरविलास शारदा।
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Who Was Har Bilas Sarda: अजमेर शरीफ दरगाह में हिंदू पक्ष की ओर से संकटमोचन शिव मंदिर होने का दावा किया गया है। अजमेर की सिविल कोर्ट ने इस संबंध में याचिका स्वीकार कर ली है। ये याचिका हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने लगाई। इस मामले में सिविल कोर्ट ने अल्पसंख्यक मंत्रालय, दरगाह कमेटी अजमेर और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) को नोटिस भेजा है। दरअसल, हिंदू पक्ष ने जो याचिका दायर की है, उसमें दीवान बहादुर हरविलास शारदा की किताब 'अजमेर: ऐतिहासिक और वर्णनात्मक' का जिक्र किया गया है। जिसमें दरगाह के अंदर शिव मंदिर होने का दावा किया गया है। यह किताब उन्होंने 1911 में लिखी थी। आइए जानते हैं कौन थे हरविलास शारदा और उनकी किताब में ऐसा क्या है, जिस पर घमासान छिड़ गया है।

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कौन थे हरविलास शारदा?

अजमेर में 3 जून 1867 को जन्मे हरविलास शारदा शिक्षक, विधायक और पूर्व जज थे। हरविलास शारदा का जन्म एक माहेश्वरी परिवार में हुआ था। आगरा कॉलेज से 1888 में बैचलर ऑफ आर्ट्स की डिग्री हासिल करने वाले हरविलास ने इंग्लिश ऑनर्स की पढ़ाई की थी। शारदा ने 1889 में अजमेर के सरकारी कॉलेज में एक शिक्षक के रूप में अपना करियर शुरू किया। वह ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई करना चाहते थे, लेकिन पिता की तबीयत खराब होने के कारण ऐसा नहीं कर पाए। शारदा ने कई यात्राएं कीं। इलाहाबाद में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कई सेशन अटेंड किए। जिनमें नागपुर, बॉम्बे, बनारस, कलकत्ता और लाहौर में हुए सत्र शामिल थे।

विदेश विभाग में भी किया काम 

शारदा ने 1892 में अजमेर-मेरवाड़ा प्रांत के न्यायिक विभाग में काम किया। बाद में उन्हें विदेश विभाग में ट्रांसफर कर दिया गया। उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अजमेर-मेरवाड़ा प्रचार बोर्ड के मानद सचिव की भी जिम्मेदारी संभाली। साल 1923 में सरकारी सेवा से रिटायर होने के बाद 1925 में वह जोधपुर न्यायालय के वरिष्ठ जज नियुक्त किए गए। जनवरी 1924 में सरदा केंद्रीय विधानसभा के सदस्य चुने गए।

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पूर्व विधायक थे शारदा 

फिर 1926 और 1930 में उन्हें फिर से विधानसभा के लिए निर्वाचित किया गया था। शारदा बचपन से ही दयानंद सरस्वती के अनुयायी और आर्य समाज के सदस्य रहे। उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं। जिसमें हिंदू श्रेष्ठता, अजमेर: ऐतिहासिक और वर्णनात्मक, महाराणा कुंभा, महाराणा सांगा और रणथंभौर के महाराजा हम्मीर शामिल हैं। उन्हें ब्रिटिश काल के दौरान राय साहब और दीवान बहादुर जैसे सम्मान दिए गए। उनका देहांत 87 साल की उम्र में 20 जनवरी 1955 को हुआ था।

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शारदा की किताब में क्या? 

अब सवाल ये उठता है कि शारदा की किताब में ऐसा क्या है। दरअसल, शारदा ने अपनी किताब अजमेर: ऐतिहासिक और वर्णनात्मक में मौजूदा इमारत में 75 फीट ऊंचे दरवाजे के निर्माण में मंदिर के अंश बताए। उन्होंने यहां एक तहखाना भी बताया। जिसमें शिवलिंग होना बताया गया। जहां ब्राह्मण परिवार पूजा करता था।

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