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वसुंधरा-गहलोत के निवेश सम्मेलनों का क्या हुआ हश्र? भजनलाल सरकार की कसौटी पर 'राइजिंग राजस्थान'

Rising Rajasthan Summit: राजस्थान में 'राइजिंग राजस्थान' समिट का आयोजन 9 से 11 दिसंबर तक होना है। सरकार ने इसके लिए पूरी तैयारी कर ली है। आइए जानते हैं पिछली इंवेस्टमेंट समिट का क्या हाल रहा है और इस बार क्या उम्मीदें हैं।
06:18 PM Dec 06, 2024 IST | Pushpendra Sharma
भजन लाल शर्मा।
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के जे श्रीवत्सन, जयपुर 

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Rising Rajasthan Summit: राजस्थान की भजनलाल सरकार 9 से 11 दिसंबर तक राइजिंग राजस्थान सम्मेलन का कार्यक्रम कर रही है। जिसमें देश-विदेश के निवेशकों को राजस्थान में निवेश करने और निवेश की संभावनाओं की तलाश के लिए बुलाया गया है। दावा है कि इस सम्मलेन के जरिए सरकार 20 लाख करोड़ रुपये का निवेश करवाने की कोशिश में है, लेकिन सवाल यह भी उठ रहे हैं कि इससे पहले भी वसुंधरा राजे और अशोक गहलोत ने अपने अपने शासनकाल में निवेशकों का बड़ा सम्मलेन किया था, लेकिन जितने दावे निवेश और एमओयू को लेकर किए गए, उसका 10 फीसदी भी नहीं आया। जबकि निवेशक सम्मलेन को लेकर जो खर्चे हुए, उसने एक बार तो सारे बजट को ही बिगाड़ कर रख दिया।

रिसर्जेंट, इन्वेस्ट और इस बार राइजिंग राजस्थान

कहते हैं कि नाम में क्या रखा है, लेकिन बात निवेश की थी, तो पिछली सरकारों ने धनकुबेरों को आकर्षित करने के लिए नाम पर खास ध्यान दिया था। भजनलाल सरकार ने निवेशकों को लुभाने के लिए जो 9, 10 और 11 दिसंबर 2024 को जो सम्मलेन रखा है उसे 'राइजिंग राजस्थान' नाम दिया गया है। जबकि वसुंधरा राजे ने सीएम रहते हुए साल 2015 में 'रिसजेंट राजस्थान' नाम से निवेशकों का यह कार्यक्रम किया था। इसी तरह अशोक गहलोत ने तीसरी बार सीएम रहने के दौरान साल 2022 में 'इन्वेस्ट राजस्थान' नाम से एसा ही बड़ा कार्यक्रम किया।

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निवेश के दावों की हकीकत

बात करें वसुंधरा राजे के कार्यकाल में हुए 'रिसर्जेंट राजस्थान' की तो इस दौरान 3 लाख 40 करोड़ रुपये के 470 मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टेंडिंग यानी MOU से इस रकम की निवेश का दावा किया गया, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद भी केवल 33 हजार करोड़ का ही निवेश जमीन पर लाने में उनकी सरकार और उस सरकार के अधिकारी कामयाब हो पाए। यानी जो MOU हुए थे उसमें से महज 18 फीसदी MOU ही क्रियान्वित हो पाए।

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अब तक नहीं मिली मंजूरी 

करीब 20 फीसदी ऐसे MOU आज भी पेंडिंग हैं, जो अधिकारियों की लापरवाही या किसी ना किसी वजह से अब भी अटके पड़े हैं। यही नहीं, करीब 18 से 20 MOU ऐसे भी हैं, जिन्हें उस कार्यक्रम के बाद आज तक मंजूरी तक नहीं मिल पाई। यानी महज 10 फीसदी निवेशकों ने ही सरकार से किए अपने वादे को पूरा करते हुए राजस्थान में निवेश किया। यहां वसुंधरा राजे सरकार के लिए फजीहत का कारण यह भी रहा कि करीब सवा लाख करोड़ रुपये के निवेश तो इस कार्यक्रम के खत्म होने के कुछ महीनों के भीतर ही निरस्त भी हो गए। खुद वसुंधरा राजे कुछ समझ पातीं, निवेशकों के जाने के साथ ही उनकी सरकार भी विधानसभा चुनावों के बाद चली भी गई।

महज 2 फीसदी निवेशकों ने ही निभाया वादा

इसी तरह अशोक गहलोत के तीसरे शासनकाल के चौथे साल में हुए 'इन्वेस्ट राजस्थान' सम्मलेन में 12 लाख 53 हजार करोड़ रुपये के 4,195 MOU धड़ाधड़ कर दिए गए, लेकिन बात जब निवेश की आई तो लाखों की बात तो छोड़िए, महज 26 हजार करोड़ का ही निवेश जमीन पर नजर आया। यानी दावे के उलट महज 2 फीसदी निवेशकों ने ही सरकार से अपने निवेश के वादे को निभाया। इस दौरान 32 फीसदी निवेशक तो ऐसे भी थे जिनके साथ करार होने के बावजूद भी उन्हें किसी न किसी वजह से बाद में रद्द करना पड़ा।

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दावा किया जा रहा है कि करीब 22 फीसदी करार अभी भी प्रक्रियाधीन हैं। सरकार की फजीहत इसलिए भी होती दिखी कि कई निवेशकों ने तो सरकार को लिखकर भी दे दिया कि सरकार ने अपने वादे के मुताबिक, ना तो उन्हें जमीन दी और ना ही इन्फ्रास्ट्रक्चर मुहैया करवाया और वादे के मुताबिक चुनावी साल में यह सब करवाना खुद तत्कालीन सीएम अशोक गहलोत के लिए भी संभव ही नहीं हो पाया।

20 लाख करोड़ रुपये के निवेश का दावा

अब बात भजनलाल सरकार की बात करें तो सत्ता में आए अभी 1 साल का वक्त भी पूरा नहीं हुआ है और पहले ही साल में धनकुबेरों के निवेशकों के सम्मलेन को आयोजित कर रही है। दावे भी वसुंधरा राजे और अशोक गहलोत की तत्कालीन सरकारों की तुलना में दावे सबसे बड़े 20 लाख करोड़ रुपये के निवेश को लाने के हैं। खुद सीएम भजनलाल कह रहे हैं कि पहले साल तमाम सुविधाएं, वादें और इरादों के जरिये करार कर रहे हैं, अब बाकी चार साल उनकी सरकार निवेशकों से किए गए करार को जमीन पर उतारने के लिए काम करेगी।

प्री-इन्वेस्ट समिट से मजबूत करार का दावा

'राइजिंग राजस्थान' सम्मलेन से करीब डेढ़ महीने पहले ही खुद भजनलाल सरकार और उनके तमाम मंत्री देश के कई राज्यों के साथ-साथ विदेश दौरे पर भी गए। खास तौर पर वहां रहकर सफल उद्यमी बनने वाले प्रवासी राजस्थानियों पर ही पूरा और बड़ा फोकस करते उन्हें अपनी मातृभूमि में निवेश के लिए राजी किया। शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे कई क्षेत्रों में अलग-अलग जगह पर स्थानीय निवेशकों को बुलाकर प्री-समिट आयोजित किए।

कैसे आएगा निवेश! 

बड़ा सवाल यही है कि जब वसुंधरा राजे और अशोक गहलोत जैसे अनुभवी दिग्गज अपने दावे के मुताबिक निवेश को नहीं ला पाए तो आखिरकार पहली बार सीएम बनने वाले भजनलाल शर्मा कैसे लक्ष्य को पाएंगे। इसका सीधा सा जवाब है- सत्ता में आने के पहले साल में ही बीजेपी इस निवेशक सम्मेलन को कर रही है। यानी अभी पूरे चार साल हैं। सरकार के पास निवेशकों की तमाम शंकाओं और मुश्किलों को दूर करके उससे पैसे निवेश करवाने का पूरा मौका है। उससे भी बड़ी बात तो यह भी है कि हर एक निवेशक से वादे के मुताबिक निवेश करवाने के लिए एक IAS और RAS अधिकारियों को नियुक्त किया गया है। जिनकी जिम्मेदारी होगी कि वे उन्हें मनाएं, उनके निवेश में आ रही अड़चन दूर करें। बहरहाल भजनलाल सरकार का राइजिंग राजस्थान कसौटी पर रहेगा और आने वाले दिनों में आंकड़े ही बताएंगे कि सरकार निवेश के अपने मकसद में कितना कामयाब रही है।

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Tags :
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