Lok Sabha Election 2024: बीकानेर में मेघवाल Vs मेघवाल, जानें चुनावी मुद्दे और जातिगत समीकरण
Bikaner Lok Sabha Seat: पाकिस्तान से लगे राजस्थान की सीमा का इलाका बीकानेर अपनी चटपटी भुजिया के कारण देश-विदेश में जाना जाता है लेकिन यहां होने वाला चुनाव भी हर बार किसी-न-किसी वजह से उतना ही चटपटा हो जाता है। वैसे, इस सीट के चटपटे पन का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह वही सीट है जहां से धर्मेन्द्र भी बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीत चुके हैं और उसके बाद उन्होंने मानों राजनीति से ही तौबा कर ली।
राजा रजवाड़ों के प्रभाव वाली यह सीट बीजेपी के लिए पिछले 20 सालों से मजबूत गढ़ भी कही जाती है और यहां की सीट के लिए कहा जाता है कि जीतने वाले को केंद्र या राज्य सरकार में मंत्री जरूर बनाया जाता है। कांग्रेस इस सीट पर पिछले 20 सालों से हर बार बीजेपी के रथ को रोकने के लिए नए प्रत्याशी को मैदान में उतारती रही है।
यहां की 8 में से 6 विधानसभा सीटों पर बीजेपी ने चुनावों में जीत दर्ज की है। इस बार यहां पहले चरण में 19 अप्रैल को वोट डाले जाने हैं। बीकानेर संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत आठ विधानसभा क्षेत्र- खाजूवाला, बीकानेर पश्चिम, बीकानेर पूर्व, कोलायत, लूणकरणसर, डूंगरगढ़, नोखा और अनूपगढ़ आते हैं।
बीजेपी के प्रत्याशी अर्जुन राम मेघवाल कौन?
बीजेपी ने चौथी बार भी यहां से केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को प्रत्याशी बनाया है। पॉलिटिकल साइंस में एमए, एलएलबी और एमबीए अर्जुन राम मेघवाल ने साल 2009 में प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा देने के बाद बीकानेर से राजनीति में कदम रखा था और वह जीतकर संसद पहुंचे, जहां जीत की हैट्रिक लगाने वाले अर्जुन राम मेघवाल सांसद बने।
राजनीति में कोई बैकग्राउंड न होते हुए भी जल्दी पकड़ बनाने और कार्यकुशलता उनका सबसे बड़ा “प्लस पोईन्ट” बना हुआ है। यही वजह है कि मोदी सरकार के कैबिनेट में भी यह लगातार जगह भी ले रहे हैं। 2014 से अभी तक वित्त मंत्री, भारी उद्योग विभाग, संस्कृति विभाग, संसदीय कार्य मंत्री और फिर अब कानून मंत्री जैसे मंत्रालय का जिम्मा संभाला है।
कांग्रेस के प्रत्याशी गोविन्द राम मेघवाल कौन?
वहीं, कांग्रेस ने गहलोत सरकार में मंत्री रहे गोविन्द राम मेघवाल को यहां से चुनाव में उतारा है। मेघवाल टेलीफोन ऑपरेटर थे और इन्होने भाजपा से अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था। पहली बार, 1998 में बीकानेर की नोखा विधानसभा सीट से चुनाव लड़कर हार गए थे लेकिन बीजेपी के टिकट पर साल 2003 में विधानसभा पहुंचे।
खास बात यह है कि साल 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट नहीं देने पर बसपा से लड़े और तीसरे नंबर पर रहे। गहलोत सरकार में 2018 से 2023 तक मंत्री भी रहे और हाल ही के विधानसभा चुनावों में उन्हें चुनाव कैंपेन कमेटी का अध्यक्ष भी बनाया गया। हालांकि, वह न तो खुद अपना विधानसभा चुनाव जीत सके और न ही अपनी पार्टी को फिर से सत्ता में ला पाए लेकिन दलित नेता के रूप में अच्छी छवि जरूर बना ली। गोविन्द राम मेघवाल छात्र राजनीति से लेकर प्रदेश स्तर तक की रणनीति में अपना हाथ आजमा चुके है।
जगजाहिर है अर्जुन और गोविन्द की अदावत
इस बार के लोकसभा चुनावों में बीजेपी के अर्जुन का मुकाबला कांग्रेस के गोविन्द से है। दोनों की राजनीतिक अदावत इस तरह है की
कि फूटी आंख तक नहीं सुहाते। गोविन्द राम मेघवाल कई बार केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल पर जुबानी हमले कर विवादों में भी आ चुके हैं। जाहिर है कि अब जब दोनों आमने-सामने चुनावी रण में हैं तो आरोप-प्रत्यारोपों का रोचक और विवादों वाला तड़का भी लगेगा।
सीट का इतिहास
बीकानेर राजस्थान की उन चुनिंदा सीटों में से एक है, जहां पूर्व राजपरिवार का दबदबा रहा। बीकानेर के आखिरी महाराजा करणी सिंह यहां से साल 1952 से 1977 के बीच यानी 25 सालों तक लगातार जीतते आए हैं।
चुनावी मुद्दे
पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटा रेगिस्तान का इलाका होने के चलते पानी, परिवहन और अवैध खनन की समस्या यहां सबसे बड़ी है। जयपुर, जोधपुर, कोटा और उदयपुर जैसे शहरों की तुलना में यहां 25 फीसदी भी विकास की रफ्तार यहां देखने को नहीं मिलती। पर्यटन क्षेत्र होने के बावजूद यहां हवाई सेवा, सोलर हब बनाने, रेल सेवाओं में विस्तार, हॉस्पिटल का निर्माण समेत कई कामों को विस्तार दिया जाना है।
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यह राजस्थान का एकमात्र ऐसा क्षेत्र है जहां मुख्य बीकानेर बाजार से एक रेल ट्रैक गुजरता है और शहर को पूर्व और पश्चिम को बीच से विभाजित करता है, हर दिन लगभग 30 से 35 ट्रेनें 30 मिनट से एक घंटे के अंतराल पर ट्रैक पर दौड़ती है और शहर उस समय मानो ट्रैफिक के कारण थम सा जाता है। गैस पाइप लाइन और सेरेमिक हब का दावा भी अब तक कागजी ही साबित हो रहा है। यानी रेगिस्तान के बीच होने से यहां मूलभूत सुविधाएं जैसे बस, रेल कनेक्टिविटी, पीने और सिंचाई के पानी की समस्याओं के साथ बेरोजगारी, प्राकृतिक भंडार को उद्योग में तब्दील करने के मुद्दे आज भी कायम हैं।
जातिगत समीकरण
भले ही यह आरक्षित सीट है लेकिन यह एक समय में जाट बाहुल्य जगह थी। उसी के चलते इस सीट से बलराम जाखड़, रामेश्वर डूडी जैसे राजस्थान के कद्दावर जाट नेता जीतकर संसद पहुंचे। यहां पर एससी और ओबीसी 25- 25 फीसदी, 16 फीसदी मुस्लिम, ब्राह्मण 12 फीसदी, वैश्य 7 फीसदी और क्षत्रिय 9 फीसदी है। इसके अलावा, अन्य करीब 22 फीसदी मतदाता है। परिसीमन में आरक्षित सीट होने के बाद इस बार यहां मेघवाल Vs मेघवाल का चुनाव है।